अब शिंदे लगाएंगे बागियों की वापसी पर मोहर

punjabkesari.in Tuesday, Aug 15, 2017 - 03:40 PM (IST)

शिमला: चुनावी वर्ष में भाजपा जहां लगातार अपना कुनबा बढ़ा रही है, वहीं कांग्रेस अभी तक बागियों की वापसी को लेकर ही निर्णय नहीं ले पाई है। कांग्रेस में बागियों की वापसी का मामला लटकने का एक मुख्य कारण पार्टी के भीतर जारी गुटबाजी भी माना जा रहा है। विशेष है कि अधिकतर बागियों को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का समर्थक माना जाता है। कांग्रेस अनुशासन समिति करीब 3 माह पहले बागियों की वापसी किए जाने की सिफारिशें कर चुकी है, बावजूद इसके बागियों की वापसी नहीं हुई है। यह मामला नवनियुक्त प्रभारी सुशील कुमार शिंदे के समक्ष भी उठाया जा चुका है। शिंदे 16 अगस्त को हिमाचल आ रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि वह अनुशासन समिति की सिफारिशों पर अपनी मोहर लगाते हुए बागियों की वापसी के लिए संगठन के दरवाजे खोल देंगे।


हिमाचल दौरे के दौरान कुछ बागियों ने शिंदे से भी की थी मुलाकात
अनुशासन समिति की सिफारिशों के बाद संगठन ने जिला और ब्लाक कमेटियों से भी बागियों की वापसी को लेकर अपनी रिपोर्ट देने को कहा था लेकिन कुछ कमेटियों ने बागियों पर सहमति नहीं जताई है, जिससे चुनावी वर्ष में भी सभी बागियों की वापसी आसान नहीं लग रही है। यही कारण है कि अब बागियों की वापसी पर नवनियुक्त प्रभारी शिंदे अंतिम फैसला लेंगे। हाल ही में हिमाचल दौरे के दौरान कुछ बागियों ने शिंदे से भी मुलाकात की थी। कांग्रेस में यह पहला मौका है जब विधानसभा चुनाव में संगठन विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहे नेताओं को घर वापसी के लिए साढ़े 4 साल से अधिक का समय लग गया है। वरिष्ठ नेता बताते हैं कि पूर्व में जो नेता विधानसभा चुनाव में पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होते थे, उनकी लोकसभा चुनाव के दौरान वापसी कर दी जाती थी लेकिन इस बार बागियों की बीते 4 सालों से संगठन में वापसी नहीं हो पाई है। 


4 पूर्व विधायकों के साथ 33 पदाधिकारी भी चल रहे बाहर
वर्तमान में हिमाचल कांग्रेस के करीब 33 नेता और पदाधिकारी संगठन से निलंबित चल रहे हैं। इनमें 4 पूर्व विधायक देहरा से योगराज, घुमारवीं से कश्मीरी सिंह, आनी से ईश्वर दास व करसोग से मस्त राम शामिल हैं। इसके साथ ही पूर्व में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके धर्मवीर धामी सहित कई अन्य बड़े-बड़े चेहरे भी संगठन से बाहर चल रहे हैं। उक्त नेताओं को चुनाव के समय पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते संगठन से बाहर का रास्ता दिखाया गया था। इनमें से कई ऐसे भी हैं, जिन्होंने बीते विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने पर आजाद प्रत्याशियों के तौर पर चुनाव लड़ा था।  


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