हिमाचल में आतंक का सबब बने बंदरों से अब ऐसे निपटेगी सरकार

punjabkesari.in Thursday, Apr 05, 2018 - 11:47 PM (IST)

शिमला: हिमाचल प्रदेश में किसानों और बागवानों के लिए आतंक का सबब बन चुके बंदरों से निपटने के लिए प्रदेश सरकार नीति बनाएगी। इसके तहत प्रदेश सरकार केंद्र से बंदरों के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाने की भी मांग करेगी ताकि प्रदेश में बंदरों की लगातार बढ़ती संख्या को काबू किया जा सके। विधायक अनिरुद्ध सिंह द्वारा प्राइवेट मैंबर डे के तहत लाए संकल्प के जवाब में वन मंत्री गोविंद ठाकुर ने यह बात सदन में कही। मंत्री के जवाब से संतुष्ट अनिरुद्ध सिंह ने बाद में अपना संकल्प वापस ले लिया। वन मंत्री ने दावा किया कि एक अध्ययन में पता चला है कि बंदरों की खाने-पीने की आदतों में बदलाव, खासकर चिप्स, सॉफ्टी, कोल ड्रिंक और इस तरह के अन्य जंक फूड खाने से इनकी प्रजनन क्षमता 21 फीसदी बढ़ गई है। 


प्रदेश में बंदरों की संख्या 3.80 लाख के ऊपर
उन्होंने कहा कि एक आंकड़े के मुताबिक प्रदेश में बंदरों की संख्या 3.80 लाख के ऊपर पहुंच गई है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित 8 वानर नसबंदी केंद्रों में हर साल 40 हजार बंदरों की नसबंदी की जा सकती है। हालांकि इन केंद्रों में पूरी क्षमता से यह कार्य नहीं हो रहा है क्योंकि बंदरों को पकडऩा सबसे बड़ी समस्या है। उन्होंने बताया कि राज्य में अभी तक 1,40,643 बंदरों की नसबंदी की जा चुकी है जिस पर 21.29 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। वन मंत्री ने यह भी कहा कि विभाग बंदर मारने वालों को और प्रोत्साहन देगी और विभाग परेशान नहीं करेगा। 


बंदर पकडऩे के लिए स्थानीय युवाओं तथा स्वयं सेवकों को देंगे प्रशिक्षण
वन मंत्री ने कहा कि बंदरों को पकडऩे व नसबंदी केंद्र तक लाने हेतु प्रति बंदर 700 रुपए की राशि निर्धारित है। यदि एक टोली में 80 प्रतिशत से अधिक बंदर पकड़े जाते हैं तो ये राशि 700 के बजाय 1000 रुपए प्रति बंदर प्रदान की जाती है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने नई पहल करते हुए नसबंदी हेतु बंदरों को पकडऩे के लिए स्थानीय युवाओं तथा स्वयं सेवकों को प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया है। इस दौरान विधायक आशीष बुटेल ने उनके विधानसभा क्षेत्र के गोपालपुर में स्थापित बंदर नसबंदी केंद्र को किसी दूसरी जगह स्थानांतरित करने की मांग की।


सदन में चर्चा के दौरान न मुख्यमंत्री और न ही वन मंत्री थे मौजूद
बंदरों की समस्या पर जब सदन में चर्चा हो रही थी तो सदन में न तो मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मौजूद थे और न ही वन मंत्री और न कोई अधिकारी। आलम यह था कि अधिकारी दीर्घा में वन विभाग का भी कोई अफसर नहीं था। कांग्रेस विधायक दल के नेता मुकेश अग्रिहोत्री और जगत सिंह नेगी ने यह मामला उठाया। अग्रिहोत्री ने कहा कि इससे सरकार की संवेदनशीलता का पता चलता है। यहां इतने गंभीर मामले पर चर्चा हो रही है और न मंत्री और न ही अधिकारी यहां हंै। उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष से कहा कि ढंग से फटकार लगाओ, आप पर ही दारोमदार है। बाद में वन मंत्री गोविंद ठाकुर सदन में पहुंचे और उन्होंने चर्चा का उत्तर दिया। 


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Vijay

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