हिमाचल सरकार का बड़ा फैसला, अपने क्षेत्राधिकार में भूमि, भवन व अचल संपत्ति नहीं खरीद सकेंगे अधिकारी

Friday, Feb 10, 2023 - 12:07 AM (IST)

शिमला (कुलदीप): प्रशासनिक क्षेत्र में लोगों से सीधे जुड़े अधिकारियों के ऊपर किसी तरह की उंगली न उठे, इसको लेकर हिमाचल सरकार ने बड़ा निर्णय लिया है।  सरकार ने पहले से जारी किए गए आदेशों को फिर से लागू किया है। इन आदेशों के अनुसार अब डीसी व एसपी से लेकर 28 श्रेणी के अधिकारी अपने क्षेत्राधिकार में भूमि, भवन अथवा किसी भी अन्य तरह की अचल संपत्ति नहीं खरीद सकेंगे। आदेशों के अनुसार अधिकारी अपने परिजनों के नाम भी इस तरह की भूमि, भवन अथवा अचल संपत्ति खरीद नहीं पाएंगे। ऐसे अधिकारी तबादले या संबंधित क्षेत्र में अपनी सेवा अवधि समाप्ति के 2 साल बाद ही भूमि, भवन अथवा अचल संपत्ति खरीदने के हकदार होंगे। कार्मिक विभाग की ओर से जारी इन आदेशों की अवहेलना करें पर ऑल इंडिया सिविल सॢवस कंडक्ट रुल्स व सिविल सॢवस कंडक्ट नियमों के तहत कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। 

इस श्रेणी के अधिकारियों पर पाबंदी 
प्रदेश सरकार ने 28 श्रेणी के अधिकारियों को इसके दायरे में लाया है। इसमें मंडलीय आयुक्त, डीसी, एडीसी, एडीएम, एसडीएम, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, पटवारी रैंक के राजस्व अधिकारी, एसपी, डीएसपी, एएसपी, कंजर्वेटर ऑफ फोरैस्ट, डीएफओ, फोरैस्ट रेंजर, अधीक्षण अभियंता, कार्यकारी अभियंता, सहायक अभियंता, कनिष्ठ अभियंता, जिला बागवानी अधिकारी, कृषि विकास अधिकारी, विलेज एक्सटैंशन अधिकारी, उप निदेशक, एसएमएस, सहायक आबकारी एवं कराधान आयुक्त, आबकारी एवं कराधान अधिकारी, सहायक आबकारी एवं कराधान अधिकारी, आबकारी एवं कराधान के इंस्पैक्टर, डीएफ एंड एससी व विभाग के अन्य अधिकारी, जीएम, मैनेजर, खनन अधिकारी व विभाग के अन्य अधिकारी, बीडीओ व विभाग के अन्य अधिकारी तथा जिला श्रम अधिकारी व विभाग के अन्य अधिकारी शामिल हैं। इसी तरह म्युनिसिपल कमेटी के आयुक्त, सहायक आयुक्त, कार्यकारी अभियंता, सहायक अभियंता, सचिव, कार्यकारी अधिकारी व जेई शामिल हैं। 

प्रशासनिक सुधार की श्रृंखला का हिस्सा : सक्सेना
मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने कहा कि यह प्रशासनिक सुधार की श्रृंखला का हिस्सा है। ऐसे में पब्लिक डीलिंग से जुड़े अधिकारियों पर कोई उंगली न उठे, इसलिए सरकार ने पुरानी आदेशों को लागू किया है।

सबसे पहले वर्ष 1996 में जारी हुए थे आदेश
राज्य सरकार की ओर से सबसे पहले वर्ष 1996 में ऐसे आदेश जारी हुए थे। उसके बाद वर्ष, 2012 में भी ऐसे आदेशों को लागू किया गया था, ताकि प्रशासन में पारदर्शिता बनी रहे और अधिकारियों के कामकाज पर कोई सवाल न उठा सके। अब एक बार फिर से वर्तमान सरकार ने पूर्व में वापस लिए गए इन आदेशों को लागू करने का निर्णय लिया है। 

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Content Writer

Vijay