कुल्लू दशहरा में शामिल नहीं होते लगघाटी में देवताओं के दादा, ये है वजह

punjabkesari.in Saturday, Oct 12, 2019 - 11:27 AM (IST)

कुल्लू (दिलीप) : विश्व के सबसे बड़े देव महाकुंभ में सैकड़ों देवी-देवता शिरकत करते हैं। ढालपुर मैदान में देवी-देवताओं की मौजूदगी को देखने पूरे विश्व से लोग पहुंचते हैं। कुल्लू में ही एक ऐसे देवता भी हैं, जिन्हें आज तक न राजतंत्र का दबाव और दशहरा में ला नहीं पाई और न ही भगवान रघुनाथ जी की परंपरा। 

दरअसल लगघाटी के देवता दशहरा पर्व की परंपरा को मानते ही नहीं है। बता दें कि लग रियासत को जीतने के बाद भी कुल्लू का राजा यहां की देव संस्कृति को प्रसन्न नहीं कर सका और यहां के देवताओं को कुल्लू दशहरे में सम्मिलित करने में असफल रहा और इसी वजह से लगघाटी के देवता कुल्लू दशहरा में शामिल नहीं होते हैं। 

इस घाटी के देवी-देवता कतरुसी नारायण को दादा के नाम से जाना जाता हैं। कतरुसी नारायण को तत्कालीन राजा ने सेना के बल पर भी दशहरा परंपरा में शामिल करने के प्रयास किए थे। लेकिन लगघाटी के दड़का स्थान से आगे देवता के रथ को लाने में राजतंत्र हार गया था। यही नहीं, यहां की प्रसिद्ध शक्तिपीठ माता भेखली भी कुल्लू दशहरा में सम्मिलित नहीं होती।

1651 में लाई थी मुर्ति

कुल्लू रियासत के राजा को कुष्ठ प्रकोप से मुक्त होने के लिए अयोध्या से श्रीराम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की मूर्तियों को लाकर दशहरा का आयोजन करना पड़ा। रघुनाथ परिवार को 1651 में पहली बार कुल्लू लाया गया था। 1651 तक ये मूर्तियां गोमती के नाम से जानी जानें वाली गड़सा खड्ड और ब्यास के संगम तट मकराहड़ में राजा के महल में रखी गई थी।लेकिन मकराहड़ और लग रियासत का क्षेत्र साथ-साथ होने के कारण इस सिर्फ ब्यास दरिया ही विभक्त करता था। रियासती भय के कारण 1653 के लगभग ये मूर्तियां, मणिकर्ण ले जाई गई और यहां दशहरा का आयोजन किया गया ।मणिकर्ण में भी जगह की कमी तथा रियासती भय के कारण यहां से ये मूर्तियां हरिपुर ले जाई गई और दशहरा का आयोजन हरिपुर में होने लगा। 

1656-58 जोग चंद्र युद्ध में पराजित हुआ

दशहरा में देवी-देवताओं के अधिक संख्या में शामिल होने के कारण जगह के अभाव को देखते हुए और दशहरा में सभी देवी-देवताओं को एकत्रित करने की इच्छा से राजा ने ढालपुर के मैदान को हथियाने और लग रियासत पर अपनी विजय हासिल करने के उद्देश्य से डोभी चैकी में डेरा लगाकर ब्यास दरिया को पार कर सुलतानपुर पर 1656-58 के मध्य चढ़ाई कर दी और राजा जोग चंद्र के साथ युद्ध किया । राजा जोग चंद्र युद्ध में पराजित हुआ। 

राजा को अपनी देव संस्कृति में कोई स्थान नहीं दिया

कुल्लू के राजा ने लग रियासत पर विजय हासिल ली और जनता पर राज कर लिया, लेकिन यहां के देवी-देवताओं ने राजा को अपनी देव संस्कृति में कोई स्थान नहीं दिया । जिसका पुख्ता प्रमाण के तौर पर आज भी लग रियासत के नारायण और यहां की आदि शक्तियां नारायण अवतार श्रीराम के कुल्लू दशहरा उत्सव में सम्मिलित नहीं होते ।


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Edited By

Simpy Khanna

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