Shimla: अध्यापकों को अनुबंध काल का संशोधित वेतनमान जारी करने में भेदभाव गैर कानूनी : हाईकोर्ट
punjabkesari.in Tuesday, Nov 18, 2025 - 09:30 PM (IST)
शिमला (मनोहर): प्रदेश हाईकोर्ट ने अध्यापकों को अनुबंध काल का संशोधित वेतनमान जारी करने में भेदभाव बरतने को गैरकानूनी ठहराया है। कोर्ट को बताया गया था कि शिक्षा निदेशक द्वारा समान स्थिति के शिक्षकों में कुछ शिक्षकों को संशोधित वेतनमान जारी करने के आदेश जारी किए जा रहे हैं, जबकि कुछ मामलों में उनकी इस मांग को अस्वीकार किया जा रहा है। न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ ने कहा कि शिक्षा निदेशक उन मामलों में निर्णय लेने में भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण नहीं अपना सकता, जहां याचिकाकर्त्ता शिक्षक समान स्थिति में हैं। याचिका में कहा गया था कि शिक्षा विभाग में वर्ष 2016 के बाद सैंकड़ों शिक्षक अनुबंध पर नियुक्त किए गए थे। उस समय उन्हें उस समय के नियमित शिक्षकों के वेतनमान का न्यूनतम वेतनमान देने का करार किया गया था।
राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2022 में एक आदेश जारी कर वर्ष 2016 से नियमित कर्मचारियों के वेतनमान में संशोधन की अधिसूचना जारी की। सरकार ने 2016 के बाद नियुक्त अनुबंध कर्मचारियों को जब इस संशोधन का लाभ नहीं दिया तो उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर संशोधित वेतनमान की मांग की। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने विभिन्न याचिकाओं को स्वीकारते हुए वर्ष 2016 के बाद के अनुबंध कर्मचारियों के वेतनमान में भी संशोधन कर उन्हें बढ़े हुए वेतनमान का न्यूनतम वेतनमान देने के आदेश जारी किए। कुछ फैसलों को विभिन्न विभागों ने खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी परंतु खंडपीठ ने कोई स्थगन आदेश पारित नहीं किया।
एकल पीठ के फैसलों के आधार पर संशोधित वेतनमान की मांग करते हुए हजारों कर्मचारियों ने अपने अपने विभागों के समक्ष प्रतिवेदन प्रस्तुत किए। शिक्षा विभाग ने जब शिक्षकों के प्रतिवेदनों पर विचार नहीं किया तो उन्हें हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर करनी पड़ीं। हाईकोर्ट ने शिक्षा निदेशक को प्रतिवेदनों पर हाईकोर्ट के फैसलों को ध्यान में रखते हुए आदेश जारी करने को कहा। शिक्षा निदेशक ने अलग-अलग मामलों में अलग-अलग आदेश पारित किए।
कुछ मामलों में प्रतिवेदन खारिज कर दिए तो कुछ मामलों में संशोधित वेतनमान देने के आदेश जारी करते हुए शर्त लगाई कि दिए गए लाभ विभाग द्वारा खंडपीठ के समक्ष दायर अपील के अंतिम निपटारे पर निर्भर करेंगे। जिन कर्मचारियों के प्रतिवेदन खारिज किए गए उन्हें फिर से कोर्ट में आना पड़ा। याचिकाकर्त्ताओं ने शिक्षा निदेशक पर भेदभाव व मनमर्जी करने का आरोप लगाया और समान स्थिति वाले शिक्षकों के संबंध में निदेशक द्वारा पारित अलग-अलग तरह के आदेश अदालत के समक्ष रखे। कोर्ट ने पहली सुनवाई में ही निदेशक के आदेश को भेदभावपूर्ण पाते हुए खारिज कर दिया और नए सिरे से आदेश जारी करने के निर्देश दिए।

