कमरूनाग की धर्म बहन हैं मां जालपा

punjabkesari.in Thursday, Mar 10, 2016 - 12:16 PM (IST)

मंडी: अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव में माता जालपा का विशेष महत्व है। सराजघाटी के जुफर क्षेत्र में आज भी माता जालपा की कन्या रूपी मूर्ति मौजूद है। जुफर में माता का जो मंदिर है वह लगभग 2900 साल पुराना माना जाता है। बताया जाता है कि माता इस क्षेत्र में कन्या रूप में आई थी और एक परिवार में कई सालों तक रही थी। बाद में माता ने कन्या रूप त्याग दिया और स्वयं मूर्ति बन गई। ज्ञात रहे कि अधिकतर मंदिरों में हम देखते हैं कि मंदिर निर्माण के बाद मूर्ति की स्थापना की जाती है लेकिन गाड़ागुशैणी के जुफर में माता की कन्या रूपी मूर्ति के बाहर मंदिर का निर्माण किया गया है।


जम्मू से आई हैं माता
माता जालपा के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि माता मानतलाई (जम्मू) से आई हैं। वहां से आने के बाद माता मंडी जिला के द्रंग, छोटी काशी के राजा माधवराय मंदिर, टारना मंदिर, लाहौल, हाटेश्वरी, हाटकोटी व चिंडी से होते हुए कमरूनाग आईं। वहां पर बड़ा देव कमरूनाग को माता ने अपना धर्म भाई बनाया। उसके बाद माता ने गाड़ागुशैणी के जुफर में खुद को स्थापित किया। उपरोक्त जिन-जिन स्थानों से होकर माता आई है वहां पर आज भी माता के मंदिर स्थापित हैं। माना जाता है इन क्षेत्रों में माता ने अनेक चमत्कार किए थे जिनकी आज भी उतनी ही मान्यता है। 


जलेब में नहीं जाता माता का रथ
माता जालपा के गुर शंभु राम, पुजारी अमर सिंह व कारदार व्रिकमजीत ने कहा कि शिवरात्रि के दौरान होने वाली जलेब में माता जालपा का रथ नहीं जाता है। पहले बुजुर्ग माता के मूल स्थान से सिर्फ मोहरे लाते थे लेकिन अब माता के मूल स्थान से पूरा रथ तैयार करके लाया जाता है। उन्होंने कहा कि आज भी राज महल में माता की चौली (मोहरों के अलावा अन्य रथ सामग्री) विद्यमान है। 


माधवराय मंदिर में ठहरता है रथ
अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव के दौरान माता जालपा का रात्रि ठहराव राजा माधवराय मंदिर में ही रहता है। शिवरात्रि महोत्सव में लगभग 200 के आस-पास पंजीकृत व गैर-पंजीकृत देवता आते हैं लेकिन राजा माधवराय मंदिर में सिर्फ माता जालपा, कांढ़ी नाग व माता अंबिका डाहर ही ठहरती हैं। माता जालपा मंडी रियासत के राजाओं की कुल देवी भी मानी जाती हैं इसलिए माता को राजा माधवराय मंदिर में ठहराया जाता है। 


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