कारगिल विजय दिवस: मंडी के 10 वीरों ने पाई शहादत, देखिए उनकी निशानी का हाल (Video)
punjabkesari.in Thursday, Jul 26, 2018 - 02:14 PM (IST)

मंडी (नीरज): क्या शहीदों के नाम पर सिर्फ राजनीति होती है। अगर नहीं तो फिर शहीदों की याद में बने स्मारक अपनी बदहाली के आंसू क्यों बहा रहे हैं और क्यों नेताओं द्वारा की जाने वाली घोषणाएं धरातल पर नहीं उतर पा रही हैं। मंडी के कारिगल शहीद स्मारक की बदहाली की दास्तां देखिए आपको भी यकीन हो जाएगा कि शहादत का किस तरह से मजाक उड़ाया जाता है। 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था तो उस वक्त मंडी जिला के 10 रणबांकुरों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी। शहीदों के नाम पर बड़ी-बड़ी घोषणाएं हुई।
शहीदों की याद में शहर के बीचों-बीच सेरी मंच के पास एक स्मारक बनाया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने इसका उद्घाटन करके इसकी देखरेख का जिम्मा नगर परिषद को सौंप दिया। लेकिन समय के साथ हर कोई इस स्मारक की देखभाल को भूलता गया और आज आलम सभी के सामने है। कारगिल शहीद स्मारक मात्र एक कबाड़खाना बनकर रह गया है। कबाड़ का टूटा-फूटा सामान इस स्मारक में ऐसे रखा गया है मानों इसका उचित स्थान यही हो। पानी के लिए बनाए गए फब्बारे बंद पड़े हैं, दीवारें टूट चुकी हैं और यह स्थान चूहों की सैरगाह बना हुआ है। चूहे, कुत्ते, बिल्ले और आवारा पशु यहां आम तौर पर सैर करते या आराम फरमाते हुए नजर आते हैं।
इन सब बातों से पता चलता है कि नगर परिषद शहीदों के सम्मान के प्रति कितनी सजग है। अब जरा इस शहीद स्मारक के दूसरे पहलू पर भी नजर डालिए जोकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा के साथ जुड़ा हुआ है। नड्डा 2014 में केंद्र में मंत्री बनने के बाद पहली बार मंडी आए थे तो उन्होंने ऐतिहासिक सेरी मंच से मंडी जिला में शहीद स्मारक के लिए 50 लाख देने का ऐलान किया था। केंद्र और प्रदेश में अलग-अगल सरकारें होने के कारण इस बात पर खूब राजनीति हुई। लेकिन पूर्व सैनिक अब केंद्रीय मंत्री से पूछने लगे हैं कि उनके द्वारा की गई घोषणा का क्या हुआ। राष्ट्रीय सैनिक संस्था के प्रदेशाध्यक्ष रि. कैप्टन बीएस गुलेरिया ने कहा कि सरकारों के नुमाईंदे बातें करने को तो गंभीर हैं लेकिन जमीनी स्तर पर उसे लागू करने के लिए बिल्कुल भी नहीं।
उन्होंने कहा कि केंद्रीय मंत्री द्वारा की गई घोषणा का आज दिन तक कोई पता नहीं चल पाया है। वहीं जब हमने इस बारे में डीसी मंडी ऋग्वेद ठाकुर से बात की तो उन्होंने बताया कि शहीद स्मारक का डिजाईन और डीपीआर बनाकर निदेशक सैनिक कल्याण विभाग शिमला को भेज दी गई है। उन्होंने कहा कि पैसा जारी होते ही शहीद स्मारक के सौंदर्यीकरण का कार्य शुरू कर दिया जाएगा। अब ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि घोषणाएं करने में कितना समय लगता है और उन्हें वास्तविक रूप देने में कितना लंबा समय बीत जाता है। माना कि तीन वर्षों तक अलग-अलग सरकारें होने के कारण इस कार्य में विलंब हुआ हो, लेकिन अब तो 7 महीने बीतने जा रहे हैं जब दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकारें हैं। ऐसे में भी अब इस तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा तो शहादत के प्रति सजगता का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।