जयकारों से गूंजा मां बाला सुंदरी मंदिर
punjabkesari.in Saturday, Oct 17, 2020 - 04:29 PM (IST)

कालाअंब: उत्तरी भारत के शक्तिपीठ माता बाला सुंदरी मंदिर में अश्विन नवरात्र का आगाज डी.सी. सिरमौर डा. आर.के. परूथी द्वारा आरती व माता के चरणों में शीश नवा कर किया गया। इस दौरान एस.पी. अजय कृष्ण भी मौजूद रहे। इस बार कोरोना से बचाव को लेकर बनाए गए नियमों का सख्ती से पालन किए जाने के लिए कड़ा प्रबंध किया गया है। डी.सी. ने संबंधित विभागीय अधिकारियों को सभी आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा। प्रथम नवरात्र से ही मेले में भक्तों का आना शुरू हो गया है।
श्रद्धालुओं को इन बातों का रखना होगा ध्यान
श्रद्धालुओं को मेले के दौरान मास्क पहनकर रखना होगा, मन्दिर में प्रसाद चढ़ाने व सार्वजनिक स्थानों पर थूकने पर भी पूर्ण पाबंदी रहेगी। लंगर, भजन- कीर्तन व जगराते आदि कार्यक्रमों पर पाबंदी रहेगी। मुंडन संस्कार नहीं होंगे। सरायों में ठहराव नहीं होगा। श्रद्धालुओं को कोरोना नियमों का पालन करना होगा। 10 वर्ष से छोटे बच्चों, 65 वर्ष से ऊपर के व्यक्तियों और गर्भवती महिलाओं के आने पर पाबंदी रहेगी। प्रत्येक श्रद्धालु को आरोग्य सेतु एप को डाऊनलोड करना होगा। बुखार, खांसी व जुकाम आदि लक्षणों वाले श्रद्धालुओं के आने पर पाबंदी रहेगी। श्रद्धालु मूॢतयों को नहीं छूएंगे।
ऑनलाइन दर्शनों का भी है प्रावधान
यदि कोई भक्त मेले में नहीं आना चाहता तो इस परिस्थिति में माता के दर्शन ऑनलाइन भी लाइव कर सकते हैं। जिला प्रशासन द्वारा माता बाला सुंदरी नाम से विभिन्न साइट के माध्यम से सुबह व सायं की आरती का प्रबंध किया जा रहा है।
मंदिर तक टैक्सी की होगी व्यवस्था
मंदिर में पहुंचने के लिए इस बार हिमुडा पार्किंग से मंदिर तक के लिए भक्तों को अब पैदल चलने की आवश्यकता नहीं होगी। मंदिर प्रबंधन द्वारा टैक्सी का प्रबंध भी किया गया है। इससे बिना पास दूर दराज से आने वाले लोगों के वाहनों की पार्किंग के बाद वे टैक्सी के माध्यम से मंदिर तक पहुंच सकेंगे।
मां बाला सुंदरी का इतिहास
मां बाला सुंदरी मंदिर का इतिहास 428 साल पुराना है। त्रिपुरबाला, बालासुंदरी व त्रिभवानी तीनों देवियों के यहां विराजमान होने से यहां का नाम त्रिलोकपुर पड़ा। मां बालासुंदरी के भवन से अढ़ाई किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में त्रिपुरा बाला ललिता देवी तथा 10 किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम दिशा में त्रिभवानी का मंदिर स्थित है। इन दोनों के दर्शन करने से पूर्व भक्त ध्यानू के दर्शन अवश्य करते हैं। इसके अलावा यहां देवी ताल तथा पीपल व मौलसिरी के प्राचीन मंदिर भी स्थित हैं। भक्तों का मानना है कि 300 वर्ष पूर्व यहां एक व्यापारी रहता था। रामदास नाम का यह व्यापारी एक बार मुजफ्फरनगर यू.पी. से यहां नमक लेकर आया था। उसने काफी नमक बेचा लेकिन नमक कम ही नहीं हो रहा था। यह देखकर वह घबरा गया। रात्रि को स्वप्न में मां भगवती ने उस व्यापारी को बाल रूप में दर्शन दिए और कहा कि मैं पिंडी रूप में तुम्हारी नमक की बोरी में आई हूं।
अब मेरा निवास तुम्हारे आंगन में स्थित पीपल वृक्ष की जड़ में है। लोक कल्याण हेतु तुम यहां एक मंदिर का निर्माण करो। सुबह होने पर व्यापारी ने पीपल का वृक्ष देखा। तभी बिजली की चमक व बादलों की गडग़ड़ाहट के साथ पीपल का पेड़ जड़ से फट गया तथा माता साक्षात रूप में प्रकट हो गईं। यह घटना विक्रमी संवत् 1627 की बताई जाती है। उस समय सिरमौर राजधानी का शासन महाराज प्रदीप प्रकाश के अधीन था। एक रात्रि माता ने उन्हें भी स्वप्न में दर्शन देकर भक्त रामदास वाली कहानी सुनाई तथा मंदिर बनवाने की इच्छा प्रकट की।
माता का आदेश पाकर महाराज प्रदीप प्रकाश ने तुरन्त ही मंदिर के निर्माण का आदेश दे दिया। 3 वर्षों में ही मंदिर का निर्माण पूरा कर लिया गया। इस मंदिर के लिए कीमती सामान आदि जयपुर से मंगवाया गया। 1630 में बने इस मंदिर की शोभा देखते ही बनती है। यह मंदिर मुगलकालीन वास्तुकला का जीता जागता प्रमाण है। भवन के चारों ओर देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं। 3 मार्च, 1974 को मंदिर की देखरेख का कार्य सरकार ने अपने हाथों में ले लिया तथा माता बाला सुंदरी मंदिर त्रिलोकपुर बोर्ड का गठन किया गया।