फोरलेन परियोजना के कथित सर्वे कारण वजूद खो देंगे सैकड़ों परिसर व हजारों वृक्ष

punjabkesari.in Thursday, Nov 25, 2021 - 10:49 AM (IST)

नूरपुर (राकेश) : फोरलेन परियोजना पठानकोट-मंडी के प्रथम चरण में कंडवाल से सियुणी तक करीब 4 दर्जन कस्बे प्रभावित होंगे, जिनमें 90 प्रतिशत भाग नूरपुर में तथा 10 प्रतिशत ज्वाली विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है। करीब 9 हजार परिवार तथा कंडवाल, नागावाड़ी, राजा बाग, छतरौली, जसूर, जाच्छ, वौड़, नागनी, भडवार, खज्जियां व जौटा वैल्ट के अनेकों बाजार भी कहीं पूर्ण तो कहीं इनका काफी बड़ा भाग अपना अस्तित्व खो देगा। अनेक कारोबारों, होटलों, शोरूम तक का वजूद इस परियोजना की भेंट चढ़ जाएगा। इन सैकड़ों लोगें की आजीविका का क्या बनेगा, पुनर्वास कैसे होगा, यह निःसंदेह एक यक्ष प्रश्न है जिसका जवाब इतना सहज नहीं है। करीब 40 किलोमीटर लंबे इसे भाग में सड़क किनारे स्थित करीब 2 हजार पेड़ों की बलि भी तय है। 

कंडवाल से वौड़ तक एक दर्जन बाजार हो रहे प्रभावित

सबसे ज्यादा मार कंडवाल से वौड तक के बाजारों पर पड़ रही है जहां भारी संख्या में कारोबारी परिसर, होटल व बड़े-बड़े शोरूम मिटकर रह जाएंगे। इतनी बड़ी तबाही तथा अब मुआवजे की समस्या शायद न पैदा होती अगर वर्तमान एन.एच. में ही इस फोरलेन को बनाने की बजाय कोई विकल्प खोजा गया हो। इस सड़क के समांतर 100 से 150 फीट की दूरी पर नई सड़क एक बेहतरीन समाधान था जिस पर कथित सर्वे में गौर ही नहीं किया गया अन्यथा हजारों परिसर व कारोबार बच सकते थे व 2000 वृक्षों का कत्लेआम भी न होता। कंडवाल से वौड तक जब्बर खड्ड का तटीयकरण भी हो जाता, अवैध खनन की समस्या पर भी आसान अंकुश लग जाता। इस कथित सर्वे पर करोड़ों की अदायगी की गई लेकिन यह सर्वे बर्बादी की दास्तां लिखने वाला साबित हुआ।

सरकार से विकल्प पर 3 वर्ष पूर्व गौर करने के लिए कहा था

फोरलेन संघर्ष समिति द्वारा संबंधित विभाग व तत्कालीन सांसद व प्रदेश सरकार को 3 वर्ष पूर्व इस विकल्प पर गौर करने का कहा गया लेकिन उस पर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया। अन्यथा जसूर में जहां फ्लाईओवर ब्रिज बनाने का 90 करोड़ अनुमानित व्यय भी बच सकता था। मात्र इस राशि से सिक्स लेन तक वौड तक नई सड़क आराम से बनती तथा 300 करोड़ का मुआवजा 50 करोड़ तक सिमट सकता था। जनता की मानें तो इसमें जनता के चुने जनप्रतिनिधि भी संबंधित विभाग पर कोई दबाव नहीं बना सके तथा यह विकल्प अपनी मौत मरकर रह गया।

एन.एच. किनारे की कीमती जमीन जा रही कौडियों के दाम

फोरलेन प्रभावितों पर सबसे बड़ी मार यह पड़ी है कि सड़क किनारे स्थित इस व्यवसायिक किस्म का मुआवजा फोरलेन एक्ट-2013 के आधार पर न देकर 1956 के पुराने एक्ट के आधार पर दिया गया जिसमें सर्कल रेट लागू किए गए। सर्कल रेट पूरे राजस्व क्षेत्र यानी महाल की जमीन की कीमत के औसत को निकाल कर तय होते हैं। यह कसौटी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित बहुमूल्य जमीन पर लागू की गई है। 5 से 15 लाख प्रति मरला के प्रचलित रेट की जगह 8000 से 20000 तक प्रति मरला रेट प्रभावितों को मिले हैं। भवनों के अधिग्रहण को भी 10 से 20 हजार प्रति स्क्वेयर मीटर मिलेगा जो वर्तमान निर्माण व्यय के मुकबले नाममात्र है।
 


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Content Writer

prashant sharma

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