भगवा और वाम ब्रिगेड ने संभाला अग्रिम मोर्चा, इन सियासी योद्धाओं ने तेज किए अस्त्र-शस्त्र

Sunday, May 07, 2017 - 09:33 AM (IST)

शिमला: सरकार और कांग्रेस की तमाम उलझनों व विरोधाभासों के बीच भगवा और वाम ब्रिगेड ने नगर निगम के चुनावी रण के लिए अग्रिम मोर्चा संभाल लिया है। इन सियासी योद्धाओं ने अस्त्र-शस्त्र तेज कर लिए हैं। भाजपा ने 34 वार्डों में प्रदेश के विधायकों की कुल संख्या 68 के बराबर ही प्रभारी और सहप्रभारी तैनात कर रखे हैं। यानी ये नेता पूरे वार्डों में पार्षदों का भविष्य तय करेंगे। इनके कंधों पर अहम जिम्मेदारी डाली गई है। इनके सेनापति पूर्व मंत्री डा. राजीव बिंदल हैं जबकि सह सेनापति त्रिलोक जम्वाल और महेंद्र धर्माणी हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार अभी तक पार्षदों का चुनाव लड़ने के लिए 100 से अधिक आवेदन आए हैं। ये आवेदन लिखित नहीं मौखिक आए हैं। पार्टी सिंबल पर चुनाव न होने के कारण लिखित आवेदन नहीं आए हैं। इनकी सूची तैयार की जा रही है। चुनाव प्रभारी और सहप्रभारियों के माध्यम से इस सूची को पार्टी के प्रदेश स्तर के शीर्ष नेतृत्व को भेजा जाएगा। इसके लिए पार्टी पैनल बनाएगी। 


पार्टी की पारखी नजर से जिताऊ उम्मीदवार का नाम छूटने की कोई गुंजाइश नहीं
पार्टी समर्थित प्रत्याशी तय करने में करीब 15 नेताओं की अहम भूमिका रहेगी। तय करने से पहले नामों पर गुण और दोष के आधार पर जांच-पड़ताल की जाएगी। इसके लिए ठोस क्राइटीरिया बनाया जाएगा। पार्टी की पारखी नजर से जिताऊ उम्मीदवार का नाम छूटने की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी। भाजपा यूं भी निगम चुनाव को गंभीरता से ले रही है। वह इस चुनाव में जीतने का कोई मौका नहीं चूकना चाहती है। इसके ठीक बाद विधानसभा के चुनाव होंगे। अगर भाजपा जीतती है तो उसका असर विधानसभा चुनाव पर भी देखने को मिलेगा। कांग्रेस चुनाव जीतने के बयानों में तो दावे कर रही है लेकिन उसकी जमीनी स्तर पर तैयारियां कम ही दिख रही हैं। कांग्रेस रविवार को होने वाली बैठक से जरूर सक्रिय हो जाएगी। यह बैठक विधानसभा चुनाव को लेकर है लेकिन इसमें नगर निगम चुनाव पर भी चर्चा होगी। विपक्षी दल के पक्ष में चल रही लहर को रोकने के लिए रणनीति भी बनेगी। कांग्रेस के पदाधिकारी इसमें अपनी बात प्रमुखता से रखेंगे। वे पार्टी की कमजोरियों और मजबूती दोनों पर चर्चा करेंगे। इसमें सरकार का भी सहयोग लेने की बात उठेगी। 


शहर के होटलों में माकपा के मजदूर संगठनों का काफी दबदबा
चुनाव में सरकार की भी अहम भूमिका रहने वाली है। चुनावी साल होने के कारण सरकार भी चाहेगी कि वह पहले निगम के चुनाव में जीत दर्ज करे क्योंकि उसके तत्काल बाद विधानसभा चुनाव की तैयारियां आरंभ हो जाएंगी। निगम चुनाव के लिए माकपा ने भी पूरी ताकत झोंक दी है। वामपंथियों ने सभी वार्डों में संयोजक और सह संयोजक बना दिए हैं। इनकी संख्या भी 68 है। इस कारण 68 का आंकड़ा काफी अहम हो गया है। पार्टी सूत्रों के अनुसार मौजूदा वक्त में माकपा के पास पार्षद बनने के इच्छुक व्यक्तियों के करीब 100 आवेदन आए हैं। आवेदन वार्ड कमेटी के पास किए गए हैं। इन नामों पर पहले वार्ड कमेटी चर्चा करेगी और उसके बाद इन्हें चुनाव कमेटी के पास भेजा जाएगा। शहर के होटलों में माकपा के मजदूर संगठनों का काफी दबदबा है। लंबे संघर्ष का वामपंथियों को पिछले चुनाव में लाभ हुआ था। पार्टी का दावा है कि अब उसके साथ नए लोग भी जुड़े हैं। निगम की सत्ता से पार्टी को असल में कितना लाभ-नुक्सान हुआ है, इसका पता पार्षदों के चुनाव से लग जाएगा। 


