सावधान! हिमाचल में तेजी से बढ़ रही ये खतरनाक बीमारी, ये है वजह?
punjabkesari.in Monday, Jun 09, 2025 - 11:33 AM (IST)

हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश में क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) एक गंभीर समस्या बनती जा रही है, जिसे 'खामोश महामारी' का नाम दिया जा रहा है। हाल ही में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (एचपीयू) द्वारा किए गए एक अध्ययन ने इस बीमारी के बढ़ते खतरे को उजागर किया है, जो वाकई चिंताजनक है।
यह अध्ययन हिमाचल के सबसे बड़े स्वास्थ्य संस्थान इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी), शिमला में इलाज के लिए आए मरीजों पर आधारित है। चौंकाने वाली बात यह है कि शिमला जिला सीकेडी का प्रमुख हॉटस्पॉट बनकर उभरा है। अध्ययन में शामिल कुल मरीजों में से लगभग 39.9 प्रतिशत मरीज अकेले शिमला जिले से है। इसके बाद मंडी में 14.5 प्रतिशत, सोलन में 10 प्रतिशत और कुल्लू में 8.6 प्रतिशत मरीज पाए गए। वहीं, लाहौल-स्पीति जिले में सबसे कम 0.6 प्रतिशत मरीज मिले, जिसके पीछे कम आबादी और अलग भौगोलिक परिस्थितियों को कारण बताया गया है।
एचपीयू के अंतर विषय अध्ययन विभाग के वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी रणधीर सिंह रांटा के नेतृत्व में आंचल शर्मा और सुनंदा संघेल ने मिलकर कुल 2,609 मरीजों पर यह महत्वपूर्ण अध्ययन किया। उन्होंने 2014 से 2023 तक के क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीजों के आंकड़ों का बारीकी से विश्लेषण किया। इस विश्लेषण से पता चला कि सीकेडी के मामलों में लगातार वृद्धि हुई है, जो 2023 में कुल मामलों के 16.9 प्रतिशत के साथ अपने चरम पर पहुँच गई। सबसे कम प्रसार 2017 में 6 प्रतिशत दर्ज किया गया था।
डॉक्टरों और विशेषज्ञों का मानना है कि सीकेडी के बढ़ते मामलों के पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं। इनमें सबसे प्रमुख हैं - शुगर (मधुमेह), ब्लड प्रेशर (उच्च रक्तचाप) और यूरिन में प्रोटीन का लीक होना। आईजीएमसी शिमला में नेफ्रोलॉजी विभाग की चिकित्सक डॉ. कामाक्षी सिंह ने बताया कि ये तीनों ही सीकेडी के मुख्य कारणों में शामिल हैं। इसके अलावा, गुर्दे की छननी का खराब होना और गुर्दे के अलग-अलग हिस्सों में होने वाली बीमारियाँ भी इस गंभीर समस्या को बढ़ावा दे रही हैं।
अध्ययन में सीकेडी के अन्य प्रमुख कारणों को भी रेखांकित किया गया है, जिनमें शुद्ध पेयजल की कमी, संतुलित और समय पर खानपान का अभाव, अनियमित दिनचर्या, धूम्रपान, शराब का सेवन, मानसिक तनाव, और रक्तचाप शामिल हैं। एक और चौंकाने वाला पहलू यह है कि पानी को शुद्ध करने के लिए निश्चित मात्रा से अधिक क्लोरीन का उपयोग करना भी किडनी खराब होने का एक संभावित कारण हो सकता है। यह दर्शाता है कि हमारे आसपास की छोटी-छोटी चीजें भी हमारे स्वास्थ्य पर कितना गहरा प्रभाव डाल सकती हैं।
लिंग के आधार पर विश्लेषण करने पर पाया गया कि सीकेडी की चपेट में आए पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक है। कुल मरीजों में से 60.2 प्रतिशत पुरुष और 39.8 प्रतिशत महिलाएं इस बीमारी से ग्रसित थीं। आयु वर्ग के हिसाब से देखा जाए तो 57 से 67 वर्ष और 68 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में अधिकांश मामले पाए गए। 17 वर्ष से कम आयु वाले मरीज अपेक्षाकृत कम थे। 57 से 67 वर्ष आयु वर्ग के लोगों में बीमारी का सबसे अधिक प्रसार देखा गया, खासकर 2023 में यह ज्यादा रहा।
डॉ. कामाक्षी सिंह ने इस बात पर भी जोर दिया कि अगर किडनी में पथरी हो तो उसका समय रहते उपचार करवाना अत्यंत आवश्यक है। उपचार न करने पर गुर्दे खराब हो सकते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कई बार पानी में ऐसे तत्व होते हैं जो किडनी को खराब कर सकते हैं। इन सभी कारणों को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि हमें अपनी जीवनशैली में सुधार करने की तत्काल आवश्यकता है। नियमित जांच, संतुलित आहार, पर्याप्त पानी का सेवन, धूम्रपान और शराब से परहेज, और तनाव प्रबंधन क्रोनिक किडनी डिजीज से बचाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। हिमाचल में इस खामोश महामारी को रोकने के लिए जन जागरूकता और सरकारी स्तर पर ठोस कदम उठाना समय की मांग है।