हिमाचल में बढ़ा इस मक्खी का खतरा, जानें किन क्षेत्रों में जोखिम ज्यादा?
punjabkesari.in Monday, Sep 29, 2025 - 12:41 PM (IST)

हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश में रेत मक्खी यानी फ्लेबोटोमस लॉन्गिडक्टस द्वारा फैलने वाली कटैनीय लीशमैनियासिस (सीएल) अब केवल सतलुज घाटी तक सीमित नहीं रह गई है। यह मक्खी कई अन्य क्षेत्रों में भी फैल चुकी है। इसके काटने से त्वचा पर घाव और दाग पड़ते हैं, जो धीरे-धीरे ठीक होते हैं। समय पर इलाज न होने पर यह त्वचा की सूरत भी बिगाड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकीय असंतुलन इसके फैलाव के मुख्य कारण हैं।
संयुक्त अध्ययन ने दी चेतावनी
आईसीएमआर-राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली और आईजीएमसी शिमला के विशेषज्ञों ने एक संयुक्त अध्ययन में यह खुलासा किया। हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के विभिन्न क्षेत्रों में किए गए शोध में पिछले वर्षों के आंकड़े सामने आए। वर्ष 1988-2001 में केवल 38 मामले दर्ज हुए, जबकि 2001-2003 के बीच संख्या बढ़कर 161 हुई। 2016-17 में रामपुर मेडिकल परिसर में अकेले 337 मरीजों का उपचार किया गया।
परजीवी और ऊंचाई का प्रभाव
शोध के अनुसार यह बीमारी लीशमैनिया ट्रोपिका और लीशमैनिया डोनोवानी परजीवियों से फैलती है। उच्च जोखिम वाले क्षेत्र 1000 से 1250 मीटर की ऊंचाई वाले हैं। उदाहरण के लिए कुल्लू के भुंतर (2050 मीटर) में कोई मामला नहीं मिला, जबकि निरमंड मंडल (1000-1200 मीटर) में कई मरीज सामने आए। किन्नौर के कल्पा (3000 मीटर) में बीमारी नहीं मिली, लेकिन 1600-2200 मीटर ऊंचाई वाले गांव प्रभावित रहे।
नियंत्रण और सिफारिशें
विशेषज्ञों ने जून से सितंबर के बीच सीएल नियंत्रण अभियान चलाने की सलाह दी है। 1000-1250 मीटर ऊंचाई वाले क्षेत्रों में निगरानी बढ़ानी जरूरी है। जिन जिलों में अभी तक कोई मामला नहीं आया है, लेकिन मौसम और भू-आवरण अनुकूल हैं, वहां सतर्कता बरतनी चाहिए। भूमि उपयोग में बदलाव, जंगल कटाई और झाड़ीदार भूमि में वृद्धि रेत मक्खियों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर रही है।
सावधानी ही सुरक्षा
सीएल और रेत मक्खियों के फैलाव में तापमान, नमी और भू-आवरण जैसे मौसमी कारक अहम हैं। समय पर निगरानी, जागरूकता और पर्यावरण संरक्षण से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।