लाहौल-स्पीति की पट्टन घाटी में आदि पर्व जोबरंग योर उत्सव शुरू, मुखौटा नृत्य होगा आकर्षण का केंद्र
punjabkesari.in Wednesday, Feb 16, 2022 - 11:04 PM (IST)
मनाली (ब्यूरो): लाहौल-स्पीति की पट्टन घाटी में बुधवार को योर उत्सव शुरू हो गया। इस आदि पर्व की घाटी में अलग पहचान है। फागली के 15 दिनों बाद पूर्णमाशी को 3 दिवसीय योर उत्सव का आगाज हुआ। इसमें मुखौटा नृत्य मुख्य आकर्षण का केंद्र रहेगा। पट्टन में इसे मोहरा गरफी तथा गाहर में बग क्योरदे कहा जाता है। जोबरंग का 3 दिवसीय सह्योर, खश्पोरी और योर हर वर्ष की भांति फागली के बाद पूर्णमाशी के दिन से धूमधाम से शुरू हो गया है। स्थानीय निवासी मोहन लाल, विवेक व सुरेश ने बताया कि योर के 2 दिन पहले जोबरंग में वासा गोची का आयोजन किया गया, जिसमें दो नमज, अमर पुजारी चादर और पगड़ी पहने वीर कोटशनी और लक्ष्मी नारायण मंदिर में यौरा और देवदार के पत्तों से पूजा की गई। तत्पश्चात गांव में सभी के घर बारी-बारी जाकर घर के मालिक को सभी देवताओं का नाम निकाल कर यौरा भेंट कर धरतरी माता बोला जाता है, जवाब में तब भोत भल्लो कहा जाता है।
वीरवार को दिन खुलने से पहले खोरदेव स्वामी को सत्तू का टोटू देने के बाद रणसिंघ बजाया जाएगा। सुबह होने पर दो नमज और पुजारी काठु का टोटू ले जाकर गांव के ऊपर निर्धारित स्थान पर पूजा कर रणसिंघ बजाएंगे। यहां से वापस आकर मुखौटा, मोहरे पहनेंगे और गांव के बीच बर्फ के स्तंभ, राश के इर्द-गिर्द जे महाराज के नारों के बीच मुखौटा और चोग पहन कर ढोल नगाड़े और बांसुरी की धुन पर मुखौटा नृत्य किया जाएगा। अंतिम दिन आगामी वर्ष के मौसम एवं फसलों के बारे भविष्यवाणी भी की जाएगी।
आटे के निर्मित किंच के दिल में तीर मारने वाले को होती है पुत्र रत्न की प्राप्ति
बुधवार को गांव शूलिंग में देवी मोगर को समर्पित लहमोई उत्सव मनाया गया। स्थानीय निवासी अशोक कुमार ने बताया कि इस मौके पर गांववासी आटे से निर्मित सांकेतिक आईबैक्स बनाते हैं, जिसे किंच कहा जाता है और साथ में तीरंदाजी भी की जाती है। मूलत: लहमोई उत्सव पानी और आगामी फसल के लिए मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि किंच के दिल में तीर लगाता है तो उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
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