हाल-ए-हिमाचल: फिर राहुल का कसूर क्या ???

punjabkesari.in Tuesday, Mar 26, 2019 - 12:18 PM (IST)

शिमला (संकुश): चुनावी वेला में हिमाचल में दिलचस्प समीकरण बन रहे हैं। पूर्व संचार राज्य मंत्री सुखराम ने एकबार फिर पलटी मारी है और पोते को टिकट दिलाने के लिए कांग्रेस में चले गए हैं। कभी संचार घोटाले के कीचड़ में लिपटकर कांग्रेस से दर-बदर हुए सुखराम को लेकर बीजेपी ने लगातार हफ्ता भर संसद ठप रखी थी। हिमाचल में भी विधानसभा के सत्र में जगत प्रकाश नड्डा हाथ में टेलीफोन और गले में नोटों का हर पहनकर सदन में पहुंचे थे। बाद में वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'दूरगामी सोच' के चलते सुखराम को बीजेपी ने गले लगा लिया और उनकी मदद से सरकार बना ली। सरकार बनने के बाद प्रेम कुमार धूमल ने सुखराम को साइड लाइन करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जिसके चलते अगले विधानसभा चुनाव में सुखराम की पार्टी हिमाचल विकास कांग्रेस बिखर गई। लेकिन सुखराम ने फिर से जुगत लड़ाकर कांग्रेस में एंट्री मार ली। उनके बेटे कांग्रेस राज में ग्रामीण विकास मंत्री रहे। जब कांग्रेस के विपक्ष में रहने की बारी आई तो अनिल शर्मा बीजेपी में शामिल हुए और फिर से मंत्री बनने में सफल हुए। अबके अनिल शर्मा के मंत्री रहते ही सुखराम ने फिर से कांग्रेस में पलटी मारी है।
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इस तरह से आया-राम, गया, राम का जुमला हिमाचल में अब सुखराम हो गया है। उधर सुखराम की ही तरह दागी होकर संसद से बाहर हुए सुरेश चंदेल भी गुलाटी मारकर कांग्रेस का हाथ थामने को आतुर हैं। बीजेपी के राज्य अध्यक्ष रहे, पूर्व सांसद और वर्तमान में बीजेपी के राष्ट्रीय किसान मोर्चा के प्रतिष्ठित पदाधिकारी सुरेश चंदेल पर संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने का आरोप लगा था। वे तब संसद द्वारा ही घर भेज दिए गए थे। लेकिन उनको भी लगता है कि अगर सुखराम के दाग अच्छे हैं तो उनके बुरे कैसे हो सकते हैं। इसलिए वे भी इसबार जैसे तैसे जहां-तहां से भी मिले हासिल कर लो की तर्ज़ पर टिकट के लिए पलटी मारने को आतुर हैं। बताते हैं कि आश्रय की तरह उनका टिकट भी कांग्रेस में पक्का माना जा रहा है। अब सवाल यह है कि अगर ये नेता कांग्रेस में जाने को आतुर हैं तो इसकी वजह क्या है ?? वजह साफ है।
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हिमाचल कांग्रेस के बड़े नेता चुनाव लड़ने से घबरा रहे हैं या ज्यादा सौम्य भाषा का इस्तेमाल करना है तो कह लें कि कतरा रहे हैं। वैसे बात एक ही है। अब देखिये न अगर कांग्रेस को सच में टक्कर देनी होती तो मंडी में वीरभद्र सिंह से सशक्त उमीदवार दूसरा कोई नहीं है। लेकिन वीरभद्र सिंह न तो खुद लड़ना चाहते हैं, न पत्नी और न ही बेटे को लड़वाना चाहते हैं। तो फिर कांग्रेस को कोई तो लड़वाना है। इसलिए चलो इम्पोर्ट करो। हमीरपुर में तो कांग्रेस बरसों से इम्पोर्टेड नेताओं से काम ले रही है। इसबार हालांकि उसके पास मुकेश अग्निहोत्री और सुक्खू जैसे नेता थे जो मुकाबला कड़ा करते और तमाम संभावनाएं जिन्दा रखते। लेकिन वे भी चुनाव लड़ने से टल गए। यही नहीं जो लड़ना चाहता है उसका भी विरोध हो रहा है। सुक्खू गुट राणा को टिकट नहीं देना चाहता। ऐसे में चंदेल को लाने की चालाकी की जा रही है। परिणाम बताने की जरूरत नहीं।
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उधर कांगड़ा में सुधीर, बाली, आशा कुमारी, चंद्र कुमार जैसे नेताओं के होते हुए भी पवन काजल का नाम उछल रहा है। यानी यहां भी कोई चुनाव लड़ना नहीं चाहता और सब एक दूसरे को आगे धकेल रहे हैं। तो फिर अब आप ही बताएं कि आखिर राहुल गांधी का कसूर क्या है? राहुल के पैनल में तो वीरभद्र सिंह, सुक्खू/मुकेश और कांगड़ा से सुधीर/बाली थे। इस सबके बीच नए अध्यक्ष कुलदीप राठौर क्या कर रहे हैं यह भी दिलचस्प सवाल है। वे सब जानते हुए भी अगर चुप रहकर राहुल गांधी की योजना को पलीता लगा रहे हैं तो फिर क्या कहा जा सकता है। बेहतर होता कि वे राहुल गांधी के सामने सही तस्वीर रखते और अड़ जाते कि सबसे मजबूत उम्मीदवार ही उतारा जाए फिर चाहे परिणाम जो भी हो। लेकिन फिलहाल वे ऐसा करते नहीं दिख रहे। ऐसे में उनपर लगे कठपुतली अध्यक्ष के आरोपों की ही पुष्टि होगी। हालांकि अभी टिकट घोषित नहीं हुए हैं। कुलदीप चाहें तो कांग्रेस की रौशनी बरकरार रह सकती है। बीजेपी की लिस्ट आने के बाद सोशल मीडिया में कांग्रेस को तीन सीटें जाने की चर्चा छिड़ गई थी। सुखराम की कलाबाजी के बाद अब यह चर्चा दो-दो पर पहुंच गई है। कांग्रेस की सूची आने के बाद क्या होगा यह देखना भी कम दिलचस्प न होगा।
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