हाईकोर्ट ने रद्द किए HPU के दो एसोसिएट प्रोफैसरों की नियुक्तियों के आदेश
punjabkesari.in Tuesday, Jul 09, 2024 - 09:00 PM (IST)

शिमला (मनोहर): प्रदेश हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में गणित विभाग के दो एसोसिएट प्रोफैसरों की नियुक्तियों को रद्द करने के आदेश जारी किए। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने याचिकाकर्त्ता डा. राजेश कुमार शर्मा द्वारा दायर याचिका को स्वीकारते हुए विश्वविद्यालय को कानून के अनुसार नए सिरे से इन पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू करने के आदेश दिए। कोर्ट ने मामले का निपटारा करते हुए कहा कि कोर्ट को यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि कार्यकारी परिषद ने ऐसी प्रत्यायोजित शक्ति का प्रयोग किया गया जो शक्ति इसके पास नहीं हो सकती थी और इसके कारण कुलपति ने एसोसिएट प्रोफैसर (गणित) के पद पर निजी प्रतिवादियों को नियुक्तियां दे दीं, इसलिए निजी प्रतिवादियों की नियुक्तियों को खारिज किया जाता है। मामले के अनुसार 30 दिसम्बर 2019 को विश्वविद्यालय ने गणित विभाग में एसोसिएट प्रोफैसर के तीन पदों को भरने के लिए एक विज्ञापन जारी किया।
12 से 14 दिसम्बर 2020 तक उम्मीदवारों के साक्षात्कार लिए गए। 14 दिसम्बर को प्रार्थी का साक्षात्कार लिया गया। 15 दिसम्बर को दो निजी प्रतिवादियों को नियुक्तियां दे दी गईं। यह नियुक्तियां विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर के आदेशानुसार प्रदान की गईं। प्रार्थी ने चयन प्रक्रिया और चयनित उम्मीदवारों से जुड़ी अहम जानकारी आरटीआई के माध्यम से मांगी। चयन प्रक्रिया में कायदे कानूनों को ताक पर रखने के आरोप लगाते हुए प्रार्थी ने दोनों प्रतिवादियों की नियुक्तियां रद्द करने की गुहार लगाते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। प्रार्थी का आरोप था कि दोनों एसोसिएट प्रोफैसर नियुक्ति के लिए पात्रता नहीं रखते और विश्वविद्यालय ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर इन्हें नियुक्तियां दीं। दोनों प्रतिवादियों को वी.सी. की ओर से नियुक्ति पत्र 15 दिसम्बर 2020 को जारी किए गए जबकि वीसी द्वारा की गई इन नियुक्तियों का अनुमोदन कार्यकारी परिषद ने 31 दिसम्बर 2020 को किया।
प्रार्थी का आरोप था कि वी.सी. के पास अध्यापकों की नियुक्तियां करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है और न ही उन्हें यह अधिकार ई.सी. द्वारा दिया जा सकता है। कोर्ट ने प्रार्थी की दलीलों से सहमति जताते हुए कहा कि एच.पी.यू. अधिनियम के प्रावधानों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि जो शक्तियां कुलपति को प्रदान की जाती हैं, उनमें शिक्षकों के पद पर नियुक्ति करने की शक्ति शामिल नहीं है। इतना ही नहीं, कानून में जोड़ा गया प्रावधान पूरी तरह से स्पष्ट है कि कुलपति को प्रदत्त आपातकालीन शक्तियों के प्रयोग में भी, कुलपति किसी भी पद पर कोई नियुक्ति नहीं कर सकता है। अधिनियम स्वयं आपातकाल की स्थिति में भी कुलपति को नियुक्ति का कोई भी अधिकार प्रदान करने पर रोक लगाता है।
अधिनियम के कानून 11 (i) के अनुसार, कार्यकारी परिषद के पास अस्थायी रिक्तियों को भरने के उद्देश्य से गठित चयन समिति की सिफारिशों पर प्रोफैसरों, एसोसिएट प्रोफैसरों और सहायक प्रोफैसरों को नियुक्त करने की शक्ति है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में दिलचस्प बात यह है कि कार्यकारी परिषद ने नियुक्ति की शक्ति कुलपति को इस बात को देखे बिना सौंप दी कि इस तरह की शक्तियां इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए भी नहीं सौंपी जा सकती कि मुख्य अधिनियम कुलपति को कोई भी नियुक्ति करने की शक्ति प्रदान नहीं करता है।