Kullu: पहली बार सोने के जमाणे पर सवार होकर कुल्लू दशहरा की शोभा बढ़ाएंगे बड़ा देव छमाहूं
punjabkesari.in Monday, Sep 29, 2025 - 09:56 PM (IST)

बालीचौकी (फरेंद्र ठाकुर): सृष्टि के रचयिता एवं तीनों लोक के पालनहार देव बड़ा छमाहूं पहली बार अपने सोने के जमाणे पर सवार होकर अंतर्राष्ट्रीय दशहरा उत्सव की शोभा बढ़ाएंगे। नवनिर्मित देवरथ में करोड़ों रुपए की लागत से लगा सोने का टोप, घागरा और भव्य हार दशहरा उत्सव में पहुंचे हजारों श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बनेगा। बता दें कि देव समाज में सोने के जमाणे वाले देव बड़ा छमाहूं एकमात्र देवता हैं, जो कुल्लू और मंडी जिला के अधिष्ठाता माने जाते हैं। हाल ही में देवता अपने नवनिर्मित रथ में विराजमान हुए हैं, जिस पर करोड़ों रुपए की राशि शृंगार पर खर्च की गई है। हालांकि देवभूमि के अन्य देवी-देवताओं के जमाणे चांदी के बने हुए हैं। देवता के कार-कारिंदों ने देव समाज से जुड़े और अन्य लोगों की इच्छा पर ही इसे बनाया है, जबकि देवता के नए ढोल नगाड़ों, नरसिंगों और करनाल का भी निर्माण किया गया है। इस जमाणे को बनाने के लिए लगभग 6 माह का समय लगा था।
आज दशहरा उत्सव के लिए होंगे रवाना
छमाहूं शब्द का अर्थ है छह जमा समूह या मुंह। यानि छह देवी-देवताओं की सामूहिक शक्ति, ओम शब्द ही छमाहूं है। माना जाता है कि ओम शब्द तीन प्रमुख देवताओं ब्रह्मा, विष्णु व महेश का प्रतीक चिन्ह है, लेकिन वास्तव में ओम शब्द छह देवी-देवताओं ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदिशक्ति शेष की वह अमर वाणी है, जिसमें पूरी सृष्टि वास करती है। देव बड़ा छमाहूं बुधवार को अपने लाव लश्कर के साथ दशहरा उत्सव के किए प्रस्थान करेंगे और 2 अक्तूबर को कुल्लू पहुंच कर देव समागम में भाग लेंगे।
कोटला गांव में है देव बड़ा छमाहूं की प्रमुख कोठी
देव बड़ा छमाहूं की प्रमुख कोठी कोटला गांव में विराजमान है। इसके अलावा देवी के अठारह देउल में मंदिर, भंडार व मधेउल में विराजमान है। इसके दूसरे स्थान के छमाहूं का रथ पलदी क्षेत्र में विराजमान रहता है और इन्हें पलदी छमाहूं के नाम से भी जाना जाता है। उधर, देव बड़ा छमांहू के पालसरा दीपक ने बताया है कि देवता पहली बार सोने के जमाणे और अन्य शृंगार को पहनकर दशहरा उत्सव के लिए जाएंगे, जो लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होगा।
दशहरा पर्व शुरू होने के दौरान भगवान रघुनाथ जी की धुर में बैठते थे बड़ा छमाहूं
दशहरा पर्व में देव बड़ा छमाहूं तभी से आते हैं, जब से दशहरा पर्व शुरू हुआ था। एक समय था जब देव बड़ा छमाहूं भगवान रघुनाथ जी की धुर में बैठते थे, लेकिन धीरे-धीरे धुर को लेकर विवाद पैदा होने के कारण यह परंपरा खत्म हो गई। दशहरा पर्व के दौरान देवता से मिलन करने सबसे पहले पल्दी के छमाहूं, वासुकी नाग, करथनाग व खोडू देवता आदि आते हैं। इसके बाद देवता अठारह करडू के दरबार में मिलन करने राजमहल जाते हैं और वहीं भगवान रघुनाथ जी से भी मिलन करते हैं। इसके अलावा चाननी के पास भगवान नरसिंह से मिलन होता है और रघुनाथ के शिविर में भी मिलन होता है।
देवता के मोहरे ने मंडी के राजा से की थी प्रत्यक्ष रूप में बात
देव बड़ा छमाहूं का छोटी काशी मंडी से युगों-युगों का संबंध है और मंडी और सुकेत रियासत के भी पूर्व में आराध्य देव रहे हैं। मंडी रियासत के इतिहास के मुताबिक देवता के प्रमुख मोहरे ने तत्कालीन मंडी रियासत के राजा विजय सेन से प्रत्यक्ष रूप से बात की थी और राजा ने देवता से कई बातें पूछी थीं। फिर राजा विजय सेन ने खुश होकर देवता को सोने का चौऊंर मुठ और एक जमीन का विशाल टुकड़ा अपनी रियासत में भेंट करवाया था। उस समय राजा देवता को समय-समय पर मंडी आने का निमंत्रण देते थे। यही कारण है कि आज भी देवता समय-समय पर मंडी जाने के इच्छुक रहते हैं।