हिमाचल विधानसभा ने सामूहिक धर्मांतरण-रोधी विधेयक ध्वनिमत से पारित किया

punjabkesari.in Tuesday, Aug 16, 2022 - 10:07 AM (IST)

शिमला, 13 अगस्त (भाषा) हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने मौजूदा धर्मांतरण-रोधी कानून में संशोधन वाले एक विधेयक को शनिवार को ध्वनिमत से पारित कर दिया, जिसमें मौजूदा कानून में सजा बढ़ाने और जबरन या लालच देकर ‘सामूहिक धर्मांतरण’ कराए जाने को रोकने के प्रावधान हैं।

संशोधन विधेयक के कड़े प्रावधानों के अंतर्गत धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति को माता-पिता के धर्म या जाति से संबंधित ‘कोई भी लाभ’ लेने पर रोक रहेगी। विधेयक में कारावास की सजा को सात साल से बढ़ाकर अधिकतम 10 साल तक करने का प्रावधान है।
हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2022 शनिवार को ध्वनिमत से पारित हुआ। विधेयक में सामूहिक धर्मांतरण का उल्लेख है, जिसे एक ही समय में दो या दो से अधिक लोगों के धर्म परिवर्तन करने के रूप में वर्णित किया गया है।

जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने शुक्रवार को विधेयक पेश किया था। संशोधन विधेयक में हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2019 के प्रावधानों को और कठोर किया गया है, जो बमुश्किल 18 महीने पहले लागू हुआ था।

कुछ प्रावधानों पर आपत्ति दर्ज करते हुए कांग्रेस विधायक सुखविंदर सिंह सुक्खू और माकपा विधायक राकेश सिंह ने मांग की कि विधेयक को विचार-विमर्श के लिए स्थायी समिति के पास भेजा जाए।

राज्यपाल की मंजूरी के बाद विधेयक कानून बन जाएगा।

कांग्रेस विधायक सुक्खू ने उन प्रावधानों को लेकर आपत्ति दर्ज की, जो धर्मांतरण करने वाले को अपने मूल धर्म या जाति का कोई लाभ लेने से रोकते हैं। हालांकि, सरकार ने जोर देकर कहा कि यह संविधान के अनुरूप है।

संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950, कहता है कि कोई भी व्यक्ति जो हिंदू, सिख या बौद्ध से अलग धर्म को अपनाता है, उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।

आपत्तियों का जवाब देते हुए संसदीय कार्य मंत्री सुरेश भारद्वाज ने कहा कि आदिवासियों के अधिकार नहीं बदलेंगे। उन्होंने कहा कि विधेयक के तहत एक स्वघोषणा की जरूरत होगी कि धर्मांतरित व्यक्ति अपने माता-पिता के धर्म का कोई लाभ नहीं लेगा।

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि कुछ धर्मों के अनुयायी अनुसूचित जातियों के धर्मांतरण के लिए पहाड़ी राज्य के आदिवासी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
ठाकुर ने कहा कि उनकी पार्टी अनुसूचित जाति समुदाय के अधिकारों की रक्षा के बारे में दूसरों की तुलना में अधिक गंभीर है।

हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2019 को 21 दिसंबर 2020 को अधिसूचित किया गया था। इस संबंध में विधेयक 15 महीने पहले ही विधानसभा में पारित हो चुका था। साल 2019 के विधेयक को भी 2006 के एक कानून की जगह लाया गया था, जिसमें कम सजा का प्रावधान था।

नये संशोधन विधेयक में बलपूर्वक धर्मांतरण के लिए कारावास की सजा को सात साल से बढ़ाकर अधिकतम 10 साल तक करने का प्रस्ताव है।

विधेयक में प्रावधान प्रस्तावित है कि कानून के तहत की गयी शिकायतों की जांच उप निरीक्षक से नीचे के दर्जे का कोई पुलिस अधिकारी नहीं करेगा। इस मामले में मुकदमा सत्र अदालत में चलेगा।

सत्तारूढ़ भाजपा धर्मांतरण-रोधी कानून की मुखर समर्थक रही है और पार्टी द्वारा शासित कई राज्यों ने इसी तरह के कानून पेश किए हैं। यह कदम इस साल के अंत में हिमाचल प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सामने आया है।



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PTI News Agency

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