Shimla: करोड़ों की ग्रांट फिर भी सरकारी स्कूलों का परिणाम संतोषजनक नहीं, जानें क्या हैं कारण
punjabkesari.in Friday, May 16, 2025 - 07:08 PM (IST)

शिमला (प्रीति): हिमाचल के सरकारी स्कूलों में 10वीं कक्षा का परीक्षा परिणाम इस बार भी संतोषजनक नहीं रहा है। तमाम प्रयासों व सभी सुविधाएं प्रदान करने के बाद भी स्कूलों में परिणाम बेहतर नहीं हो पा रहा है। बीते वर्ष की तरह इस बार भी सरकारी स्कूल बोर्ड के परिणाम में पिछड़ गए हैं, जबकि निजी स्कूलों का प्रदर्शन बेहतरीन रहा है। सवाल यह उठ रहा है कि एक ओर प्रदेश सरकार आम जनता से अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है लेकिन दूसरी ओर निजी स्कूलों का परिणाम बेहतर होने से प्रदेश सरकार की प्रयासों को झटका लगा है। हालांकि केंद्र और प्रदेश सरकार की ओर से करोड़ों का बजट जारी किया जा रहा है।
इनोवेशन लैब, टिकरिंग लैब खोली जा रही हैं। कई स्कूलों में तो यह लैब पहले से ही स्थापित हैं। इसके अलावा भी स्कूलों में सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं। शिक्षकों को एक्सपोजर दिलाने के लिए विदेशों में करोड़ों खर्च कर टूअर करवाए जा रहे हैं। बावजूद इसके छात्रों के बोर्ड परीक्षा के परिणाम को देखते हुए ऐसा माना जा रहा है कि इन व्यवस्थाओं के बाद भी सार्थक परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं। ऐसे में सरकार को जमीनी स्तर पर सरकारी स्कूलों को और बेहतर करने के लिए अभी और कार्य करना जरूरी है।
चम्बा, किन्नौर, कुल्लू और लाहौल-स्पिति जिला से 10वीं की मैरिट में नहीं सरकारी स्कूल के छात्र
10वीं की मैरिट लिस्ट में चम्बा, किन्नौर, कुल्लू, लाहौल-स्पिति जिला के सरकारी स्कूल से एक भी छात्र नहीं है। हालांकि इन जिलों से निजी स्कूलों के छात्रों ने मैरिट में जगह बनाई है। शेष जिलों के सरकारी स्कूल के छात्र इस सूची में हैं। ऐसे में इन जिलों में शिक्षकों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।
शिक्षकों की अस्थायी नियुक्तियां भी एक बड़ा कारण
सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य जीवन शर्मा का कहना है कि स्कूलों में शिक्षकों के पद खाली हैं। मुख्य विषयों के शिक्षक नहीं हैं। दूसरी तरफ सरकार इन पदों को भरने में काफी समय लगाती है। ऐसे में छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। इसके अलावा शिक्षकों से अन्य दूसरे कई काम करवाए जा रहे हैं। शिक्षकों की अस्थायी नियुक्तियां भी बेहतर रिजल्ट न आने का एक कारण है। इसके साथ ही ऐसे मामले कोर्ट में उलझे रहते हैं। ऐसे में स्कूलों में कैसे पढ़ाई होगी।
गांव के स्कूलों में शिक्षकों के पद खाली, स्कूलों में नहीं हैं टीजीटी नॉन-मैडीकल के शिक्षक
सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य और पूर्व जिला उपशिक्षा निदेशक भाग चंद चौहान का कहना है कि प्रदेश के गांव के स्कूलों में शिक्षकों के पद खाली हैं। शहरों में तो शिक्षकों की भरमार है, लेकिन गांव के स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है। इन स्कूलों में टीजीटी नॉन-मैडीकल के शिक्षक नहीं हैं। ऐसे में छात्रों को गणित और साइंस विषय नहीं पढ़ाए जा रहे हैं। इस कारण बोर्ड परीक्षाओं में सरकारी स्कूल के छात्र पिछड़ रहे हैं।
