अर्बन नक्सलवाद देश के लिए बड़ी चुनौती, ऐसी सोच फैलाने वालों को पहचानना जरूरी : कर्ण नंदा

punjabkesari.in Sunday, Sep 28, 2025 - 06:32 PM (IST)

शिमला: अर्बन नक्सलवाद देश के लिए एक बड़ी चुनौती है और हम सभी को नक्सलवाद की सोच को फैलाने वालों को पहचानने की अत्यधिक आवश्यकता है। फिल्में बनाकर इस सोच को आगे बढ़ाना एक शक्तिशाली माध्यम है, जिसके दूरगामी परिणाम होते हैं। बड़े पैमाने पर कई शिक्षा संस्थानों में चला 'पिंजरा तोड़' अभियान भी माओवादी सोच का ही नतीजा था। यह बातें भाजपा प्रदेश मीडिया संयोजक कर्ण नंदा ने दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित "भारत मंथन 2025, नक्सल मुक्त भारत" राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन में भाग लेते हुए कहीं। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश से लाल आतंकवाद (नक्सलवाद) को जड़ से खत्म करने की रणनीतियों पर विस्तृत मंथन करना था। सम्मेलन  में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरलीधर राव, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, स्निग्धा रेड्डी, आईपीएस प्रवीण वशिष्ठ, सीआरपीएफ के पूर्व डीजी कुलदीप सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह, फिल्म निर्माता विपुल शाह और बस्तर (छत्तीसगढ़) के आईजी पी. सुन्दराज जैसे दिग्गज माैजूद रहे।

सम्मेलन में कर्ण नंदा ने  नक्सलवाद के क्रूर चेहरे का उल्लेख करते हुए बताया कि भाजपा के राष्ट्रीय नेता मुरलीधर राव पर 1980 और 1986 में माओवादियों द्वारा दो बार हमला किया गया था और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के बेटे की माओवादियों ने हत्या कर दी थी। उन्होंने कहा कि नक्सलवादी देश का विकास नहीं चाहते और यह मानते हैं कि लोकतंत्र से देश का भला नहीं हो सकता। रैडिकल स्टूडैंट यूनियन, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया भी इसी विभाजनकारी सोच की उपज हैं, जो भारत के तिरंगे का सम्मान नहीं करते।

कर्ण नंदा ने पूर्व की कांग्रेस सरकार और वर्तमान मोदी सरकार के दृष्टिकोण में अंतर को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि 2010 में माओवाद अपने चरम पर था और पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना और बिहार जैसे राज्यों में इसका प्रभाव था। 2006 और 2012 के बीच तत्कालीन केंद्र सरकार ने खुद माना था कि नक्सलवाद देश का सबसे बड़ा आंतरिक खतरा है, लेकिन इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। कांग्रेस सरकार फौज के सुझावों को अनसुना करती थी। इसके विपरीत 2017 के बाद प्रधानमंत्री मोदी की केंद्र सरकार ने मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में गृह मंत्रालय अब सेना और सीआरपीएफ जैसे अग्रिम बलों के सुझावों पर तत्काल कार्रवाई करता है। हर महीने सुरक्षा बलों के साथ बैठकें होती हैं। आज स्थिति यह है कि माओवादी-नक्सली सीजफायर की भीख मांग रहे हैं।

कर्ण नंदा ने बताया कि केंद्र सरकार ने सीआरपीएफ को इस युद्ध के लिए आधुनिक हथियार दिए और कोबरा बटालियन ने इस लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि बस्तर और लालगढ़ जैसे अति-प्रभावित क्षेत्रों में मोदी सरकार ने विकास और नौकरियों को हथियार बनाया। आज तेज टैक्नोलॉजी के दौर में नक्सली सोच ज्यादा नहीं चलेगी। नक्सल प्रभावित कॉरिडोर में 20 हजार करोड़ की लागत से 17500 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई जा रही हैं, जिनमें से 15000 किलोमीटर का काम पूरा हो चुका है। इसके अलावा 600 पोस्ट ऑफिस और 10500 मोबाइल टावर लगाए गए हैं। विकास के सामने यह विभाजनकारी सोच टिक नहीं पाएगी।

कर्ण नंदा ने निष्कर्ष में कहा कि दशकों तक वामपंथी उग्रवाद  भारत की सबसे क्रूर आंतरिक सुरक्षा चुनौती रहा है। यह गरीबों का संघर्ष नहीं, बल्कि हिंसा, जबरन वसूली और विनाश का अभियान था, जिसमें 16 हजार से ज्यादा निर्दोष लोगों की जान गई। मोदी सरकार ने इस चुनौती से निपटने के लिए एक एकीकृत और समग्र दृष्टिकोण अपनाया। सुरक्षा बलों ने अब रक्षात्मक होने के बजाय नक्सलियों के गढ़ में घुसकर उनके नेटवर्क को नष्ट कर दिया है। वित्तीय स्रोतों पर लगाम लगाने और गुमराह युवाओं को आत्मसमर्पण का मौका देने जैसी नीतियों ने नक्सलवाद की जड़ों पर प्रहार किया है, जिससे देश इस खतरे से मुक्त होने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।


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Vijay

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