स्मृति शेष : जब 6 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने थे वीरभद्र सिंह

punjabkesari.in Thursday, Jul 08, 2021 - 11:37 PM (IST)

शिमला (ब्यूरो): हिमाचल प्रदेश में सबसे लम्बे समय 6 बार मुख्यमंत्री की शपथ लेने वाले वीरभद्र सिंह वर्ष 1998 में 6 दिन के लिए भी मुख्यमंत्री बने थे। दरअसल 1997 में समय से एक वर्ष पहले ही वीरभद्र सिंह ने चुनाव करवाने का फैसला लिया था ताकि समय की नजाकत को समझते हुए वह सरकार को रिपीट कर सकें। भाजपा में उस समय जमकर खींचतान चल रही थी। इसी का लाभ वीरभद्र सिंह लेना चाहते थे। सुखराम से उन्हें कड़ी चुनौतियां मिल रहीं थीं। वर्ष 1998 में समय से एक वर्ष पहले चुनाव करवाने के बावजूद भी कांग्रेस को उनकी अगुवाई में 31 सीटें मिली थीं। कांग्रेस से अलग होकर हिविकां का गठन करने वाले सुखराम को 4 तो भाजपा को 29 जबकि 1 सीट पर रमेश धवाला निर्दलीय चुनाव जीतकर आए थे। बर्फबारी की वजह से ट्राइबल की 3 सीटों पर चुनाव बाद में होने थे। किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। शिमला में जबरदस्त सत्ता संघर्ष हुआ। कांग्रेस पार्टी ने निर्दलीय रमेश धवाला को जबरन अपने खेमे में मिला लिया। वीरभद्र सिंह ने 6 मार्च, 1998 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 12 मार्च को उन्हें विधानसभा में बहुमत साबित करना था लेकिन बहुमत न मिलने के चलते अंतत: उन्हें 6 दिन बाद ही इस्तीफा देना पड़ा।

धर्मशाला को दूसरी राजधानी का दर्जा देने को उठाया था कदम

वीरभद्र सिंह ने धर्मशाला को दूसरी राजधानी का दर्जा दिलाने के लिए काम किया। उन्होंने जिला मुख्यालय धर्मशाला को प्रदेश को दूसरी राजधानी का दर्जा भी दिया था, लेकिन कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने पर यह मामला विवादों में रहा। धर्मशाला को दूसरी राजधानी का दर्जा दिए जाने के बाद उनके द्वारा यहां मिनी सचिवालय की भी स्थापना करवाई गई और यह भी सुनिश्चित किया गया कि जिला कांगड़ा ही नहीं बल्कि प्रदेश के अन्य मंत्री भी यहां पर बैठ कर लोगों की समस्याओं का निवारण करेंगे।

कॉलेज भवन में ही करवा दिया विधानसभा सत्र

पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह जो कह देते थे, उस पर अमल भी करते थे। उनके निर्णय की बदौलत ही आज धर्मशाला के तपोवन में विधानसभा का सत्र आयोजित हो पाया। इससे पहले एक बार उन्होंने राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला के प्रयास भवन में विधानसभा के शीतकालीन सत्र का आयोजन करवा दिया था।


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Vijay

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