देखिए ऐसा मंदिर जिसके ऊपर से न उड़ पाते हैं परिदें, न टिक पाती है बर्फ

punjabkesari.in Monday, Sep 28, 2020 - 01:17 PM (IST)

मंडी (रजनीश) : शिकारी देवी मंदिर राजधानी दिल्ली से 500 किलोमीटर दूर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के गोहर उपमंडल के जंजैहली के समीप ऊंचे पहाड़ों पर स्थित है। 2850 मीटर की ऊंची पहाड़ी पर स्थित शिकारी देवी मंदिर पर आज तक कोई भी छत नहीं लगा सका पाया। यही नहीं इस पहाड़ी पर हर वर्ष बर्फ तो खूब गिरती है। मगर माता की मूर्तियों पर कभी भी बर्फ नहीं टिकती है। इसके अलावा मंदिर के ऊपर से न तो पक्षी उड़ पाते है और न ही हेलीकॉप्टर और जहाज उड़ सकता है। जो आज भी रहस्य बना हुआ है। कहा जाता है कि मार्कंडेय ऋषि ने यहां कई सालों तक तपस्या की थी। उन्हीं की तपस्या से खुश होकर मां दुर्गा शक्ति रूप में स्थापित हुई। बाद में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान मंदिर का निर्माण किया। पांडवों ने यहां तपस्या कर मां दुर्गा को प्रसन्न किया और पांडवों को कौरवों के खिलाफ युद्ध में जीत का आशीर्वाद दिया। इस दौरान यहां मंदिर का निर्माण किया गया, लेकिन पूरा मंदिर नहीं बन पाया। मंदिर में मां की पत्थर की मूर्ति स्थापित करने के बाद पांडव यहां से चले गए। मंदिर के आसपास हर साल भारी मात्रा में बर्फ गिरती है, लेकिन मूर्तियों पर कभी भी बर्फ नहीं टिकती है। क्योंकि ये पूरा क्षेत्र वन्य जीवों से भरा पड़ा था। इसलिए शिकारी अकसर यहां आने लगे। शिकारी भी माता से शिकार में सफलता की प्रार्थना करते थे और उन्हें कामयाबी भी मिलने लगी। इसी के बाद इस मंदिर का नाम शिकारी देवी ही पड़ गया। मगर सबसे हैरत वाली बात ये भी थी कि इस मंदिर पर छत नहीं लग पाई। कहा जाता है कि कई बार मंदिर पर छत लगवाने का काम शुरू किया गया, लेकिन हर बार कोशिश नाकाम रही। माता की शक्ति के आगे कभी भी छत नहीं लग पाई।

ऐसे पहुंचे दर्शन करने
मंदिर तक इन रास्तों से पहुंचे मंदिर तक पहुंचने के लिए बहुत से रास्ते है। मंदिर पहाड़ की चोटी पर स्थित होने के कारण लोग चारों ओर से यहां पहुंचते है। सबसे ज्यादा श्रद्धालु जंजैहली से निकली सड़क मार्ग से जाना पंसद करते है। मंदिर को करसोग, जहल, देव कमरूनाग मंदिर से, जंजैहली, बगस्याड़, कांढा से पैदल पहुंचा जा सकता है। मंडी से जंजैहली तक लगभग 100 किलोमीटर का सफर आप बस पर या टैक्सी पर तथा अपनी गाड़ी के द्वारा पहुंच सकते है। जंजैहली से भुलाह होते हुए 20 किलोमीटर घने जंगलों के बीच से खतरनाक रास्ते को पार कर माता के मंदिर तक छोटी गाड़ियों से पहुंच सकते है। वहां से करीब 500 सीढ़ियां चढ़ कर माता के मंदिर में पहुंचा जा सकता है। ट्रैकिंग के दीवाने जंजैहली से पैदल ही गांव से होते हुए बूढ़ा केदारनाथ होते हुए लगभग 10 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़कर मंदिर पहुंचते है। लोग बूढ़ा केदारनाथ में स्नान करते है और पांडवों के समय के शिव भोले के दर्शन करते है।


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Jinesh Kumar

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