Himachal: युवाओं को भी शिकार बना रहा है साइलेंट किलर स्ट्रोक, बचना है तो जरूर करें ये काम

punjabkesari.in Wednesday, Oct 29, 2025 - 10:44 AM (IST)

हिमाचल डेस्क। आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी और अनियंत्रित दिनचर्या के कारण, भारत में स्ट्रोक (पक्षाघात) के मामलों में चिंताजनक वृद्धि देखने को मिल रही है। यह गंभीर न्यूरोलॉजिकल समस्या अब केवल बुढ़ापे की बीमारी नहीं रही; उच्च रक्तचाप, मधुमेह (शुगर) और तंबाकू के सेवन जैसे जोखिम वाले कारकों के कारण युवा और मध्यम आयु वर्ग के लोग भी इसकी चपेट में आ रहे हैं।

शिमला स्थित इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) के आँकड़े इस खतरे की गवाही देते हैं, जहाँ प्रति वर्ष लगभग 300 से 400 मरीज़ इलाज के लिए भर्ती होते हैं। 2021 से 2024 के बीच के डेटा के अनुसार, भर्ती होने वाले मरीज़ों में 61 वर्ष से अधिक आयु के लोग प्रमुख थे। लिंग के आधार पर, 64% पुरुष और 36% महिलाएँ स्ट्रोक से प्रभावित पाई गईं।

स्ट्रोक मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है:

इस्केमिक स्ट्रोक (दिमाग की नस में थक्का जमना): यह सबसे आम प्रकार है, जिसमें दिमाग की रक्त वाहिकाओं में रुकावट (थक्का) आ जाती है, जिससे शरीर के प्रभावित अंग काम करना बंद कर देते हैं।

रक्तस्रावी स्ट्रोक (दिमाग की नस फटना): यह अधिक गंभीर स्थिति है, जहाँ रक्त वाहिका फट जाती है, जिससे दिमाग में रक्तस्राव होता है और व्यक्ति बेहोश हो सकता है।

डॉक्टरों के अनुसार, इसका सबसे बड़ा कारण धूम्रपान, अत्यधिक शराब का सेवन, अनियंत्रित रक्तचाप और शुगर, उच्च कोलेस्ट्रॉल (चर्बी) और दिल की धड़कन का अनियमित होना है।

टाइम इज़ ब्रेन' – शुरुआती लक्षण पहचानना है महत्वपूर्ण

स्ट्रोक एक मेडिकल इमरजेंसी है जहाँ 'समय ही उपचार है'। पक्षाघात के लक्षण दिखने पर तुरंत प्रतिक्रिया करना आवश्यक है। इसके प्रमुख प्रारंभिक संकेत हैं:

अचानक चेहरे का टेढ़ा हो जाना।

बोलने या समझने में कठिनाई होना (लड़खड़ाती ज़ुबान)।

शरीर के एक हिस्से (हाथ या पैर) में अचानक कमज़ोरी या सुन्नपन आना।

आंखों में धुंधलापन या एक आंख से देखने में परेशानी।

तेज सिरदर्द, उल्टी या अचानक चक्कर आना/चलने में दिक्कत होना।

जीवन बचाने वाला 'गोल्डन आवर'

न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर शर्मा (चमियाना सुपर स्पेशलिटी अस्पताल) के अनुसार, स्ट्रोक के मरीज को साढ़े चार घंटे के भीतर सीटी स्कैन सुविधा वाले अस्पताल में पहुंचाना महत्वपूर्ण है। इस 'गोल्डन आवर' के दौरान दिए जाने वाले प्राथमिक उपचार, विशेषकर आईवी थ्रोंबोलिसिस (रक्त पतला करने वाला इंजेक्शन), से दिमाग में रक्त के प्रवाह को सामान्य किया जा सकता है और मरीज़ के पूरी तरह से ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है। उन्होंने सख्त चेतावनी दी है कि इस दौरान घरेलू नुस्खे या देरी करने वाले उपचार से बचना चाहिए।

सर्दियों में अतिरिक्त सावधानी ज़रूरी

ठंड का मौसम स्ट्रोक के मरीज़ों के लिए जोखिम भरा हो सकता है। इसलिए, विशेषज्ञों ने निम्नलिखित एहतियात बरतने की सलाह दी है:

शरीर को गर्म रखने के लिए पर्याप्त ऊनी कपड़े पहनें।

नियमित रूप से गुनगुना पानी पीते रहें।

बिस्तर से सीधे उठकर तुरंत बाहर सैर पर जाने से बचें।

डॉक्टर की सलाह पर नियमित दवाएं लें और व्यायाम करें।

तनाव, धूम्रपान, शराब और ज़्यादा तेल वाले भोजन से दूर रहें।

हिमाचल प्रदेश में स्ट्रोक के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए एचपी टेलीस्ट्रोक अभियान भी चलाया जा रहा है। स्ट्रोक से बचाव के लिए सबसे प्रभावी तरीका है – जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव लाना, जिसमें स्वस्थ खान-पान और बीपी-शुगर को नियंत्रण में रखना शामिल है।


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Content Editor

Jyoti M

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