Shimla: आईजीएमसी में अब लैप्रोस्कोपी से होंगे बड़े ऑप्रेशन, मरीजों को नहीं होगा दर्द
punjabkesari.in Tuesday, Nov 12, 2024 - 05:06 PM (IST)
शिमला (राजेश): इंदिरा गांधी मैडीकल कालेज एवं अस्पताल (आईजीएमसी) में अब बड़े ऑप्रेशन भी लैप्रोस्कॉपी तकनीक सेे होंगे, यानी अब मरीजों के ऑप्रेशन बिना चीर-फाड़ के होंगे। जिससे ऑप्रेशन के बाद मरीजों को दर्द भी कम होगा और जल्द ही अस्पताल से छुट्टी भी मिल जाएगी। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल आईजीएमसी में सर्जरी विभाग द्वार बड़े ऑप्रेशन भी लैप्रोस्कोपी तकनीक से किए जा रहे हैं इससे पहले छोटे ऑप्रेशन इस तकनीक से किए जाते थे। मंगलवार को आईजीएमसी सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. यूके चंदेल ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि अस्पताल में कैंसर से संबंधित बड़े ऑप्रेेशन लैप्रोस्कोपी से हो रहे हैं। हाल ही में आईजीएमसी सर्जरी के डॉक्टरों ने बड़ी आंत, फूड पाइप और गैस्ट्रो से संबंधित ऑप्रेशन लैप्रो तकनीक से किए हैं।
ये सभी ऑप्रेशन सफल रहे और मरीज कुछ ही घंटों में स्वस्थ हो गया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में पीजीआई से पहले 1993 में लैप्रोस्कोपी से सर्जरी शुरू हुई थी। उस समय पीजीआई में भी ये सर्जरी नहीं होती थी। अब आईजीएमसी में इस आधुनिक तकनीक के साथ और ज्यादा ऑप्रेेशन हो रहे हैं। ऐसे में इसका फायदा मरीजों को हो रहा है। बीते कुछ साल पहले आईजीएमसी में पहली बार आहार नली का ऑप्रेेशन हाइटैक लैप्रोस्कोपिक तकनीक से किया गया था। बड़े शहरों में इस ऑप्रेेशन पर चार से पांच लाख रुपए तक खर्च आता है, लेकिन आईजीएमसी में यह सर्जरी नि:शुल्क की गई थी। इस तकनीक से बिना चीर-फाड़ किए 74 वर्ष के बुजुर्ग मरीज का सफल ऑप्रेशन किया गया। इस मौके पर आईजीएमसी प्रिंसीपल डा. सीता ठाकुर, एमएस डा. राहुल राव सहित सर्जरी विभाग के अन्य चिकित्सक मौजूद रहे।
हर्निया, आंत, लिवर सिस्ट सहित अन्य ऑप्रेशन भी अब लैप्रोस्कोपी से होंगे
आईजीएमसी में आधुनिक तकनीक आने के बाद अब हर्निया, आंत, लिवर सिस्ट सहित अन्य बड़े ऑप्रेशन भी लैप्रोस्कोपी से होंगे। इन ऑप्रेशनों के लिए पहले चीर-फाड़ की जाती थी। जिससे मरीजों को 10 से 15 दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ता था। बीते दिनों अस्पताल में गॉल ब्लैडर के रेयर ऑप्रेशन, हर्निया, आंत के ऑप्रेशन, लिवर सिस्ट की सर्जरी, पेट संबंधी सर्जरियां लैप्रोस्कोपी की गई हैं। वहीं ऑप्रेशन के बाद मरीजों को एक या दो दिन के अंदर अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
संक्रमण फैैलने का खतरा भी होगा कम
आईजीएमसी में नई तकनीकी से ऑप्रेशन सुविधा शुरू होने के बाद सर्जरी विभाग के चिकित्सकों के लिए यह एक बड़ी सफलता है। लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में छोटे चीरे लगाने से संक्रमण का जोखिम कम होता है। पारंपरिक ओपन सर्जरी में, बड़े चीरे बैक्टीरिया के लिए प्रवेश द्वार होते हैं, जिससे घाव में संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। लैप्रोस्कोपिक प्रक्रियाओं में सर्जिकल साइट पर संक्रमण का जोखिम काफी कम हो जाता है, जिससे रिकवरी प्रक्रिया आसान हो जाती है।
ऐसे होता लैप्रोस्कोपी ऑप्रेशन
लैप्रोस्कोपी ऑप्रेशन 2 प्रकार से होता है। एक प्रक्रिया में चीर-फाड़ की जाती है। दूसरी प्रक्रिया में दूरबीन से ऑप्रेेशन होता है। लैप्रोस्कोप एक लंबा, पतला और लचीला ट्यूब है, जिसके एक हिस्से पर लाइट और कैमरा लगा होता है। इस उपकरण की मदद से डॉक्टर कंप्यूटर स्क्रीन पर पेट के आंतरिक हिस्सों को आसानी से साफ साफ देख पाते हैं। लैप्रोस्कोपी के दौरान शरीर के कई अंगों का मूल्यांकन किया जाता है, जिसमें मुख्य रूप से पेल्विक या प्रजनन अंग, बड़ी और छोटी आंत, स्प्लीन, पित्ताशय, किडनी, अपेंडिक्स, लिवर और पैंक्रियाज आदि शामिल हैं।
जिला अस्पतालों में भी शुरू करने की योजना
सभी जिलों में स्थित क्षेत्रीय अस्पतालों में भी अब लैप्रोस्कोपी से सर्जरी करवाने की तैयारी है। इसके लिए आई.जी.एम.सी. प्रशासन की ओर से डॉक्टरों को ट्रेनिंग दी गई है। इससे उन मरीजों को फायदा होगा, जो चीर-फाड़ की बजाय लैप्रोस्कोपी यानि दूरबीन से ऑप्रेशन करवाना चाहते हैं। अभी हिमाचल में कुछ क्षेत्रीय अस्पतालों को छोड़कर बाकी में लैप्रोस्कोपी सर्जरी नहीं होती, यहां से मरीजों को आईजीएमसी रैफर किया जाता है।