एसएफआई ने की पीएचडी में बिना प्रवेश परीक्षा के हुए दाखिलों को निरस्त करने की मांग

punjabkesari.in Monday, Oct 25, 2021 - 04:45 PM (IST)

शिमला : आज विश्वविद्यालय एसएफआई इकाई ने पीएचडी के अंदर बिना प्रवेश परीक्षा के हुए दाखिलों को लेकर प्रेस कांफ्रेंस की और उन दाखिलों को निरस्त करने की मांग उठाई। प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कैंपस सचिव रॉकी ने विश्वविद्यालय में हुई हाल ही में पीएचडी भर्ती पर आपत्ति जताते हुए इसे अध्यादेश और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों की अवहेलना बताया। परिसर सचिव रॉकी का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन मात्र अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए इस तरह की धांधलियां पीएचडी के अंदर कर रहा है। विश्वविद्यालय में जो भी एडमिशन पीएचडी के अंदर हुई हैं यूजीसी और विश्वविद्यालय के ऑर्डिनेंस के नियमों को दरकिनार करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा अपने फायदे के लिए की गई है। 

विश्वविद्यालय के अंदर कार्यकारी परिषद ईसी में तय किया गया कि हाल ही में जिन प्रोफेसर की भर्तियां हुई है और जिन अध्यापकों की पीएचडी पूरी नहीं हुई है वो अध्यापक अपनी पीएचडी में एडमिशन बिना किसी एंट्रेंस एग्जाम के ले सकते हैं। उनके लिए ईसी के अंदर एक सुपरन्यूमैरेरी सीट का प्रस्ताव पास किया गया। जिससे वे अपनी पीएचडी बिना किसी एंट्रेंस एग्जाम के पूरी कर सकते हैं। एसएफआई का कहना है यदि इस तरह की सुपरन्यूमैरेरी सीट आप रख रहे हैं तो इसमें जितने भी प्राध्यापक कॉलेजों और विश्वविद्यालय के अंदर पढ़ाते हैं उन्हें समान अवसर का मौका मिलना चाहिए, जोकि प्रवेश परीक्षा के माध्यम से ही दिया जाना था जिसे विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा नहीं दिया गया क्योंकि विश्वविद्यालय प्रशासन और प्रदेश की सरकार अपने चहेतों की भर्तियां पीएचडी के अंदर करवाना चाहती है और इस विश्वविद्यालय को एक विशेष विचारधारा का अड्डा बनाना चाहती है। इस भेदभाव पूर्ण फैसले के कारण जो प्राध्यापक अपनी पीएचडी पूरी करना चाहता भी था वह भी अपनी पीएचडी पूरी नहीं कर पाएगा। एसएफआई ने सवाल उठाया कि अगर एक छात्र पीएचडी में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा पास कर सकता है तो एक अध्यापक क्यों नहीं? 

विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपनी भगवाकरण की इसी मुहिम को आगे बढ़ाते हुए 21 अगस्त 2021 को विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल की मीटिंग में यह पारित किया की विश्वविद्यालय का प्राध्यापक व कर्मचारी वर्ग अपने बच्चों की एडमिशन पीएचडी के अंदर बिना किसी  प्रवेश परीक्षा के करवा सकता है। और सबसे पहले जिनके बच्चे इसके माध्यम से पीएचडी में दाखिला लेते हैं वह है विश्वविद्यालय का कुलपति, डीन ऑफ सोशल साइंसेज, डायरेक्टर है। इससे यह सिद्ध होता है कि यह कहीं ना कहीं उन 1200 से अधिक कर्मचारियों व 300 से अधिक प्राध्यापकों के बच्चों के साथ भी भेदभाव है उनके समान अवसर के अधिकार को छीन लिया गया है क्योंकि सबसे पहले जिन के बच्चों की भर्ती पीएचडीमें हुई है वे विश्वविद्यालय के सबसे सर्वोच्च स्थान पर बैठे हुए अधिकारी हैं और कहीं ना कहीं प्रभावशाली लोग हैं । विश्वविद्यालय एसएसआई इकाई सचिव रॉकी ने आरोप लगाया कि  कोटा कहीं ना कहीं प्रशासन और प्रदेश सरकार के इशारे पर कुलपति के बेटे को फायदा पहुंचाने की साजिश है। क्योंकि जब ईसी के द्वारा इस कोटे के तहत यह सीटें निकाली गई ना तो इन सीटों को विज्ञापित भी नहीं किया गया न ही प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया गया जोकि समान अवसर के अधिकार को भी छीनना है और यूजीसी की गाइडलाइंस की अवहेलना है। 

