नेपाल से सोलन पहुंची पर्वतारोही बलजीत कौर, अन्नपूर्णा चोटी पर जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष की सुनाई दास्तां

punjabkesari.in Saturday, Apr 29, 2023 - 10:08 PM (IST)

सोलन (नरेश पाल): 2 शेरपा के धोखे के कारण पर्वतारोही बलजीत कौर ने 48 घंटे जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष किया। हैरानी की बात यह है कि बलजीत कौर के साथ जो शेरपा व पोर्टर (ट्रेनी) अन्नपूर्णा चोटी तक साथ गए थे, वे भी बीच सफर में साथ छोड़कर भाग गए लेकिन उसकी ट्रेनिंग व विपरीत परिस्थिति में बनाया गया हौसला उसे मौत के मुंह से बाहर निकल लाया। भूखे-प्यासे 7375 (24193 फुट) मीटर की ऊंचाई पर रास्ता भटक चुकी पहाड़ जैसे हौसले वाली बलजीत कौर अपनी मंजिल को तलाश करती रही।

एजैंसी की मिस मैनेजमैंट की वजह से हादसे का शिकार बनी बलजीत
शनिवार को नेपाल से सोलन पहुंचने पर बलजीत कौर का भव्य स्वागत हुआ। उन्होंने अन्नपूर्णा चोटी पर हुए हादसे के बारे में बताया कि कैसे एजैंसी की मिस मैनेजमैंट की वजह से हादसा हुआ। उन्होंने बताया कि वह बिना ऑक्सीजन के विश्व के सबसे मुश्किल अन्नपूर्णा पहाड़ को चढ़ रही थी। इसलिए एजैंसी ने उन्हें अनुभवी शेरपा का इंतजाम किया लेकिन एक विदेशी पर्वतारोही ने ज्यादा पैसे का उसे ऑफर दिया तो वह शुरू में ही साथ छोड़कर चला गया। फिर उन्हें एक और शेरपा दिया गया लेकिन वह उतना अनुभवी नहीं था। फिर भी वह उसके साथ पहाड़ चढ़ने को तैयार हो गई। वह शेरपा एक पोर्टर (ट्रेनी) को भी अपने साथ लेकर आया। बलजीत ने बताया कि जब 7375 (24193 फुट) की ऊंचाई पर स्थित माऊंट अन्नपूर्णा कैंप 4 से 15 अप्रैल को अन्नपूर्णा चोटी की ओर निकले तो शेरपा ने उसे और ट्रेनी को आगे चलने को कहा और खुद बाद में आने की बात कही। वह काफी आगे निकल चुके थे तो उसी समय एक और शेरपा हांफता हुआ आया और बोला कि उनके शेरपा ने उसे भेजा है। वह शेरपा पहले ही बहुत थका हुआ था क्योंकि एक दिन पहले ही वह अन्नपूर्णा अभियान से वापस लौटा था। 

मैंने अभियान छोड़ने की बात कही, शेरपा नहीं माने
बलजीत ने कहा कि एक बार मैंने अभियान छोड़ने की बात भी कही लेकिन शेरपा नहीं माने कि ट्रेनी के लिए अभियान पूरा करना जरूरी है ताकि वह अगली बार शेरपा बन सके। इसके बावजूद वह अन्नपूर्णा चोटी को फतेह करने में कामयाब रहीं। हालांकि ऑक्सीजन की कमी व थकान होने की वजह से बेहोशी की स्थिति में थी। चलना मुश्किल हो रहा था। अन्नपूर्णा कैंप 4 भी काफी दूर था। ऐसे समय में शेरपा व ट्रेनी भी उसे वहां पर अकेले छोड़कर चले गए। हालांकि इसके लिए वह उन्हें जिम्मेदार नहीं मानती। बलजीत ने कहा कि उन्हें जाने के लिए मैंने ही कहा, वे वहां से न जाते तो उनकी जान जा सकती थी। 48 घंटे तक वह वहां पर अकेली रही और बेस कैंप तक पहुंचने के लिए लगातार प्रयास करती रही। बलजीत कौर जिला सोलन के ममलीग की रहने वाली हैं। उनके पिता हिमाचल पथ परिवहन निगम से बतौर चालक रिटायर हुए हैं और माता गृहिणी हैं। 

जागते हुए आ रहे थे सपने 
बलजीत ने बताया कि समिट तक पहुंचने के करीब 100 मीटर नीचे ही वह माऊंटेन सिकनैक की शिकार होने लगी। नींद आने लगी और जागते हुए भी सपने आने लगे। इसके बावजूद किसी तरह अभियान पूरा किया लेकिन वापसी में कुछ दूर आने पर ही वह चलने में लाचार हो गई। इस पर शेरपा उसे वहीं छोड़कर नीचे आ गए। वह बर्फ के बीच पहाड़ पर बिना ऑक्सीजन नीचे आने की कोशिश करती रही। आखिर उनकी नजर जेब में पड़े मोबाइल फोन पर पड़ी, जिससे मैसेज भेजने में सफल रही और हैलीकॉप्टर से उसे रैस्क्यू किया गया। मदद मांगने के करीब 4 घंटे बाद रैस्क्यू शुरू हुआ।  

3-4 महीने बाद फिर चढ़ेगी पहाड़ 
बलजीत कौर ने बताया कि वह इस हादसे से हारी नहीं है। 3-4 महीने के आराम के बाद वह फिर अपनी ट्रेनिंग शुरू करेगी और पहाड़ चढ़ेगी। 

बलजीत कौर के नाम दर्ज हैं ये रिकाॅर्ड 
बलजीत कौर ने पर्वतारोही के रूप में 19 साल की उम्र में अपने करियर की शुरूआत की थी। सबसे पहले मनाली के देओ टिब्बा को फतह किया था। इसके बाद माऊंट पमोरी को फतह करने वाली पहली भारतीय महिला बनी। बलजीत कौर के नाम एक और विशेष रिकाॅर्ड है। वह पहली भारतीय पवर्तारोही हैं, जो महज 30 दिन के अंतराल में 8 हजार मीटर की ऊंचाई वाली 4 चोटियों को फतह करने में कामयाब रही थीं। इनमें अन्नपूर्णा, कंचनजंगा, एवरैस्ट, ल्होत्से और मकालु चोटी शामिल हैं। बलजीत कौर ने पिछले वर्ष माऊंट एवरैस्ट पर तिरंगा फहराने के एक दिन बाद ही माऊंट ल्होत्से को फतह किया था, जो दुनिया की सबसे ऊंची चोटी (8848.86 मीटर) है। बलजीत कौर ने 8000 मीटर की 2 चोटियों को 2 सप्ताह के अंदर फतह करने के लिए भी रिकार्ड दर्ज कर लिया है।

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Content Writer

Vijay

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