अर्की के जंगलों में भी पनपन रही गुच्छी, कई बीमारियों के लिए है रामबाण

punjabkesari.in Thursday, Nov 02, 2023 - 11:23 PM (IST)

कुनिहार (नेगी): अक्सर अप्पर हिमाचल के पहाड़ी एवं नमी वाले वातावरण में प्राकृतिक तौर पर उगने वाली गुच्छी अब सोलन जिला के अर्की उपमंडल के जंगलों में भी पनपना शुरू हो गई है। इससे ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि गुच्छी के लिए अर्की उपमंडल का मौसम अनुकूल बना हुआ है। बाजार में गुच्छी की कीमत बहुत ज्यादा है और यह आम आदमी की पहुंच से भी बहुत दूर है। यदि ग्रामीणों को गुच्छी की सही पहचान हो तो वे अपनी आर्थिकी सुदृढ़ कर सकते हैं। कुल्लू व शिमला के ऊपरी इलाकों तथा सोलन व सिरमौर में कई लोग इसे बेचकर लाखों रुपए तक कमा लेते हैं।
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मार्किला एस्क्यूपलैंटा है गुच्छी का वैज्ञानिक नाम 
गुच्छी का वैज्ञानिक नाम मार्किला एस्क्यूपलैंटा है। इसे हिंदी में स्पंज मशरूम कहते हैं। प्राकृतिक तौर पर पैदा होने वाली गुच्छी की गुणवत्ता हासिल करना आज भी वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बना हुआ है। यही कारण है कि गुच्छी की बाजार में कीमत 20 से 30 हजार रुपए प्रति किलो तक है। 

गुच्छी में कार्बोहाईड्रेट की मात्रा शून्य
वैज्ञानिकों के अनुसार गुच्छी में कार्बोहाईड्रेट की मात्रा शून्य होती है। यह हृदय रोग, नियूरेपिक, मोटापा और सर्दी-जुकाम जैसी बीमारियों से लड़ने में रामबाण साबित होती है। इसका इस्तेमाल कई घातक बीमारियों को ठीक करने वाली दवाइयों के निर्माण में भी होता है। डाॅक्टर भी इसे संजीवनी मानते हैं। समाजसेवी आरपी जोशी ने कहा कि गुच्छी अक्सर पहाड़ी एवं नमी वाले वातावरण में पनपने वाला फंगस है। उपमंडल में भी बहुत से घने जंगल एवं नमी वाले स्थान हैं। यदि ग्रामीणों को इसकी सही से पहचान करना आ जाए तो उनकी आजीविका का भी साधन बन सकता है। सुभाष शर्मा ने कहा कि स्थानीय निवासियों को गुच्छी की बहुत कम जानकारी है। 
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Content Writer

Vijay

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