विश्वविद्यालय के अंदर दीनदयाल उपाध्याय नाम से एक पीठ का गठन किया गया है और जिसके अंदर डिप्लोमा कोर्स शुरू किया गया है जिसकी अपनी कोई मास्टर डिग्री नहीं है परंतु विश्वविद्यालय प्रशासन ने अयोग्य लोगों को इस विश्वविद्यालय में भर्ती करने के लिए इस पीठ में पीएचडी का प्रावधान किया।  अब सवाल यह है कि जिस पीठ की मास्टर डिग्री ही नहीं है वह पीएचडी कैसे करवा रही है। दूसरा इस विश्वविद्यालय के अंदर यह होता आ रहा है की जितनी सीटें पीएचडी के लिए विज्ञापित की जाती हैं उससे ज्यादा भर्तियां की जा रही है। ये एक बहुत बड़ी सोची समझी साजिश के तहत किया जा रहा है। डीडीयू के अंदर भी इसी तरह की धांधली सामने आई थी जिसमें पहले 5 सीटों को विज्ञापित किया गया था परंतु अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए 8 और लोगों को और एडमिशन पीएचडी के अंदर दिलाई गई। एसएफआई ने आरोप लगाए हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन या कुलपति प्रदेश सरकार और आरएसएस के इशारे पर इस विश्वविद्यालय के अंदर नियमों को दरकिनार करते हुए एक विशेष विचारधारा को इस विश्वविद्यालय के अंदर आरक्षण दे रही है फिर चाहे किसी भी नियम को ताक पर रखना हो। एसएफआई इन भर्तियों की जो नियमों को ताक पर रखकर की गई है और मेहनत करने वाले छात्रों को समान अवसर के अधिकार को छीन करके की गई हैं कड़ी निंदा करती है और प्रदेश सरकार और प्रशासन से यह मांग करती है की इन भर्तियों को निरस्त किया जाए। 

विश्वविद्यालय के अंदर पिछले कुछ समय से निजी शिक्षण संस्थानों से छात्रों की माइग्रेशन हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अंदर की जा रही है, जो सरासर विश्वविद्यालय के अध्यादेश का उल्लंघन करता है। क्योंकि हम जानते हैं विश्वविद्यालय के अंदर पीएचडी के अंदर दाखिला लेने के लिए प्रवेश परीक्षा और NET JRF qualify करना पड़ता है जबकि दूसरी और निजी संस्थानों के अंदर सिर्फ पैसे के बलबूते आप पीएचडी के अंदर दाखिला ले सकते हैं और अंत में आप अपने चहेते लोगों को एचपीयू में पीएचडी के अंदर माइग्रेशन करवा देते हो  और जो पीएचडी के अंदर बैठने के योग्य ही नहीं है इसे साफ तौर पर भ्रष्टाचार सामने आता है।

कुछ सवाल जो एसएफआई  प्रदेश सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन के समक्ष रखना चाहते हैं।
1. जब छात्र पीएचडी में प्रवेश पाने के लिए प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर सकता है तो एक अध्यापक क्यों नहीं?
2. पीएचडी के अंदर वार्ड कोटे से भरी गई सीटों को विज्ञापित क्यों नहीं किया गया?
3. छात्रों के शिक्षा को ग्रहण करने के लिए समान अधिकार के अवसर क्यों नही दिए गए?
4.क्या विश्वविद्यालय की ईसी चाइस चांसलर के दवाब में काम रही है?
5. पीएचडी के अंदर सीटों की संख्या विज्ञापित कम और दाखिले ज्यादा कैसे ?
6. जिस कोर्स के अंदर मास्टर डिग्री  नहीं है उसमें पीएचडी में दाखिले कैसे?
7. बिना एनईटी जेआरएफ के पीएचडी बांटने के बाद उसकी वैधता पर संशय?
8. पीएचडी के अंदर निजी शिक्षण संस्थानों से एचपीयू में माइग्रेशन कैसे?
9. विश्वविद्यालय अध्यादेश की अवहेलना करने वाले वाइस चांसलर, डीन ऑफ स्टडीज, डीन ऑफ सोशल साइंसेज पर कार्यवाही कब?
10. डीएस के पद पर पिछले तीन चार साल से एक ही शख्स क्यों? 

ये तमाम सवाल हैं जो छात्र समुदाय और प्रदेश की जनता के सामने है और कब तक विश्वविद्यालय प्रशासन और भाजपा सरकार शिक्षा के उच्चतम संस्थान को गर्त की ओर धकेलते रहेंगे। एसएफआई मांग करती है कि उच्च न्यायलय शीघ्र अति शीघ्र इस पर स्वत संज्ञान ले और विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी बढ़ते भ्रष्टाचार के खिलाफ संज्ञान ले और जो दोषी अधिकारी इसमें शामिल है उन पर कड़ी कार्यवाही अमल मे लाई जाए। अन्यथा एसएफआई इसके खिलाफ विश्वविद्यालय के अंदर तमाम छात्र समुदाय और प्रदेश की जनता को जागरूक करते हुए आंदोलन की रूपरेखा तैयार करेगी और इन छात्र विरोधी फैसलों को वापिस लेने के लिए संघर्ष तेज करेगी।


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Content Writer

prashant sharma

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