जयराम केबिनेट का विस्तार, गर्ग, पठानिया और चौधरी ने ली शपथ

punjabkesari.in Thursday, Jul 30, 2020 - 12:44 PM (IST)

शिमला : कोविड-19 के प्रकोप के बीच अंततः लंबे इंतजार के बाद हिमाचल प्रदेश में जयराम कैबिनेट का आज विस्तार हो गया है। कैबिनेट में पांवटा साहिब से सुखराम चौधरी, नूरपुर से राकेश पठानिया व घुमारवीं से राजेंद्र गर्ग को शामिल किया गया है। ये तीनों ही पहली मर्तबा कैबिनेट में शामिल किए गए हैं, इनमें राजेंद्र गर्ग तो विधायक भी पहली ही मर्तबा बने थे। राजभवन में आयोजित हुए शपथ ग्रहण समारोह को सादे तौर पर आयोजित किया गया, कोविड-19 के चलते इसमें कुछ लोगों को ही आने का निमंत्रण था। तीनों को राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने शपथ दिलवाई। तीनों ने शपथ लेने के बाद सीएम जयराम ठाकुर का अभिवादन किया। याद रहे कि कैबिनेट में तीनों पद खाली चल रहे थे। 

सिरमौर जिला कांग्रेस का गढ़ रहा है। लेकिन कांग्रेस की परंपरागत सीट पांवटा साहिब सीट को पहली बार बीजेपी की झोली में वर्ष 2003 में डालने वाले सुखराम चौधरी का दावा कैबिनेट के लिए पहले भी मजबूत था, लेकिन सिरमौर जिले से डॉ राजीव बिंदल के विधानसभा अध्यक्ष बनते ही सुखराम को जगह नहीं मिल पाई। डॉ. बिंदल के इस्तीफा देने के बाद अब जब कैबिनेट विस्तार हुआ तो सिरमौर के हिस्से से कैबिनेट की खाली जगह पर सुखराम की ताजपोशी पहले से ही तय मानी जाने लगी थी। सुखराम सिरमौर जिले में पुरुल्ला तहसील के निवासी हैं। सुखराम ने 12 वीं कक्षा तक पढ़ाई की है। 2012 के हिमाचल प्रदेश के चुनाव में सुखराम निर्दलीय उम्मीदवार किरणेश जंग से 790 के मामूली अंतर से हार गए थे। 

सत्ता के संतुलन का केंद्र कहे जाने वाले कांगड़ा जिले से राकेश पठानिया का ताल्लुक और जयराम कैबिनेट में इस जिले से खाली हुई किशन कपूर व विपिन परमार की जगह भरने को शुरू से ही नूरपुर के पठानिया सबसे परफेक्ट दावेदार माने जा रहे थे। पठानिया बीजेपी की राजनीति में हमेशा तेज-तर्रार नेताओं में से एक है और सदन के अंदर और बाहर भी पार्टी और सरकार के समर्थन में हमेशा फ्रंट पर खडे़ दिखे हैं। राकेश पठानिया के पिता का नाम कहन सिंह सिंह पठानिया है। उन्होंने अपनी इंटरमीडियट की पढ़ाई 1981 में पूरी की। वह पेशे से कृषक और खेती उनका व्यवसाय है। राकेश पठानिया नूरपुर विधानसभा के काफी अनुभवी राजनेता रहे हैं। इसके पहले वह एक बार निर्दलीय जबकि दो बार बीजेपी से चुनाव लड़ चुके हैं। वह 2007 में तो जीते थे लेकिन 2012 में निर्दलीय चुनाव लड़ने की वजह से हार का मुंह देखना पड़ा था। 1998 में विधानसभा चुनाव जीता जबकि 2003 के चुनाव में हार गए थे। उन्हें चुनाव में 23179 वोट मिले थे। 

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में राजेंद्र गर्ग ने ना सिर्फ टिकट लेकर सबको चौंका दिया बल्कि कांग्रेस में मुखर रहने वाले राजेश धर्माणी को भी अपने पहले ही चुनावी समर में परास्त कर दिया था। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के गृह जिला बिलासपुर से ताल्लुक रखने वाले धर्माणी को अपने विधानसभा क्षेत्र घुमारवीं में मिलनसार माना जाता है। राजेंद्र गर्ग का बिलासपुर जिले में लोगों से जुड़ाव और संगठन के अंदर लंबी पारी कैबिनेट तक पहुंचाने में मददगार रही है। राजेंद्र गर्ग स्नातकोत्तर है, उन्होंने जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर से 1990 में एमएससी की डिग्री ली है।
 


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Edited By

prashant sharma

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