शायद ही कभी भर पाएंगे इस भयानक हादसे से मिले कई परिवारों को जख्म

punjabkesari.in Monday, Jun 18, 2018 - 10:40 AM (IST)

मंडी (नीरज): 12 और 13 अगस्त 2017 की रात को कोटरोपी हादसे में अपनों को खोने वाले शायद ही इस गम को कभी भूला पाएं। अपनों को खो चुके परिजन जब कभी यहां से गुजरते हैं तो वही मंजर सामने आ जाता है, जब यहां से उन्हें अपनों की लाशें मिली थी। इन्हीं में से एक परिवार था चंबा जिला का। चंबा निवासी सतीश कुमार ने इस हादसे में अपनी पत्नी को खोया था तो उनकी भाभी मौली देवी ने अपने तीन बच्चों को। वह उस वक्त कुल्लू में नौकरी करती थी। इनके तीन बच्चे मुस्कान, पलक और अरमान चंबा स्थित अपने घर से कुल्लू अपनी मां के पास जा रहे थे। इन बच्चों के साथ इनकी चाची यानी सतीश कुमार की पत्नी गीता देवी भी थी। 
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वह कुल्लू बस स्टैंड पर रात भर चंबा से आने वाली उस बस का इंतजार करती रही जिसकी यात्रा काल के रूप में कोटरोपी में ही समाप्त हो चुकी थी। उसके पति की 2 साल पहले मौत हो चुकी थी और सहारे के रूप में बचे घर के तीन चिराग भी इस हादसे ने हमेशा के लिए बुझा दिए। इस दर्दनाक हादसे के बाद जब कभी यह परिवार यहां से गुजरता है तो रो-रोकर अपनों को याद करने के सिवाय और कुछ नहीं कर पाता। गाड़ी के पहियों को खुद ही ब्रेक लग जाती है और काफी देर घटनास्थल पर बैठकर भगवान से पूछते हैं कि आखिर उन मासूमों का क्या कसूर था जिन्हें इस उम्र में दुनिया को अलविदा कहना पड़ा। 
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सतीश कुमार रूंदे स्वर में बताता है कि उन्होंने इस हादसे में अपना सबकुछ खो दिया, लेकिन जब यहां से गुजरे तो मन को तसल्ली देने के लिए थोड़ी देर रूक गए, क्योंकि इसके सिवाय उनके पास कुछ और उपाय भी तो नहीं है। उसने बताया कि उस रात को 11.30 तक उसकी अपनी पत्नी से मोबाईल पर बात होती रही और उसके बाद फिर कभी बात नहीं हुई। यहां से पत्नी और भाई के बच्चों के शव ही घर ले जा सके। कोटरोपी हादसे में 48 मौतें हुई थी जिसमें से अभी तक सिर्फ 46 शव ही बरामद हुए हैं। कई परिवार तो ऐसे भी हैं जिन्हें अपनों के अंतिम दर्शनों का मौका तक नहीं मिल पाया है। यह हादसा ऐसे न जाने कितने ही परिवारों को जिंदगी भर न भूलने वाले गम दे गया है।
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Ekta

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