प्राइवेट स्कूल 80 प्रतिशत अंक लेने वाले छात्रों को देते हैं दाखिला
सेवानिवृत्त शिक्षक गंगा राम शर्मा का कहना है कि प्राइवेट स्कूल 80 प्रतिशत अंक लेने वाले छात्रों को ही स्कूल में दाखिला देते हैं, जबकि सरकारी स्कूल 35 प्रतिशत अंक लेने वाले छात्रों को भी दाखिला देते हैं। सरकारी स्कूलों में एवरेज छात्र भी पढ़ाए जाते हैं, लेकिन प्राइवेट स्कूल ऐसे छात्रों को दाखिला नहीं देते, जिससे कि उनके परीक्षा परिणाम बेहतर आएं। सरकारी स्कूलों का बेहतर रिजल्ट न आने का यह भी एक कारण है। इसके साथ ही शिक्षकों की कमी के कारण भी सरकारी स्कूल के छात्र मैरिट में पिछड़े हैं। शिक्षक न होने से कई स्कूलों में संस्कृत के शिक्षक गणित पढ़ा रहे हैं।
पढ़ने-पढ़ाने पर किया जाए फोकस, गैर-शिक्षण कार्य करवाए जाएं बंद
पूर्व शिक्षा उपनिदेशक अशोक शर्मा का कहना है कि स्कूलों में शिक्षकों से गैर-शिक्षण कार्य करवाना बंद किया जाए। केवल पढ़ने और पढ़ाने पर ही फोकस किया जाना चाहिए, ताकि शिक्षक पर और किसी कार्य का भार न हो। पहले शिक्षकों के पास केवल पढ़ाने का काम ही होता था, तब रिजल्ट भी बेहतर आते थे, लेकिन अब शिक्षकों के पास ढेरों गैर-शिक्षक कार्य रहते हैं। इससे आधा समय तो इन कार्यों में लग जाता है।
एक्सपर्ट राय
स्कूलों में वर्ष 2009 से लागू की गई आरटीई के परिणाम अब आ रहे सामने
सेवानिवृत्त शिक्षक और पूर्व अध्यक्ष राजकीय शिक्षक संघ पीआर सांख्यान का कहना है कि स्कूलों में वर्ष 2009 से लागू की गई आरटीई के परिणाम अब सामने आ रहे हैं। यह भी एक कारण है कि बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम बीते कई वर्षों से अच्छे नहीं आ रहे हैं। इस एक्ट के तहत कक्षा में फेल बच्चे को भी अगली कक्षा में लेने का प्रावधान था। इससे बच्चों की परफॉर्मैंस बेहतर नहीं हो पाई। वह अगली कक्षा में तो चला गया, लेकिन पढ़ने और समझने के स्तर में विकास नहीं हुआ।
इस कारण बच्चे बोर्ड की परीक्षाओं में पिछड़ते जा रहे हैं। हालांकि सुक्खू सरकार ने अब इसे बंद कर अच्छा फैसला लिया है। इसके अलावा स्कूलों में शिक्षकों की कमी भी इसका एक कारण है। सरकार को चाहिए कि स्कूलों में गणित और साइंस के शिक्षकों की कमी नहीं होनी चाहिए। साल में सेवानिवृत्त होने वाले शिक्षकों का पैनल बनाया जाए, जहां शिक्षक की सेवानिवृत्ति होनी है, वहां तुरंत शिक्षक दिए जाने चाहिए। ट्रांसफर साल में एक ही बार हो।
रिजल्ट की समीक्षा होगी, शिक्षकों से फीडबैक लिया जाएगा : निदेशक
स्कूल शिक्षा निदेशालय के निदेशक आशीष कोहली का कहना है कि रिजल्ट की समीक्षा होगी। शिक्षकों से फीडबैक लिया जाएगा। इसके बाद सरकार के निर्देशानुसार उचित कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
प्रदेश में 14,663 स्कूल और लगभग 67 हजार शिक्षक कार्यरत
प्रदेश में इस समय 14,663 सरकारी स्कूल हैं, जिनमें लगभग 67 हजार शिक्षक कार्यरत हैं। हालांकि वर्तमान सरकार ने अभी तक लगभग 1200 स्कूल बंद किए हैं।