विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक चम्बा चर्म उद्योग पर मंडराया आर्थिक संकट

punjabkesari.in Thursday, Aug 26, 2021 - 11:13 PM (IST)

चम्बा (सुभाष): कोरोना के चलते पिछले 2 वर्षों से मिंजर मेला, मणिमहेश यात्रा व अन्य मेलों व प्रदर्शनियों पर प्रतिबंध के कारण चम्बा चर्म उद्योग आर्थिक रूप से संकट के घेरे में है। कारोबारियों के लिए बैंक ऋण की ईएमआई व ब्याज भरना मुश्किल हो गया है। दुकानों के किराए, बिजली, पानी और अन्य करों की अदायगी भी नहीं हो रही है। यह बात चम्बा चर्म उद्योग से जुड़े उद्यमियों व कारोबारियों अनिल कुमार, मनमोहन, नंदकुमार व राकेश आदि ने कही। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में उनका धंधा मंदा होता चला गया। हालात यह हैं कि उनके लिए आजीविका कमाना भी दूभर हो गया है। उनका 90 फीसदी कारोबार पर्यटकों पर निर्भर करता है। ऐसे में सरकार और प्रशासन को उनकी आर्थिक मदद और उनके द्वारा निर्मित उत्पादों का विपणन करने के लिए आगे आने की दरकार है। ऐसा न होने से उनके द्वारा निर्मित ऐतिहासिक चम्बा चप्पलें और अन्य विश्व प्रसिद्ध उत्पाद गुजरे जमाने की बात बन कर रह जाएंगे। उन्होंने कहा कि संगठित प्लास्टिक उद्योग और अन्य कार्पोरेट घरानों द्वारा विकल्प के तौर पर मार्कीट में उतारे गए जूते-चप्पल और फुटवियर ने भी चम्बा लैदर उद्योग को आघात पहुंचाया है, जिनके समक्ष प्रतिस्पर्धा करने में वह मुट्ठी भर लोग अपने दमखम के बलबूते असहाय महसूस कर रहे हैं।

रानी की इच्छा पर दहेज में भेजा था कसीदाकारी में माहिर परिवार

17वीं शताब्दी में राजा उदय सिंह के कार्यकाल में ऐतिहासिक रंगमहल का निर्माण हुआ, जिससे स्थानीय नाच-गान व वाद्य यंत्रों को पहचान मिली। इसके साथ ही चम्बा के विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक चम्बा चप्पल उद्योग, रुमाल और अन्य उत्पादों को भी पहचान मिल गई। 19वीं शताब्दी में नूरपुर के राजा वीर सिंह की बहन की शादी चम्बा के राजा चढ़त सिंह (1808-1844) के साथ हुई। उनकी शिकायत थी कि चम्बा में चर्म कसीदाकारी की बजाय कठोर और कच्ची घास से बने जूते पहने जाते हैं। रानी की इच्छा के अनुसार नूरपुर के पंज-बैरा गांव से चर्म कसीदाकारी में माहिर एक परिवार को दहेज के रूप में चम्बा भेजा गया और तब से चम्बा में चर्म कसीदाकारी का दौर धीरे-धीरे विकसित होने लगा। इस परिवार के वंशज आज भी चम्बा में पंज-बैरा के नाम से जाने जाते हैं।

ऐसे मिली नई पहचान

समय के साथ-साथ चम्बा के लैदर क्राफ्ट को बल मिला और चम्बा का चर्म उद्योग चर्म उत्पादों के क्षितिज में लंबी उड़ानें भरने लगा। विभिन्न डिजाइनों में चर्म कसीदाकारी युक्त चम्बा चप्पल, लैदर बैग, बैल्ट, पर्स, मोबाइल कवर और लैदर के अन्य उत्पाद मार्कीट में उतारे जाने लगे। इससे लैदर कारोबारियों को लैदर क्राफ्ट में अपने जौहर दिखाने के साथ ही देश-विदेशों में प्रसिद्धि मिली। चम्बा लैदर क्राफ्ट नित नए आयाम स्थापित करने में सफल रहा। इन उत्पादों की मांग आपूर्ति के मुकाबले बढ़ती चली गई। देश-विदेश से चर्म शिल्प और कला के चाहवान व्यक्ति और संस्थान चम्बा चप्पल उद्योग में रुचि दिखाने लगे। चम्बा के चर्म उद्योग में माहिर कारोबारी उनकी इच्छा, अपेक्षा और आदेशानुसार विभिन्न प्रकार के डिजाइनों में चंबा चप्पल और अन्य उत्पाद निर्मित करने लगे और चम्बा चप्पल उद्योग बुलंदियों की राह पर था। 

संकट से उभारने के लिए किए जाएंगे उचित प्रबंध : रामप्रसाद

एसी टू डीसी रामप्रसाद शर्मा ने बताया कि चंबयाल प्रोजैक्ट सीमित समय के लिए था जो अब लगभग समाप्त होने को है। प्रोत्साहन के तौर पर स्थानीय लोगों को भी चम्बा लैदर के कारोबारियों द्वारा निर्मित उत्पाद इस्तेमाल करने चाहिए जो सस्ते होने के साथ-साथ टिकाऊ भी हैं। ऐतिहासिक चम्बा चर्म उद्योग को आर्थिक संकट से उभारने के लिए जिला प्रशासन की ओर से विचार कर यथोचित प्रबंध किए जाएंगे।   


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Vijay

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