हिमाचल में लगातार क्यों फट रहे हैं बादल? जानिए क्या है तबाही की असली वजह
punjabkesari.in Saturday, Sep 06, 2025 - 10:29 AM (IST)
हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश में बादल फटने की घटनाएं और इनसे होने वाली तबाही लगातार बढ़ती जा रही है। भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन हर साल इस पहाड़ी राज्य में कहर बरपा रहे हैं। इस मानसून के मौसम में ही 50 से ज़्यादा जगहों पर बादल फट चुके हैं, जबकि 95 बार बाढ़ और 133 बार भूस्खलन की बड़ी घटनाएं हुई हैं। पिछले 30 सालों में पहाड़ों पर बहुत ज्यादा बारिश होने की घटनाओं में 200% तक की बढ़ोतरी हुई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन (ग्लोबल वार्मिंग) के साथ-साथ, पहाड़ों पर बन रही झीलें और बांध भी इन आपदाओं के लिए ज़िम्मेदार हैं। नब्बे के दशक में बादल फटने की घटनाएं ज़्यादातर ऊंचे इलाकों तक ही सीमित थीं, लेकिन अब ये हर साल निचले इलाकों में भी हो रही हैं।
आंकड़ों से समझें तबाही का मंज़र
राज्य आपदा प्रबंधन के आंकड़ों के अनुसार, साल 2018 से 2022 के बीच हिमाचल में बादल फटने की सिर्फ छह घटनाएं दर्ज हुईं, जबकि बाढ़ की 57 और भूस्खलन की 33 घटनाएं सामने आईं। लेकिन 2023 में स्थिति काफी बदल गई। उस साल, मानसून के दौरान 45 जगहों पर बादल फटे, 83 बार बाढ़ आई और 5,748 भूस्खलन की घटनाएं हुईं। सिर्फ जुलाई और अगस्त महीने की तीन बड़ी घटनाओं में ही भारी नुकसान हुआ, जिनमें 6 बार बादल फटे, 32 बाढ़ और 163 भूस्खलन की घटनाएं शामिल थीं।
साल 2024 की बरसात में भी बादल फटने की 14, भूस्खलन की तीन और बाढ़ की 40 घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें जान-माल का भारी नुकसान हुआ। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की, वाडिया हिमालयन भूविज्ञान संस्थान देहरादून और भू विज्ञान की अलग-अलग रिपोर्टों के अनुसार, हिमालयी क्षेत्रों में पिछले 30 सालों में बहुत ज़्यादा बारिश की घटनाओं में 200% तक की वृद्धि हुई है।
क्लाइमेट चेंज और इंसानी दखल है वजह
हिमाचल में लगातार आ रही ये आपदाएं जलवायु परिवर्तन और पहाड़ों पर बढ़ रही इंसानी गतिविधियों का नतीजा हैं। इनमें अंधाधुंध निर्माण, बिजली परियोजनाएं और पेड़ों की कटाई शामिल है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मुताबिक, लाहौल-स्पीति जिले में स्थित समुद्र टापू और गेपांग गथ जैसे ग्लेशियरों में 1979 से 2017 के बीच झीलों का आकार रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ गया है। साल 2000 के बाद से हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने की रफ़्तार दोगुनी हो गई है।
ग्लेशियर झीलें बन रहीं 'टाइम बम'
पर्यावरणविद् कुलभूषण उपमन्यु कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पहाड़ों में बर्फ बहुत तेजी से पिघल रही है, जिससे ऊंचे इलाकों में ग्लेशियर झीलें बन रही हैं। जब बहुत ज़्यादा बारिश होती है, तो इन झीलों की दीवारें टूट जाती हैं या इनमें पानी भर जाता है, जिससे बादल फटने जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। इन झीलों पर सही से निगरानी और देखरेख न होने के कारण ये 'टाइम बम' बन गई हैं।
विकास भी बढ़ा रहा है मुश्किलें
जल विद्युत परियोजनाओं के विशेषज्ञ आरएल जस्टा का कहना है कि राज्य में तेज़ी से बन रहीं जल विद्युत परियोजनाएं और बांध भी स्थिति को बिगाड़ रहे हैं। ये बांध स्थानीय जलवायु में सूक्ष्म स्तर पर बदलाव कर रहे हैं। जलाशयों से बहुत ज़्यादा वाष्पीकरण और स्थानीय नमी के असंतुलन से अचानक तेज़ बारिश की संभावना बढ़ जाती है। पहाड़ों को काटकर बनाई जा रही सुरंगों और सड़कों से भी ज़मीन की स्थिरता घट रही है।
जल शक्ति विभाग के रिटायर्ड इंजीनियर सुभाष वर्मा बताते हैं कि पहले बादल फटने की घटनाएं सिर्फ दुर्गम पहाड़ी इलाकों तक सीमित थीं, लेकिन अब आबादी वाले इलाकों में भी ये आम हो गई हैं। शहरीकरण की वजह से जंगल और प्राकृतिक जल निकासी के रास्ते खत्म हो गए हैं। पहाड़ों पर बनी कंक्रीट की इमारतें और अवैध निर्माण पानी के बहाव को रोकते हैं, जिससे पानी जमा होकर अचानक तेज़ी से नीचे आता है, जो बादल फटने जैसा असर पैदा करता है।
कैसे फटते हैं बादल?
बादल फटना एक मौसमी घटना है और बरसात का सबसे खतरनाक रूप है। इसमें किसी एक जगह पर बहुत तेज़ और मूसलाधार बारिश होती है। इसे 'क्लाउड बर्स्ट' भी कहते हैं। इस दौरान बारिश की रफ़्तार लगभग 100 मिलीमीटर प्रति घंटा होती है।
यह घटना तब होती है जब पानी से भरे बादल पहाड़ों में फंस जाते हैं। पहाड़ों की ऊंचाई के कारण बादल पानी के रूप में तेज़ी से बरसते हैं। उनका घनत्व ज़्यादा होने से बारिश बहुत तेज़ होती है। बादल अक्सर दोपहर या रात के समय फटते हैं, क्योंकि इस समय हवा में नमी और गर्मी ज़्यादा होती है। इससे एक ही जगह पर लाखों लीटर पानी एक साथ गिरता है, जिससे नदियाँ और नाले उफ़न जाते हैं।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
मौसम विज्ञान केंद्र शिमला और चंडीगढ़ के रिटायर्ड निदेशक डॉ. मनमोहन सिंह बताते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पानी का वाष्पीकरण तेज़ी से हो रहा है। इसके कारण विशाल 'क्यूम्यलोनिम्बस' बादल (जिन्हें 'थंडरहेड्स' भी कहते हैं) बनते हैं, जो तेज़ बारिश, बिजली, ओले और आँधी ला सकते हैं। बंगाल की खाड़ी से आ रही पूर्वी हवाएं भी इसका एक कारण हैं।
पहले जहाँ मानसून में एक समान बारिश होती थी, अब एक ही दिन में महीनों की बारिश हो रही है। यह बहुत ज़्यादा बारिश मिट्टी के कटाव, भूस्खलन और बादल फटने जैसी आपदाओं को जन्म दे रही है।
संकट अभी भी है
मौसम विज्ञान केंद्र शिमला के वैज्ञानिक संदीप कुमार शर्मा का कहना है कि प्राकृतिक आपदाओं का खतरा अभी टला नहीं है और सभी को सतर्क रहने की ज़रूरत है। उन्होंने बताया कि कुछ जिलों में भारी बारिश होने का पूर्वानुमान है, लेकिन लगातार बारिश होने की संभावना कम है।

