Himachal: सोलन में अद्भुत खोज, 60 करोड़ साल पुराने मिले जीवाश्म

punjabkesari.in Wednesday, May 14, 2025 - 10:36 AM (IST)

हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में एक अद्भुत खोज हुई है, जिसने पृथ्वी पर जीवन के शुरुआती इतिहास पर नई रोशनी डाली है। चंबाघाट के पास जोलाजोरां गांव में दुनिया के सबसे पुराने माने जाने वाले स्ट्रोमैटोलाइट्स जीवाश्म पाए गए हैं। यह खोज टेथिस जीवाश्म संग्रहालय के संस्थापक डॉ. रितेश आर्य ने की है और इन जीवाश्मों को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज किया गया है। डॉ. आर्य का दावा है कि ये जीवाश्म 60 करोड़ साल से भी अधिक पुराने हैं और ये उस समय की कहानी बताते हैं जब पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत हो रही थी।

डॉ. आर्य बताते हैं कि स्ट्रोमैटोलाइट्स समुद्र की उथली सतहों पर सूक्ष्म जीवों की परतों से बने पत्थर होते हैं। जोलाजोरां में मिले ये जीवाश्म यह स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि आज का सोलन क्षेत्र कभी प्राचीन टेथिस सागर का समुद्री तल हुआ करता था। यह विशाल सागर कभी गोंडवाना महाद्वीप (जिसमें भारत, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका और अंटार्कटिका शामिल थे) और एशियाई भूभाग के बीच फैला हुआ था।

इस खोज का महत्व बताते हुए डॉ. आर्य ने कहा कि जब पृथ्वी के वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा न के बराबर थी और ग्रीनहाउस गैसों का प्रभुत्व था, तब इन्हीं सूक्ष्म जीवों (स्ट्रोमैटोलाइट्स) ने लगभग 2 अरब वर्षों के दौरान धीरे-धीरे ऑक्सीजन का निर्माण शुरू किया। इसी प्रक्रिया के कारण पृथ्वी पर आगे चलकर जटिल जीवन का विकास संभव हो सका। उनका कहना है कि यदि स्ट्रोमैटोलाइट्स नहीं होते, तो आज पृथ्वी पर ऑक्सीजन भी नहीं होती।

डॉ. आर्य पहले भी सोलन के धर्मपुर के कोटी, चित्रकूट और हरियाणा के मोरनी हिल्स से स्ट्रोमैटोलाइट्स जीवाश्म खोज चुके हैं। हालांकि, उनका कहना है कि चंबाघाट में मिले जीवाश्म एक अलग प्रकार की परतदार संरचना प्रदर्शित करते हैं, जो एक भिन्न प्राचीन पर्यावरणीय स्थिति की जानकारी देते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि हिमाचल की धरती में करोड़ों साल पुराना समुद्री इतिहास छिपा हुआ है और इसे संरक्षित करके आने वाली पीढ़ियों को सौंपना हमारी जिम्मेदारी है।

इस खोज के वैज्ञानिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए ओएनजीसी के महाप्रबंधक रहे डॉ. जगमोहन सिंह ने कहा कि चंबाघाट के ये स्ट्रोमैटोलाइट्स हमें उस युग में ले जाते हैं जब पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत हो रही थी। पंजाब विश्वविद्यालय के पूर्व भूविज्ञान विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ भूवैज्ञानिक प्रोफेसर (डॉ.) अरुण दीप आहलूवालिया ने इन जीवाश्मों को न केवल वैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण बताया, बल्कि इन्हें संरक्षण के योग्य भी करार दिया।

डॉ. आर्य अब इस महत्वपूर्ण खोज को मान्यता दिलाने और इसके संरक्षण के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने बताया कि वह जल्द ही उपायुक्त और पर्यटन अधिकारी को पत्र लिखकर इस स्थान को राज्य जीवाश्म धरोहर स्थल घोषित करने की मांग करेंगे। उनका मानना है कि ऐसा करने से विज्ञान, संरक्षण और जियो टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा, जिससे यह क्षेत्र राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना सकेगा। यह खोज न केवल हिमाचल प्रदेश के लिए बल्कि पूरे विश्व के वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जो हमें पृथ्वी के प्रारंभिक जीवन और विकास को समझने में मदद करती है।


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Content Editor

Jyoti M

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