Himachal: किन्नौर की बेटी ने आयुष पीजी एंट्रैंस एग्जाम में लहराया परचम, ST कैटागरी में देशभर में किया टॉप
punjabkesari.in Sunday, Aug 03, 2025 - 04:11 PM (IST)

शिमला: हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिले किन्नौर से ताल्लुक रखने वाली डॉ. श्वेता नेगी ने अखिल भारतीय आयुष स्नातकोत्तर प्रवेश परीक्षा (AIAPGET)–2025 में शानदार कामयाबी हासिल कर पूरे राज्य का नाम रोशन किया है। अनुसूचित जनजाति श्रेणी में उन्होंने देशभर में प्रथम स्थान प्राप्त किया है, जबकि ओपन कैटेगरी में उनकी ऑल इंडिया रैंक 82वां रहा है। यह परीक्षा आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी जैसे पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में पीजी प्रवेश के लिए होती है। डॉ. श्वेता ने 99.69 पर्सेंटाइल स्कोर कर इस प्रतिष्ठित परीक्षा में अपनी मेहनत और लगन का लोहा मनवाया है। उनकी यह उपलब्धि न सिर्फ उनके परिवार और गांव के लिए, बल्कि पूरे किन्नौर और हिमाचल प्रदेश के लिए गर्व की बात है।
पिता शिक्षक ताे माता हैं गृहिणी
डॉ. श्वेता का सफर एक छोटे से गांव से शुरू होकर राष्ट्रीय मंच तक पहुंचा है। वे किन्नौर जिला के खावंगी (कागरा) गांव की रहने वाली हैं। उनके पिता वीरेंद्र सिंह नेगी पेशे से शिक्षक हैं और माता सुषमा कुमारी नेगी एक गृहिणी हैं। एक साधारण पृष्ठभूमि से आने वाली श्वेता ने हमेशा पढ़ाई को प्राथमिकता दी और सीमित संसाधनों में भी खुद को साबित किया।
रिकांगपिओ स्कूल से हासिल की प्रारंभिक शिक्षा
श्वेता ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रिकांगपिओ स्थित डीएवी स्कूल से प्राप्त की, जहां से उन्होंने 10वीं तक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने एसडी पब्लिक स्कूल से 12वीं की शिक्षा ग्रहण की। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने कांगड़ा जिले के प्रतिष्ठित आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज पपरोला का रुख किया, जहां से उन्होंने बीएएमएस (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी) की डिग्री हासिल की।
आयुर्वेद में करेंगी मास्टर्स
अब जब डॉ. श्वेता ने देश की सबसे प्रतिष्ठित आयुष पीजी प्रवेश परीक्षा में शीर्ष रैंक हासिल किया है, तो उनका अगला कदम आयुर्वेद में विशेषज्ञता हासिल करना है। श्वेता ने अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता के आशीर्वाद, शिक्षकों के मार्गदर्शन और अपने कठोर परिश्रम को दिया है।
छात्रों के लिए बनीं प्रेरणा
डॉ. श्वेता ने यह साबित कर दिया है कि पहाड़ी और दूरस्थ इलाकों में रहने वाली बेटियाँ भी अगर संकल्प लें तो किसी भी मुकाम को हासिल कर सकती हैं। उनके इस जज़्बे और मेहनत ने न सिर्फ युवाओं को प्रेरित किया है, बल्कि किन्नौर जैसे सीमांत क्षेत्र में शिक्षा को लेकर नई उम्मीदें भी जगाई हैं।