बिटिया का दर्द बयां करती ‘गुड़िया अनसुनी चीख’ पुस्तक का विमोचन
punjabkesari.in Friday, Jul 06, 2018 - 06:46 PM (IST)

शिमला: चीखा वो भी होगा पर उसकी चीख भी अनसुनी रह गई... लेकिन फिर भी लोग सड़कों पर उतरे, इंसाफ के लिए, सत्ता सिंहासन डोला, अमीरों के कलेजे थर्राए और फिर नई जांच शुरू हो गई, जांच चलती गई, चलती ही गई... लेकिन उसकी चीख पर किसी का ध्यान न गया क्योंकि जांच इन्साफ के लिए नहीं थी! अब जांच सिर्फ शायद एक परिणाम के लिए थी और जो परिणाम सामने आया तो वह किसी को मंजूर नहीं, शायद उसे भी मंजूर नहीं... जो भुक्तभोगी था, दर्द बयां करती यह पंक्ति गुड़िया अनसुनी चीख नामक पुस्तक पर लिखी गई है।
पूर्व डी.जी.पी. आई.डी. भंडारी ने किय विमोचन
देश एवं प्रदेश को हिलाकर रख देने वाले कोटखाई गुड़िया प्रकरण को एक साल हो गया है। इसी उपलक्ष्य पर मदद सेवा ट्रस्ट ने गुड़िया अनसुनी चीख नामक किताब बनाई है। किताब के लेखक अश्वनी शर्मा, सहलेखक तनुजा थापटा (मदद सेवा ट्रस्ट की अध्यक्ष), परिकल्पना एवं संपादन दीपक सुंदरियाल, प्रबंधन विकास थापटा, टंकण चेतन वशिष्ठ, हिमांशु कुमार, विधि सलाहकार हीरा सिंह पंवर हैं। शुक्रवार को रिज मैदान पर पूर्व डी.जी.पी. आई.डी. भंडारी द्वारा पुस्तक का विमोचन किया गया। इस दौरान गुडिय़ा के परिजन भी उपस्थित रहे।
परिकल्पना के आधार पर लिखी गई है पुस्तक
पुस्तक परिकल्पना के आधार पर लिखी गई है। 6 जुलाई, 2017 को जिला शिमला के कोटखाई स्थित जंगल में गुड़िया का शव मिला था, ऐसे में पुलिस ने दुष्कर्म के बाद हत्या की आशंका जताई थी। किताब के माध्यम से बताया गया है कि गुड़िया प्रकरण से गुड़िया की आत्मा भी काफी परेशान है। इस मामले की जांच से जनता की तरह गुड़िया की आत्मा भी असंतुष्ट है, यह सब पुस्तक के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है। करीब 117 पन्नों वाली इस किताब में 6 जुलाई, 2017 से लेकर आज तक जनता का आक्रोश, राजनीति, पुलिस व सी.बी.आई. जांच तक का हवाला दिया गया है। इसमें एक गरीब की बेटी का दर्द बयां किया गया है। किताब में बताया गया है कि गुड़िया की आत्मा किस तरह परेशान एवं हैरान है, उसे भी यह मालूम नहीं हो पा रहा है कि आखिर उसके गुनहगार कौन हैं? इस मौके पर पूर्व डी.जी.पी. आई.डी. भंडारी ने कहा कि गुडिय़ा मामले की जांच सी.बी.आई. ने की है। जाहिर है कि सबसे बड़ी जांच एजैंसी द्वारा पकड़ा गया युवक ही गुनहगार होगा।
किसी एम.एल.ए. की बेटी होती तो न जाने क्या होता : पिता
गुडिय़ा के पिता ने कहा कि गुड़िया एक गरीब की बेटी थी यदि किसी एम.एल.ए. की बेटी होती तो न जाने क्या होता? उन्होंने आशंका जताते हुए कहा कि गुड़िया प्रकरण में एक ही युवक का हाथ नहीं है, इसमें और भी शामिल हैं। सी.बी.आई. पर विश्वास जताते हुए उन्होंने कहा कि इस मामले के अन्य अपराधियों पर भी शिकंजा कसा जाए। उन्होंने मांग की है कि गुड़िया के गुनहगारों को फांसी की सजा सुनाई जाए।
हाथ कांपते थे लिखते-लिखते : अश्वनी
गुड़िया अनसुनी चीख पुस्तक के लेखक अश्वनी शर्मा ने कहा कि इस किताब को लिखते समय मेरे हाथ कांप जाते थे। मात्र 15 दिनों में ही इस किताब को लिखा गया है, काफी उदासी महसूस कर रहा हूं। न जाने उस बिटिया ने किस तरह दर्द सहन किया होगा। अश्वनी द्वारा लिखी गई यह पहली पुस्तक है।
ऐसी परिकल्पना नहीं की कभी : संदुरियाल
साहित्यकार एवं किताब के परिकल्पना एवं संपादक दीपक सुंदरियाल का कहना है कि कोटखाई प्रकरण के बाद अब शायद ही कोई बाप अपनी बेटी को गुड़िया कहकर बुलाना चाहेगा। उन्होंने बताया कि जिस तरह गुड़िया अनसुनी चीख पुस्तक के लिए उन्होंने परिकल्पना की है वैसी पहले कभी नहीं की, न ही करना चाहते हैं। गुड़िया प्रकरण ने एक परिवार को नहीं बल्कि पूरे देश को जख्म दिया है।