जज्बे को सलाम, नौकरी की तलाश छोड़ इस बेटे ने किसान बन कमाया नाम

punjabkesari.in Sunday, Jun 04, 2017 - 04:50 PM (IST)

मंडी (नितेश सैनी): कहते हैं सपनों की उड़ान बहुत ऊंची होती है और अगर हौसला बुंलद हो, तो हर मुश्किल को पार करके आप अपने सपने तक पहुंच ही जाते हैं, ऐसा ही कुछ मंडी जिला के चौंतड़ा विकास खंड की ग्राम पंचायत मेन गांव निवासी रविंद्र कुमार विष्ट ने कर दिखाया। रविंद्र के मन में कुछ अलग करने की तमन्ना ने उसे न केवल अपनी माटी से जुड़ने का अवसर प्रदान किया बल्कि अन्य युवाओं के लिए वह प्रेरणा स्रोत भी बन चुका है। युवाओं को नई दिशा दिखाते हुए उसने आधुनिक कृषि को अपनाया और आज जिला के प्रगतिशील किसानों में उनकी गिनती होती है। उसने कृषि में आधुनिक तकनीकों के समावेश तथा प्रदेश सरकार की कृषि से संबंधित विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाते हुए एक मुकाम हासिल किया है। डॉ. वाई.एस. परमार किसान स्वरोजगार योजना के अंतर्गत पॉली हाऊस निर्मित करने के लिए 85 प्रतिशत तक उपदान किसानों को प्रदान किया जा रहा है।
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पॉली हाऊस में लहलहा रही टमाटर की फसल
इस योजना के बारे में जानकारी प्राप्त होने पर वर्ष 2016 में रविंद्र ने 40 वर्ग मीटर का पॉली हाऊस घर के समीप ही स्थापित करने का बीड़ा उठाया। इसके लिए कुल लागत 75,600 रुपए आई और 85 प्रतिशत अनुदान उन्हें प्राप्त हुआ। वर्तमान में रविंद्र के पॉली हाऊस में टमाटर की फसल लहलहा रही है। उन्होंने लगभग 100 से 120 पौधे इसमें रोपित किए और करीबन 5 क्विंटल उत्पादन का अनुमान है। शिमला मिर्च, फ्रासबीन व अन्य सब्जियां साथ में लगा रखी हैं जिससे उनके पास विकल्प भी उपलब्ध हैं। घर-परिवार की आवश्यकता पूरी करने के बाद अन्य सब्जियां विक्रय कर वे अच्छी आमदन अर्जित कर रहे हैं। इनकी गुणवत्ता व पौष्टिकता के चलते घर-गांव में ही ग्राहक सब्जी खरीद कर ले जाते हैं। सब्जी उत्पादन में रसायनिक खादों का प्रयोग न कर वे जैविक खेती के साथ जुड़े हैं।
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सिंचाई के लिए लाना पड़ रहा था दूर से पानी
लगभग सात हजार रुपए की लागत का वर्मी टेट्रा बेड उन्हें अनुदान पर कृषि विभाग की ओर से निःशुल्क प्राप्त हुआ। इसकी क्षमता तीन क्यूबिक मिट्रिक है और एक बीघा भूमि के लिए लगभग अढाई माह में पर्याप्त जैविक खाद उपलब्ध हो जाती है। दो वर्मी कम्पोस्ट पिट (गड्ढे) भी उन्होंने तैयार किए हैं जिन पर लगभग 20 हजार रुपए का अनुदान मिला। कीटनाशकों का प्रयोग वे नहीं करते, जिससे सब्जियों की पौष्टिकता व दाम दोनों बढ़ जाते हैं। सिंचाई के लिए उन्हें दूर से पानी लाना पड़ रहा था। इस बीच राष्ट्रीय टिकाऊ कृषि अभियान के अंतर्गत सिंचाई टैंक के लिए लगभग दो लाख रुपए का अनुदान प्राप्त हुआ और 72 हजार लीटर क्षमता का टैंक निर्मित कर उन्होंने सिंचाई की स्थायी व्यवस्था भी कर ली। स्रोत के रूप में स्थानीय नाले के अतिरिक्त वर्षा जल संरक्षण तकनीक का भी रविंद्र बखूबी उपयोग कर रहे हैं। नाले से पानी सिंचाई टैंक तक पहुंचाने के लिए पंप सेट क्रय करने पर भी उन्हें अनुदान मिला।
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एक हजार मछली बीज डालने के उपरांत 600 से अधिक मछलियां पल रही

उच्च शिक्षित किसान रविंद्र यहीं नहीं माने और सिंचाई टैंक का बहुपयोग करते हुए इसमें मछली पालन का कार्य भी आरंभ कर दिया। उनके टैंक में इस समय हंगेरियन कॉर्प प्रजाति की मछलियां पल रही हैं। वे कहते हैं कि लगभग एक हजार मछली बीज डालने के उपरांत 600 से अधिक मछलियां पल रही हैं। सर्दियों में यह आय का अच्छा साधन होंगी। उनका कहना है कि मछलियों के अपशिष्ट पदार्थों से मिश्रित पानी की सिंचाई से खेतों को प्राकृतिक यूरिया की भी आपूर्ति हो जाती है। आधुनिक कृषि उपकरणों के प्रयोग ने उनके कार्य को काफी आसान बना दिया है और समय की भी बचत होती है। रविंद्र का कहना है कि खेत जोतने का पूरा कार्य वे पावर बिडर से करते हैं जिसकी खरीद पर उन्हें 15 हजार रुपए अनुदान प्राप्त हुआ। बुश कटर पर दस हजार, चेन शॉ पर पांच हजार रुपए तथा स्प्रे पंप पर कीमत का 50 प्रतिशत अनुदान उन्हें मिला। 


अंतरराष्ट्रीय शिवरात्री महोत्सव के दौरान प्राप्त कर चुके उत्कृष्ट पुरस्कार
विभाग से बीज लेकर वे नर्सरी भी स्वयं तैयार करते हैं और गोबर की आपूर्ति देसी गाय पालन से होती है। विषयवाद विशेषज्ञ (कृषि), चौंतड़ा, डॉ. एस.के. ठाकुर का कहना है कि डॉ. वाई. एस. परमार किसान स्वरोगार योजना के अंतर्गत 40, 105, 252, 504 तथा 1008 वर्ग मीटर के पॉली हाऊस निर्मित किए जाते हैं जिन पर क्रमशः मु. 1403, 1215, 969, 841 तथा 850 रुपए प्रतिवर्ग मीटर की दर से अनुदान प्रदान किया जा रहा है। चौंतड़ा विकास खंड में 27 पॉली हाऊस इस योजना के अंतर्गत स्थापित किए गए हैं जिन पर लगभग 27 लाख रुपए व्यय किए गए हैं। इस योजना की विशेषता यह है कि पॉली हाऊस स्थापित करने वाले किसान को कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में चार दिवसीय निःशुल्क प्रशिक्षण भी प्रदान किया जा रहा है। कृषि विकास व प्रसार अधिकारी भी किसानों का मार्गदर्शन करते हैं। एक नोटबुक भी उन्हें प्रदान की जाती है जिसमें वे विशेषज्ञों के निर्देशों को अंकित कर बाद में उसे व्यवहार में ला सकते हैं। प्रदेश सरकार की प्रोत्साहन योजनाओं तथा रविंद्र कुमार विष्ट की कड़ी मेहनत व दृढ़ इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि अंतरराष्ट्रीय शिवरात्री महोत्सव के दौरान लगी कृषि प्रदर्शनी में वे जिला भर में उत्कृष्ट पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।


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