मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट को पैनडाऊन स्ट्राइक के तौर पर नहीं लिया जा सकता : हाईकोर्ट

punjabkesari.in Monday, Apr 29, 2024 - 05:08 PM (IST)

शिमला (मनोहर): प्रदेश हाईकोर्ट ने आदर्श आचार संहिता के कारण कर्मचारियों की नियुक्तियां और पदोन्नतियां रोके जाने को गंभीरता से लेते हुए मुख्य सचिव को इस बाबत स्पष्ट निर्देश जारी करने के आदेश जारी किए। कोर्ट ने कहा कि मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट को अघोषित पैनडाऊन स्ट्राइक भी कहा जा सकता है जिसकी आड़ में सरकार के रूटीन कार्यों सहित सामान्य कार्य भी रोक दिए जाते हैं। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने पदोन्नति से जुड़े मामले का निपटारा करते हुए यह आदेश जारी किए। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट में मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट की आड़ में रोकी गई कर्मचारियों की नियुक्तियों और पदोन्नतियों से जुड़े मामलों की बाढ़ आ गई है। कोर्ट ने कहा कि अब समय आ गया है कि सरकार इस संबंध में जरूरी निर्णय ले। मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट को पैनडाऊन स्ट्राइक के तौर पर नहीं लिया जा सकता। कोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश देते हुए कहा कि वह सभी विभागों को स्पष्ट निर्देश जारी कर साफ करे कि आदर्श आचार संहिता एक ऐसा दस्तावेज है जिससे सरकार अथवा जनता के नियमित कार्यों में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती। पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रार्थी सतिंदर कुमार के अनुसार विश्वविद्यालय में 1 नवम्बर 2017 को सुपरिंटैंडैंट ग्रेड 2 के खाली हुए पद के लिए उसे पात्रता के बावजूद कंसीडर नहीं किया गया।

30 नवम्बर 2017 को वह बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो गया। 30 दिसम्बर 2017 को उसने एक प्रतिवेदन प्रस्तुत कर उसे 1 नवम्बर 2017 से पदोन्नत किए जाने की मांग की जिसे विश्वविद्यालय ने खारिज करते हुए कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद नियमानुसार पदोन्नति नहीं दी सकती। दूसरा कारण बताते हुए विश्वविद्यालय का कहना था कि 12 अक्तूबर 2017 को हिमाचल प्रदेश मुख्य चुनाव अधिकारी ने विधानसभा चुनावों की घोषणा करने की घोषणा कर दी थी जिस कारण प्रदेश में मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट लागू हो गया। इस कारण प्रार्थी को पदोन्नत नहीं किया जा सका और वह चुनाव आचार संहिता के लागू रहते अपने पद से सेवानिवृत्त हो गया। कोर्ट ने विश्वविद्यालय की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट की आड़ में प्रार्थी को उसके कानूनी लाभों से कैसे रोका जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि यह विश्वविद्यालय का कानूनी और संस्थागत कर्त्तव्य था कि वह समय रहते खाली होने वाले पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू कर देता। कोर्ट ने प्रार्थी की याचिका को स्वीकारते हुए उसे नियत तिथि से पदोन्नत करने के आदेश जारी किए।


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Content Writer

Kuldeep

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