वोटर लिस्ट और विवाद का चोली दामन का साथ
नगर निगम चुनाव और वोटर लिस्ट विवाद का चोली दामन का साथ रहा है। पहले ड्राफ्ट लिस्ट और अब अंतिम लिस्ट भी यही कहानी फिर से दोहरा रही है। हालात ये हैं कि पैन ड्राइव के माध्यम से दी गई सॉफ्ट कॉपी और ऑनलाइन जारी की गई लिस्ट के सीरियल नंबर आपस में मेल नहीं खा रहे हैं। बड़ी संख्या में नए वोटर तो बने हैं, साथ ही कई जगहों से पुराने वोटर भी गायब हो गए हैं। कुल मिलाकर वोटर लिस्ट पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। पहले भी यह विवाद राज्य निर्वाचन आयोग से लेकर हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। जिन वोटरों के नाम विधानसभा सूची में ग्रामीण इलाकों में हैं, उन्हें शहर में वोट डालने के अधिकार से वंचित रखा गया जबकि ये वोटर शिमला में रहते हैं। इन्हें सुविधाएं तो शिमला नगर निगम से चाहिए, पर वोट डालने का इनको कोई अधिकार नहीं है। जिन्होंने नए वोट बनवाए हैं, उनसे शपथ पत्र लिया गया है। इस बात की कोई गारंटी नहीं कि इनमें से शपथ पत्र में गलत जानकारी नहीं दी होगी। वोटर लिस्ट से जुड़े अधिकारियों और कर्मचारियों का एक-दूसरे के साथ कोई तालमेल नहीं दिखा। वोटर लिस्ट में खामियों का मुद्दा भाजपा ने प्रमुखता से उठाया था। इसे राज्य निर्वाचन आयोग तक पहुंचाया। माकपा तो कोर्ट तक गई। भाजपा ने मुद्दे को तूल दिया तो फिर कांग्रेस भी जाग उठी। कांग्रेस के अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू ने स्थानीय नेताओं के साथ इसे आयोग के आयुक्त पी. मित्रा के सामने उठाया। इसके बाद आयोग भी हरकत में आया। लेकिन वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों को रोकने के कहीं कोई प्रयास नहीं हुए। 


डी.सी. और उनकी टीम पर उठाए सवाल
माकपा ने निर्वाचन से जुड़े ऑफिसर एवं शिमला के डी.सी. रोहन ठाकुर और उनकी टीम की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। माकपा नेता एवं रिटायर आई.एफ.एस. अधिकारी डा. कुलदीप सिंह व चुनाव कमेटी के सह संयोजक विजेंद्र मेहरा ने कहा कि जिला प्रशासन पूरी तरह से फेल रहा है। उन्होंने कहा कि पहले वार्डों की डीलिमिटेशन गलत करवाई, बाद में वोटर लिस्ट का विवाद खड़ा हो गया। उन्होंने कहा कि ऐसा या तो कांग्रेस के इशारे पर हुआ है या फिर प्रशासन सरकार को ही फेल करवाने पर तुला हुआ है। उन्होंने कहा कि निर्वाचन जैसे संवेदनशील मसलों पर डी.सी. परिपक्वता नहीं दिखा रहे हैं। उन्होंने कहा कि वार्डों में कई पुरानी कालोनियां ही गायब कर दी हैं। पहले वाली लिस्ट में भी इनके नाम थे। टुटू के बंगला कालोनी को ही लें तो इसमें अब 10 वोट रह गए हैं। पहले 150 वोट थे। 10 वोट नए बनाए थे। उन्होंने कहा कि मल्याणा से सांगटी वार्ड को अलग किया गया लेकिन इसकी नैचुरल बाऊंड्रीज भी सही तरीके से नहीं आंकी गई हैं। एक ही जगह के 5 वोटरों में से 3 मल्याणा और दो वोटर सांगटी में दर्शाए गए हैं। ऐसा कई स्थानों पर हुआ है। माकपा वोटर लिस्ट की गड़बडिय़ों को फिर से कोर्ट में चुनौती देने पर विचार कर रही है।

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