मणिमहेश यात्रा : भरमौर से शाही स्नान के लिए पवित्र छड़ियां डल झील रवाना

punjabkesari.in Saturday, Sep 11, 2021 - 11:48 PM (IST)

भरमौर (उत्तम): विश्व प्रसिद्ध श्री मणिमहेश यात्रा के राधाष्टमी पर होने वाले शाही स्नान के लिए शनिवार को दशनामी अखाड़ा चम्बा, चरपट नाथ सहित भद्रवाह क्षेत्र की सभी छड़ियां रवाना हो गईं। भरमौर में शनिवार को भारी बारिश के बावजूद सभी धार्मिक परम्पराओं के निर्वहन के उपरांत विधिवत इन छड़ियों को रवाना किया गया। दशनामी अखाड़ा चम्बा की छड़ी शुक्रवार को भरमौर पहुंची थी। भरमौर में स्थित विश्व के एकमात्र धर्मेश्वर महाराज मन्दिर में रात्रि विश्राम की प्रथा का निर्वहन किया गया। इसके बाद शनिवार सुबह विधिवत रूप से मणिमहेश के लिए पूजा-अर्चना के साथ रवाना किया गया। चौरासी मंदिर के मुख्य पुजारी लक्ष्मण दत्त शर्मा इस छड़ी के भरमौर पधारने पर पूजा-अर्चना के उपरांत स्वागत करते हैं तथा दूसरे दिन भी पूरी धार्मिक मान्यताओं के साथ अपने कंधे पर उठाकर आगे तक छोड़ते हैं। कोविड के कारण प्रशासन ने बहुत कम लोगों को छडिय़ों के साथ जाने की अनुमति दी है।

रविवार को रवाना होंगे त्रिलोचन महादेव के वंशज

अब इसके बाद रविवार सुबह सचुईं गांव के त्रिलोचन महादेव के वंशज एवं शिव गुर भी डल झील के किए चलेंगे। अपने पैतृक गांव से निकल कर चौरासी मन्दिर परिसर की परिक्रमा करने के बाद मणिमहेश डल झील को तोड़ने की रस्म अदा करने के लिए रवाना होंगे, जिन्हें पूजा-अर्चना के बाद रविवार को रवाना किया जाएगा। सप्तमी को डल झील को पार करने की परम्परा निभाएंगे। उसके बाद ही अष्टमी के स्नान की शुरूआत होगी। वहीं शाही स्नान की शुरूआत होगी जो छड़ियों के डल झील पर स्थापित होने के चौबीस घंटों तक जारी रहेगा। भरमौर के प्रसिद्ध ज्योतिष एवं शनिदेव मंदिर के मुख्य पुजारी सुमन शर्मा के अनुसार इस वर्ष राधाष्टमी का स्नान 13 सितम्बर को तीन बजकर एक मिनट से शुरू होगा तथा मंगलवार दोपहर बाद 14 सितम्बर को शाम तीन बजकर तीन मिनट तक जारी रहेगा।
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शिव गुरों की अनुमति से यात्रा पर निकलते हैं श्रद्धालु

धार्मिक परंपरा के अनुसार जो भी मणिमहेश यात्रा पर जाता है उसे त्रिलोचन महादेव के वंशजों यानी सचुईं गांव के शिव गुरों से आगे की यात्रा की अनुमति लेना अनिवार्य होता है। एक समय था जब कोई भी यात्री शिव गुरों की अनुमति के बिना आगे नहीं बढ़ता था। जिस भी यात्री को ये शिव गुर यात्रा पर न जाने को कहते थे या जिन्हें आगे जाने की अनुमति नहीं होती थी वे यात्रा पर नहीं जाते थे। अगर कोई जबरदस्ती चला भी जाता था तो उसके साथ कोई न कोई अनहोनी हो जाती थी। वह डल झील तक पहुंच ही नहीं पाता था। त्रिलोचन महादेव के ये वंशज आज भी सदियों पुरानी परंपरा को विधिवत निभा रहे हैं। यात्रियों को आगे जाने या न जाने की अनुमति देते हैं, लेकिन आधुनिकता की होड़ में निचले क्षेत्रों से आने वाले यात्री बिना किसी अनुमति के सीधे आगे निकल जाते हैं। अधिकांश यात्री तो भरमौर चौरासी मंदिर भी नहीं पहुंच पाते। पिछले दो वर्षों से कोरोना के कारण यात्रा सिर्फ रस्म अदायगी तक सीमित रही है।

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Content Writer

Vijay

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