Shimla: 2100 से अधिक किसानों को दिया इस खेती का प्रशिक्षण, सीएम ने हिमाचल दिवस पर की थी घोषणा
punjabkesari.in Saturday, Apr 26, 2025 - 07:00 PM (IST)

शिमला (ब्यूरो): हिमाचल दिवस पर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू द्वारा की गई घोषणा पर अमल शुरू हो गया है, जिला प्रशासन ने घोषणा के 10 दिन के अंदर ही घोषणा को धरातल पर उतारने के लिए कसरत तेज कर दी है। हिमाचल दिवस पर पांगी में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने उपमंडल को प्राकृतिक खेती उपमंडल बनाने तथा घाटी में प्राकृतिक खेती से उगाए जाने वाले जौ की फसल को भी 60 रुपए प्रति किलो समर्थन मूल्य देने की घोषणा की थी। इस घोषणा को धरातल पर उतारने के लिए प्रशासन द्वारा लोगों को जागरूक करने का अभियान शुरू किया है, जिसके तहत उन्हें सरकार की ओर से दी जा रही सभी सुविधाओं से अवगत करवाया जा रहा है।
साथ ही लोगों को सरकारी सुविधाओं को दिलवाने में सहयोग भी किया जा रहा है। वर्तमान में घाटी में लगभग 400 हैक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती की जा रही है और अब तक 2100 से अधिक किसानों को इस पद्धति का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। ब्लॉक ट्रेनिंग मैनेजर पाली ने बताया कि क्षेत्र में सदियों से खेती-बाड़ी में रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता तथा यहां पर 90 प्रतिशत भूमि पर खेती और 10 प्रतिशत भूमि पर बागवानी की जा रही है। राज्य सरकार के प्रयासों से पांगी में प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों का एक एफ.पी.ओ. गठित किया गया है। इस एफ.पी.ओ. के माध्यम से किसानों का सेब 75 रुपए प्रति किलो की दर से बेचा जा रहा है। वहीं राजमाह, आलू और मटर की फसल के भी अच्छे दाम मिल रहे हैं।
आज भी खेती में नहीं कर रहे रासायनिक खाद या कीटनाशकों का इस्तेमाल : रतो देवी
2 वर्ष पूर्व प्राकृतिक खेती से जुड़ी पांगी के भटवास निवासी रतो देवी कहती हैं कि हमारे बुजुर्ग भी खेती में रसायनों का उपयोग नहीं करते थे और हम आज भी किसी प्रकार की रासायनिक खाद या कीटनाशकों व अन्य दवाइयों का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। प्राकृतिक खेती में घनजीवामृत का स्प्रे किया जाता है, जिससे बेहतर पैदावार होती है। वहीं पुंटो गांव की सावित्री देवी ने बताया कि प्राकृतिक खेती में इस्तेमाल होने वाली सभी वस्तुएं घर पर ही उपलब्ध होती हैं। मिट्टी की उर्वरकता और फसल में बढ़ौतरी के लिए घनजीवामृत और जीवामृत का उपयोग किया जाता है।
प्राकृतिक खेती की मूल आवश्यकता पहाड़ी या कोई भी भारतीय नस्ल की गाय है। इन नस्लों की गाय के गोबर में अन्य जानवरों की तुलना में लाभदायक जीवाणुओं की संख्या 300 से 500 गुना अधिक होती है। वहीं, लालदेई ने बताया कि अपनी फसल को फफूंद और कीट-पंतगों से बचाने के लिए प्राकृतिक खेती में खट्टी लस्सी, कन्नाई अस्त्र और अग्निस्त्र का छिड़काव किया जाता है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती उपमंडल बनने से पूरी पांगी घाटी में जहां प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिलेगा, वहीं किसानों-बागवानों की आय में भी बढ़ौतरी होगी।