आधुनिक व मशीनी युग की पड़ी मार, डूबने की कगार पर पहुंचा हस्तशिल्प का कारोबार (Video)
punjabkesari.in Sunday, Oct 20, 2019 - 04:58 PM (IST)
कुल्लू (मनमिंदर): हस्तशिल्प उद्योग अब धीरे-धीरे इस आधुनिक व मशीनी युग की भागमभाग में घटता जा रहा है। अब हस्तशिल्प को ज्यादा रिस्पॉन्स नहीं मिलता। आज हस्तशिल्प से बनी वस्तुओं का प्रदर्शन ड्राइंग रूम की दीवारों पर मात्र लटकने वाले एक शोपीस तक सीमित हो गया है। इससे इस कुटीर उद्योग में जुड़े हजारों कारोबारी हाथ पर हाथ धरे रह गए हैं।
दशहरा उत्सव में आए मंडी से कारोबारी मेहर सिंह व ब्रिज लाल का कहना है कि अब युवा भी इस कारोबार से जुडऩे से इंकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रदेश की पारंपरिक वस्तुएं जिनका पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए अहम रोल होता है, अब उसे प्लास्टिक उद्योग ने एकदम खत्म कर दिया है। इससे हस्तशिल्पकारी भी हताश हो गए हैं।
प्रदेश के सभी मेले जो कई सदियों से प्रदेश की संस्कृति का प्रतीक रहे हैं व यहां प्रयोग होने वाले औजार व बांस की लकड़ी से बनने वाले किल्टे, टोकरी व कई प्रकार की वस्तुओं से लोग जी चुराने लगे हैं। हालांकि प्रदेश में हस्तशिल्प जो मेले का अहम पहलू होता था, उससे विमुख होने वाला इंसान आज इसकी महत्ता को भूलकर पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली वस्तुओं की ओर बढ़ रहा है।
उनका कहना है कि हालांकि प्लास्टिक की वस्तुएं टिकाऊ व किफायती लगती हैं लेकिन इनसे पर्यावरण को बचाने की जगह उसे प्रदूषित करने की क्षमता ज्यादा होती है। पहले जब बांस के बने किल्टे व टोकरी जोकि टूट कर भी खेतों में खाद के लिए उपयोग में लाए जाते हैं, मगर इनका कारोबार करने वाले व इन्हें बनाने वालों को मशीनी युग की मार सहन करनी पड़ रही है, जिससे यह उद्योग समाप्ति की ओर अग्रसर है।
हालांकि केंद्रीय हथकरघा व हस्तशिल्प मंत्रालय इस ओर गंभीर है लेकिन इस ओर ध्यान न देना राज्य सरकार की नाकामी है। इसके लिए लोगों में जागरूकता की कमी भी जिम्मेदार है, क्योंकि सरकार की योजनाएं नहीं पहुंचती या उन्हें स्कीमों का ज्ञान नहीं है। इसके प्रति जागरूक होकर कृषि व बागवानी कार्य में रोज प्रयोग होने वाली इन वस्तुओं के बाजार में ग्राहक नहीं हैं, लेकिन आधुनिकता के इस दौर में हस्तशिल्प कारोबार शोपीस बनकर रह गया है।
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