चीन का सेब पर आयात शुल्क खत्म करने का दबाव, हिमाचली बागवानों पर संकट के बादल

punjabkesari.in Sunday, Jan 14, 2018 - 11:09 AM (IST)

शिमला: दुनिया में चीन सबसे ज्यादा सेब की पैदावार करने वाला देश है। इसलिए चीन दबाव डाल रहा है कि सेब को जल्द शुल्क फ्री किया जाए। सार्कदेशों के अलावा 6 अन्य यानी 16 देशों के बीच दो बार हो चुकी बैठक में चीन ने सेब के लिए जल्द बिजनैस-फ्री वीजा देने की वकालत की है। केंद्र सरकार यदि सेब पर आयात शुल्क खत्म करने को हामी भर देती है तो इससे प्रदेश का 4200 करोड़ रुपए से ज्यादा का सेब उद्योग खत्म हो जाएगा। ऐसा करने से हिमाचल सहित जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड के भी हजारों बागवान परिवारों की रोटी उनसे छिन जाएगी। दुनिया के 16 देशों ने व्यापारिक बंदिशें खत्म करने के लिए पहल की है। इसमें 92 फीसदी कृषि व औद्योगिक उत्पादों पर आयात शुल्क शून्य करने का प्रस्ताव है। 


80 फीसदी उत्पादों पर नैगोसिएशन के लिए भारत भी तैयार है। इसे लेकर 16 देशों में दो चरण की बैठक संपन्न हो चुकी है। अंतिम दौर की बैठक इसी साल दिसम्बर में होनी प्रस्तावित है। ये देखते हुए प्रदेश के बागवान सेब को स्पैशल फ्रूट का दर्जा देने के लिए मुखर होने लगे हैं। इन दिनों फल एवं सब्जी उत्पादक संघ इसे लेकर जगह-जगह बैठकें कर रहा है। इनमें ग्रोवर मांग कर रहे हैं कि सेब को स्पैशल फ्रूट का दर्जा देकर इस पर आयात शुल्क खत्म करने के बजाय बढ़ाया जाए लेकिन केंद्र के पास फिलहाल ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। 


बागवानों को सरकार से आस
प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने भी 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले सुजानपुर रैली के दौरान सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने का वायदा बागवानों से किया था लेकिन चुनाव जीतने के बाद वह कई बार हिमाचल आ चुके हैं मगर बागवानों से किया वायदा पूरा करने का उन्होंने जिक्र तक नहीं किया। इससे प्रदेश के बागवान मायूस हैं। अब प्रदेश और केंद्र दोनों जगह भाजपा की सरकार है। इस कारण बागवानों को आस बंध गई है कि केंद्र सरकार सेब को स्पैशल फ्रूट का दर्जा देकर सेब के उद्योग को खत्म होने से बचाएगी।


डब्ल्यू.टी.ओ. के साथ भी यू.पी.ए.-2 ने कर रखा है करार
पूर्व की यू.पी.ए.-2 सरकार ने 2012 में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) के साथ भी करार कर रखा है। इस करार के मुताबिक डब्ल्यू.टी.ओ. कभी भी दुनिया के तमाम देशों में लगी व्यापारिक बंदिशें खत्म कर सकता है। डब्ल्यू.टी.ओ. के ऐलान के बाद विभिन्न देशों से कोई भी उत्पाद बिना किसी शुल्क के आयात व निर्यात किया जा सकेगा। इससे भी सेब को तभी बचाया जा सकेगा यदि केंद्र सरकार सेब को स्पैशल फ्रूट का दर्जा दे देती है।


भारत के बाजारों पर चीन की नजरें
भारत के पड़ोसी देश चीन की नजर भारतीय बाजार पर टिकी हुई है। चीन में प्रति हैक्टेयर 50 मीट्रिक टन से ज्यादा सेब की पैदावार हो रही है जबकि भारत में प्रति हैक्टेयर 7 से 8 मीट्रिक टन सेब हो रहा है। इसकी वजह यह है कि चीन में सेब की पैदावार पर लागत बहुत कम है जबकि भारत में लागत बहुत ज्यादा है। हिमाचल के बागवान को तब जाकर मुनाफा होता है जब उनका सेब 60 रुपए प्रति किलोग्राम से ज्यादा के दाम पर बिके। चीन 28 रुपए प्रति किलो मुम्बई में सेब देने को तैयार है। चीन के अलावा चीली, न्यूजीलैंड व ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया के 40 देशों से भारत के लिए सेब आयात किया जा रहा है। इनके कारण प्रदेश का सेब उद्योग उजड़ जाएगा। इसे बचाने के लिए सेब को स्पैशल फ्रूट का दर्जा देना अनिवार्य हो गया है।


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