हिमाचल में स्वास्थ्य विभाग अलर्ट! बढ़ रहा है यह रोग, जानिए क्या हैं कारण ?

punjabkesari.in Monday, Nov 24, 2025 - 12:58 PM (IST)

हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश, जिसे अक्सर शांत 'देवभूमि' के रूप में जाना जाता है, अब एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है। पिछले एक वर्ष में राज्य के अस्पतालों में 5,830 अतिरिक्त मनोरोगियों का इलाज हुआ है, जिसने राज्य के स्वास्थ्य विभाग को चिंताजनक स्थिति में ला दिया है।

यह वृद्धि केवल एक आँकड़ा नहीं है, बल्कि यह दर्शाती है कि समाज का हर वर्ग - बच्चे, युवा और बुजुर्ग - गंभीर तनाव में जी रहा है।

चौंकाने वाले आंकड़े

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की वार्षिक रिपोर्ट (2024-25) के अनुसार, राज्य के अस्पतालों में एक साल में 76,237 मानसिक स्वास्थ्य के मरीज़ इलाज के लिए पहुँचे। इनमें से 7,209 को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा।

इसकी तुलना में, पिछले वर्ष (2023-24) 70,407 रोगी उपचार के लिए आए थे, जिनमें 5,453 को भर्ती किया गया था। यह स्पष्ट वृद्धि मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ते दबाव को दर्शाती है।

तनाव के तीन प्रमुख कारण

डॉक्टरों और विशेषज्ञों का मानना है कि इस बीमारी के तेजी से फैलने के पीछे तीन मुख्य कारण हैं, जो जीवन के विभिन्न चरणों को प्रभावित कर रहे हैं:

युवाओं पर 'नशे का साया': नशे, विशेष रूप से 'चिट्टा' (सिंथेटिक ड्रग्स) की लत, कई युवाओं को मनोरोगी बना रही है। अभिभावक अब इन प्रभावित बच्चों को सुधार केंद्रों के बजाय सीधे अस्पताल में भर्ती करवा रहे हैं, जहाँ दो से तीन महीने के उपचार के बाद उन्हें घर भेजा जा रहा है।

बच्चों पर 'अकादमिक बोझ': बच्चों पर प्रतिस्पर्धात्मक पढ़ाई का अत्यधिक दबाव पड़ रहा है। अभिभावकों की ऊँची उम्मीदें और बेहतर प्रदर्शन की होड़ कई बच्चों को तनाव और मानसिक बीमारी की ओर धकेल रही है।

बुजुर्गों को 'वित्तीय आघात': वरिष्ठ नागरिक ऑनलाइन धोखाधड़ी (साइबर फ्रॉड) का शिकार हो रहे हैं, जहाँ शातिर उनके खातों से लाखों रुपये उड़ा ले जाते हैं। इसके अलावा, पारिवारिक क्षति या अपनों को खोने के बाद भी बुजुर्गों में डिप्रेशन और घबराहट के मामले बढ़ रहे हैं।

आईजीएमसी शिमला के मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख डॉ. दिनेश दत्त शर्मा ने पुष्टि की कि नशे के आदी युवा और पढ़ाई के अत्यधिक दबाव वाले बच्चे प्रमुख रूप से पीड़ित हैं। उन्होंने आर्थिक तंगी और घबराहट को भी अवसाद (डिप्रेशन) के कारणों में गिनाया।

डॉक्टर मरीजों को उपचार के बाद घर भेज रहे हैं, लेकिन बढ़ते मामलों ने सरकार को इस 'मन के मौन महामारी' से निपटने के लिए एक व्यापक और त्वरित रणनीति अपनाने हेतु मजबूर कर दिया है।


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Content Editor

Jyoti M

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