Kangra: प्रतिवर्ष एक जौ के दाने के बराबर पाताल में धंस रहा यह अद्भुत शिवलिंग

punjabkesari.in Monday, Aug 05, 2024 - 05:18 PM (IST)

रक्कड़ (आनंद): हिमाचल के हरिद्वार के रूप में विख्यात प्राचीन कालीनाथ महादेव का ऐतिहासिक मंदिर जिला कांगड़ा में गरली-प्रागपुर के निकट ब्यास नदी के तट पर स्थित है। भू-शिवलिंग के बारे में एक जनश्रुति के अनुसार यह शिवलिंग प्रतिवर्ष एक जौ के दाने के बराबर पाताल में धंसता चला जा रहा है। मान्यता है कि जब यह शिवलिंग पूरी तरह से धरती में समा जाएगा तो कलियुग का अंत हो जाएगा। बैसाख मास यानि अप्रैल माह की संक्रांति के पावन अवसर पर इस तीर्थ स्थल पर पूजा-अर्चना एवं स्नान का विशेष महत्व है। लोगों का विश्वास है कि हरिद्वार एवं अन्य तीर्थ स्थलों की भांति ही इस पवित्र स्थल पर स्नान करने से पुण्य प्राप्त होता है। उज्जैन के महाकाल मंदिर के बाद कालेश्वर मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसके गर्भ गृह में ज्योतिर्लिंग स्थापित है।

पांडवों से जुड़ा है इतिहास
श्री कालीनाथ मंदिर का इतिहास पांडवों से जुड़ा है। लोक गाथाओं के अनुसार इस स्थल पर पांडव अज्ञातवास के दौरान आए थे जिसका प्रमाण ब्यास नदी तट पर उनके द्वारा बनाई गई पौड़ियों से मिलता है। जानकारी के अनुसार पांडव जब यहां आए तो भारत के पांच प्रसिद्ध तीर्थों हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन, नासिक व रामेश्वरम का जल अपने साथ लाए थे और जल को यहां स्थित तालाब में डाल दिया था जिसे ‘पंचतीर्थी’ के नाम से जाना जाता है। तभी से पंचतीर्थी में स्नान को हरिद्वार स्नान के तुल्य माना गया है।

एक अन्य जनश्रुति के अनुसार यह एक तपस्वी स्थल है। इसका प्रमाण इस स्थल पर स्थित ऋषि-मुनियों की समाधियों से मिलता है। इस मंदिर परिसर में भगवान शिव श्री कालीनाथ सहित नौ मंदिर तथा 20 मूर्तियां अवस्थित हैं। इस पवित्र स्थल पर बैसाखी स्नान को गंगा स्नान के तुल्य माना गया है। इस क्षेत्र के लोग जो हरिद्वार जाने में असमर्थ होते हैं वे यहां अस्थियां भी प्रवाहित करते हैं।

महाकाली की है तपोस्थली
ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर भगवती महाकाली जी ने 11000 वर्ष तक तपस्या की थी तथा उस तपस्या से भगवान शंकर खुश हुए व स्वयंभू होकर महाकाली जी को दर्शन दिए। मंदिर में स्थापित मूर्ति में शिव और शक्ति दोनों एक साथ विराजमान हैं।

क्या कहना है स्थानीय पंडित का
मुकेश पंडित जोकि पिछले 6 सालों से कालीनाथ कालेश्वर महादेव मंदिर में पूजा अर्चन करते हैं, उनका कहना है कि इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और दूरदराज के क्षेत्रों से भक्त यहां दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। यहां पर श्रावण माह, वैसाखी, शिवरात्रि के दिन भक्त अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए यहां पहुंचते हैं? स्थानीय लोगों व बाहर से आए श्रद्धालुओं द्वारा लंगर लगाए जाते हैं, यहां रुद्राभिषेक, यज्ञ व हवन की व्यवस्था मंदिर में रहती है।
 


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Kuldeep

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