IIT Mandi के शोधकर्त्ताओं ने विकसित किया विद्युत चुंबकीय हस्तक्षेप रोधक, पर्यावरण को नहीं पहुंचेगा नुक्सान

punjabkesari.in Thursday, May 16, 2024 - 07:55 PM (IST)

मंडी (रजनीश): भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के वैज्ञानिकों ने प्राकृतिक रेशों से ऐसा मैटीरियल बनाया है जो खुद नष्ट हो जाएगा और पर्यावरण को नुक्सान भी नहीं पहुंचाएगा। खास तौर पर बिजली के दखल (ईएमआई) को रोकने में यह फायदेमंद साबित होगा। आईआईटी मंडी के शोधकर्त्ताओं ने विभिन्न उपयोगों के लिए बनाए गए जैव-अपघटनीय प्राकृतिक फाइबर से बने मिश्रित पदार्थ विकसित किए हैं जो खासतौर पर विद्युत चुंबकीय हस्तक्षेप (ईएमआई) रोकने में कारगर साबित होंगे। शोधकर्त्ताओं द्वारा बनाया गया कंपोजिट मैटीरियल न सिर्फ इलैक्ट्राॅनिक उपकरणों को विद्युत चुंबकीय दखल से बचाएगा बल्कि पर्यावरण को नुक्सान होने से भी रोकेगा। इसमें केनाफ फाइबर के तंतु और उच्च घनत्व वाली पाॅलिथिन (एचडीपीई) शामिल है। केनाफ फाइबर एक प्राकृतिक तंतु है जो मजबूत और हल्का होता है इसलिए यह कंपोजिट को मजबूती देने का बेहतरीन काम करता है। इससे बनी चीजें अधिक मजबूत होती हैं और पर्यावरण को कम नुक्सान पहुंचती हैं। इसके साथ ही एचडीपीई एक आम तौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला प्लास्टिक है जिसे दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है।

विद्युत चुंबकीय दखल के ये हैं नुक्सान
कुछ समय से कंपोजिट मैटीरियल का उपयोग इलैक्ट्राॅनिक उपकरणों को सुरक्षित रखने में भी किया जा रहा है। आसान भाषा में समझें तो बहुत सारे इलैक्ट्राॅनिक उपकरण होने से एक तरह का प्रदूषण पैदा होता है, जिसे विद्युत चुंबकीय दखल कहते हैं। यह विद्युत चुंबकीय दखल रडार, मिलिट्री के उपकरणों और इंटरनैट के काम को खराब कर सकता है। इलैक्ट्राॅनिक उपकरणों को इस दखल से बचाने के लिए ईएमआई रोधक पदार्थों की जरूरत होती है और यही काम अब ब्लेंडिड कम्पोजिट मैटीरियल कर रहे हैं।

वैज्ञानिकों ने कंपोजिट में किया कार्बन नैनोट्यूब्स का इस्तेमाल
विद्युत चुंबकीय तरंगों को रोकने के लिए इस कंपोजिट को बिजली का सुचालक होना चाहिए, इसलिए वैज्ञानिकों ने इस कंपोजिट में कार्बन नैनोट्यूब्स (सीएनटीएस) का इस्तेमाल किया है, ताकि यह बिजली का सुचालक बन जाए। शोधकर्त्ताओं ने पाया कि 16 प्रतिशत सन के रेशे और 5 प्रतिशत कार्बन नैनोट्यूब्स का मिश्रण सबसे अच्छा ई.एम.आई. अवरोध देता है, जो 30 डीबी से ज्यादा होता है, साथ ही यह बहुत मजबूत भी होता है।

ये है शोधकर्त्ताओं की टीम
आईआईटी मंडी और फिनलैंड के वीटीटी रिसर्च सैंटर के वैज्ञानिकों की टीम ने साथ मिलकर यह कंपोजिट मैटीरियल बनाया है। इस टीम का नेतृत्व आईआईटी मंडी के मैकेनिकल और मैटीरियल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफैसर डाॅ. हिमांशु पाठक और डाॅ. सनी जफर कर रहे हैं। साथ में आईआईटी मंडी के रिसर्च स्काॅलर आदित्य प्रताप सिंह और फिनलैंड के वीटीटी रिसर्च सैंटर के रिसर्च साइंटिस्ट डाॅ. सिद्धार्थ सुमन भी इस प्रोजैक्ट पर काम कर रहे हैं।

क्या बोले आईआईटी मंडी के एसोसिएट प्रोफैसर
आईआईटी मंडी के एसोसिएट प्रोफैसर डाॅ. हिमांशु पाठक ने कहा कि दीर्घकालिक भविष्य के लिए ऐसे आविष्कारों की जरूरत है जो चीजों को बेहतर तो बनाएं साथ ही पर्यावरण को कम से कम नुक्सान पहुंचाएं। हमारी टीम का यह काम जो पर्यावरण के अनुकूल ईएमआई रोकने वाला पदार्थ बनाता है, टैक्नोलाॅजी के विकास को पर्यावरण की जिम्मेदारी के साथ जोड़ता है। कंपोजिट को मिलाकर मजबूत मैटीरियल बनाना कोई नई बात नहीं है। प्राचीनकाल से ही लोग दो या उससे ज्यादा कंपोजिट को मिलाकर मजबूत मैटीरियल बनाते आ रहे हैं। पुराने जमाने में ईंट बनाने के लिए मिट्टी और सूखी घास को मिलाया जाता था। आजकल पर्यावरण को होने वाले नुक्सान को कम करने के लिए प्राकृतिक रेशों जैसे जूट और गांजे से बनी कंपोजिट मैटीरियल फिर से लोकप्रिय हो रही है। इनका इस्तेमाल कई तरह के उद्योगों में किया जा सकता है। वहीं एसोसियए प्रोफैसर डॉ. सनी जफर ने कहा कि इस कंपोजिट में बहुत सी संभावनाएं हैं और इसका असल जिंदगी में कई तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों के डिब्बों से लेकर हवाई जहाजों में सामान रखने की जगहों और ड्रोन तक में किया जा सकता है। यह नया कंपोजिट पर्यावरण को कम नुक्सान पहुंचाता है, इसलिए यह आज के जमाने की चुनौतियों को हल करने में और पर्यावरण की रक्षा करने में बहुत मददगार साबित हो सकता है।
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Content Writer

Vijay

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