बागवानों के लिए पैदा हुई मुसीबत, ज्यादातर सेब के पेड़ वूली एफिड रोग की चपेट में
punjabkesari.in Thursday, Nov 14, 2019 - 12:20 PM (IST)

चंबा (विनोद): प्रदेश के साथ-साथ जिला की मुख्य नकदी फसल की सूची में सेब का सबसे ऊपर नाम आता है। प्रदेश की जी.डी.पी. को प्रभावी करने वाली इस फसल के पेड़ों पर वूली एफिड के रोग ने हमला कर दिया है। जिला चंबा की बात करें तो इस समय जिला के करीब 60 प्रतिशत बागवान अपने सेब के बगीचों में इस बीमारी के लक्षणों को देखकर बुरी तरह से परेशान हैं।
चिंता की बात है कि इस रोग से सेब के पेड़ों को बचाने के लिए ज्यादातर जिस दवाई का प्रयोग किया जाता है वह इन दिनों मार्कीट में नहीं मिल रही है। जिनके पास यह दवाई मौजूद है वह उसके दोगुना दाम वसूल कर रहा है, ऐसे में जिला के बागवानों के लिए विकट स्थिति पैदा हो गई है। अगर वह ऊंचे दामों पर दवाई नहीं खरीदता है तो वर्षों की उसकी मेहनत इस रोग की भेंट चढ़ जाएगी और अगर वह ऊंचे दामों पर दवाई खरीदता है तो उसके लिए उसे भारी आॢथक परेशानी झेलनी पड़ती है। इस बीच बागवानी विभाग की मानें तो उसके लिए यह स्थिति बेहद विकट बनी हुई।
किन-किन क्षेत्रों में देखी गई यह बीमारी
जानकारी के अनुसार जिला चम्बा के भरमौर, तीसा, सलूणी व चम्बा उपमंडल के दायरे में आने वाले उन क्षेत्रों में यह रोग देखने को मिल रहा है जहां पर सेब के बगीचें मौजूद हैं। हालांकि कुछ जागरूक बागवानों ने इस मुसीबत से राहत पाने के लिए शैड्यूल फोलो किया हुआ है जिस वजह से वे इन दिनों निशचिंत हैं।
किन्हें पेश आती है अधिक परेशानी
बागवानी विभाग की मानें तो जो जागरूक बागवान बागवानी विभाग के निर्धारित शैड्यूल को फोलो करता है उसे इस प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है। किन्हीं कारणों से ऐसा रोग पेड़ को लग भी जाए तो अधिक नुक्सान नहीं पहुंचता है। इसलिए अधिक से अधिक लोगों को बागवानी विभाग के शैड्यूल को फोलो करना चाहिए।
क्या हैं रोग लक्षण
इस रोग यूं तो पेड़ की जड़ों में पैदा होता है लेकिन इसके बारे में तब पता चलता है जब पेड़ की टहनियों पर सफेद रूई नजर आने लगती है। इस स्थिति में बागवान के पास महज यही उपचार रहता है कि वह तुरंत क्लोरपाईरिफोस रसायन का छिड़काव पेड़ पर व उसकी जड़ों में करें।
क्या है उपाय
विभाग के अनुसार जिस पेड़ पर इस रोग ने हमला किया हो उस पड़े पर इस रसायन का 1 लीटर पानी में 1 से 2 मिलीलीटर तक प्रयोग करें जबकि पेड़ के नीचे एक लीटर पानी में 5 से 10 मिलीलीटर रसायन मिलाकर छिड़काव करे।
क्या कहते हैं बागवान
राम कुमार, धीरज कुमार, चुनी लाल, नरेंद्र कुमार, महेंद्र सिंह, अमर सिंह, कमल कुमार, पवन शर्मा, जगदीश कुमार, खेमराज, किशन चंद, रूप लाल, मोहन लाला, अमर चंद, अश्वनी ठाकुर, राजेश कुमार, जोगेंद्र, चतर सिंह, शमशदीन, राजीव कुमार, अब्दुल मजीद, परमेश्वर, मुहम्मद कासिम, मुहम्मद लतीफ व केवल कुमार का कहना है कि यह देखने में आया है कि जब भी बागवान परेशानी में होता है तो विभाग उसके काम नहीं आता है। जिस जिला में बागवानी विभाग के 45 बिक्री केंद्र में 30 पर ताला लटका है और जहां विषय विशेषज्ञों के पद रिक्त चल रहें हों उक्त जिला कैसे बागवानी के क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है।
ज्यादा मंगवाए तो मुसीबत कम मंगवाए तो मुसीबत
विभाग की मानें तो उसके लिए दोनों स्थिति में परेशानी पेश आती है। सरकारी व्यवस्था कुछ ऐसी है कि अगर विभाग बिना डिमांड के अधिक मात्रा में दवाई मंगवा लेता है और उसकी बिक्री नहीं होती है तो विभाग को उसकी भरपाई करनी पड़ती है और अगर कम दवाई मंगवाए तो बागवान विभाग के प्रति नाराजगी जताता है।
बाजार से 25 से 50 प्रतिशत कम दामों पर मिलती है सरकारी दवाइयां
जानकारी अनुसार विभाग द्वारा बागवानों को जो दवाइयों की आपूॢत करती है उसमें सरकार की तरफ से 25 से 50 प्रतिशत कम दामों पर मुहैया करवाया जाता है। यही वजह है कि जब बागवानों को सरकारी दवाइयां नहीं मिलती हैं तो विभाग को लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ता है जबकि विभाग की मानें तो सरकारी नियमों के अनुरूप किसी भी प्रकार की दवाई मंगवाने के लिए लोगों की डिमांड होना बेहद जरूरी है लेकिन बीमारी लगने से पूर्व कोई भी बागवान डिमांड नहीं करता है।
सेब की यह बीमारी अब दूसरे फलों को ले रही चपेट में
बागवानी विभाग की मानें तो पहले यह बीमारी महज ऊंचाई व ठंड वाले क्षेत्रों में ही सेब के पेड़ों को लगती थी लेकिन जब यह बीमारी निचले क्षेत्रों में भी पहुंच चुकी है। इस वजह से कई फल भी इस रोग की चपेट में आ चुके हैं।
जिला के 10 से 20 हजार हैक्टेयर में होती है सेब की खेती
जिला चंबा में करीब 18 हजार हैक्टेयर भूमि पर बागवानी होती है इसमें 8 से 10 हजार हैक्टेयर पर होती है सेब की बागवानी। इस वजह से जिला चंबा की मुख्य नकदी फसल में सेब को पहला स्थान हासिल है। बीते वर्ष जिला चम्बा में 8 से 10 हैक्टेयर टन सेब की फसल पैदा हुई थी तो इस बार जिला में बंपर फसल करीब 15 हजार हैक्टेयर हुई है।
महंगी दवाइयों से नहीं मिल रही निजात
बागवानों को बाजार से ऊंचे दामों पर दवाइयां खरीदने के लिए इसलिए मजबूर होना पड़ रहा है क्योंकि विभाग के पास पर्याप्त मात्रा में दवाइयां व स्टाफ नहीं है। विभाग की परेशानी यह है कि बागवान पहले इन दवाइयों की डिमांड नहीं देते हैं जिस वजह से विभाग को यह पता नहीं होता है कि कौन सी दवाई कितनी चाहिए। उधर, बागवानों के लिए परेशानी यह कि उन्हें पहले यह पता ही नहीं होता है कि उनके बगीचों को कौन सी बीमारी अपनी चपेट में लेगी।