Himachal: बड़ा देव कमरुनाग के सरानाहुली मेले में उमड़ा आस्था का सैलाब, भक्तों ने झील में सोना-चांदी सहित अर्पित की नकदी

punjabkesari.in Sunday, Jun 15, 2025 - 06:23 PM (IST)

गोहर (ख्यालीराम): मंडी जनपद के आराध्य बड़ा देव कमरुनाग का ऐतिहासिक सरानाहुली मेला रविवार को मूल स्थान कमुराह में संपन्न हो गया जिसमें एक लाख से अधिक भक्तों ने आशीर्वाद प्राप्त किया। रविवार की छुट्टी और आषाढ़ साजे की पर्व बेला पर देवता में दरबार में सुबह 5 बजे से ही श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो गया था तथा पूरा दिन आराध्य देव के जयकारे लगते रहे। देवता के गूर, कटवाल व कारदारों ने धूप-बत्ती कर काहूलियों की ध्वनि के साथ मूर्ति पूजन के बाद देव झील (सर) का पूजन किया। इसके उपरान्त देव कमेटी की ओर से सदियों से चली आ रही रीति के अनुसार झील में बड़ा देव कमरुनाग के सुपुर्द सोना-चांदी के जेवरों को अर्पित किया। इसके बाद मेले में आए श्रद्धालुओं ने भी देवता की पवित्र झील में सोना-चांदी, सिक्के और नकदी भी अर्पण की।

1 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने लिया भाग
देवता के कटवाल काहन सिंह ठाकुर ने कहा कि इस बार देव कमरूनाग के सरानाहुली मेेले में करीब 1 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने भाग लिया। एसडीएम लक्ष्मण सिंह कनेट ने मेले में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए श्रद्धालुओं और पर्यटकों का आभार जताया तथा मंदिर कमेटी को बधाई दी है। उन्होंने लोगों से अपील की है कि मंदिर परिसर व आसपास के स्थानों पर स्वच्छता का खास ख्याल रखें ताकि धार्मिक स्थल की वर्चस्व कायम बना रहे। थाना प्रभारी गोहर देव राज ने कहा है कि मेले में किसी भी प्रकार की कोई ऐसी घटना सामने नहीं आई है, जिससे शान्ति का माहौल बिगड़ा हो।
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100 से अधिक बच्चों के किए मुंडन संस्कार
देवता में आस्था रखने वाले अनेक लोगों ने देवता के दरबार में बकरे पहुंचाए और देवता को चढ़ाए। बताया जा रहा है कि पर्व के दौरान 100 से अधिक बच्चों के मुंडन संस्कार किए गए। मेले में मंडी, कुल्लू, बिलासपुर, शिमला, कांगड़ा, हमीरपुर और पड़ोसी राज्यों के लोगों ने देवता के दरबार पहुंचकर शीश नवाया। श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए मंदिर कमेटी को देवता के दर्शन करवाने के लिए पुलिस की मदद का सहारा लेना पड़ा।

मेले में नहीं जाता देवता का सूरजपखा व बजंतर
देव कमरुनाग के गुर देवी सिंह ठाकुर ने कहा है कि वार्षिक सरानाहुली मेला जोकि देवता के मूल स्थान कमुराह में मनाया जाता है, स्थल के लिए देवता का प्रमुख चिन्ह सूरजपखा व बजंतर नहीं जाता है। मेला स्थल के लिए गूर की माला (कुथली) काहुली और घंटी को लाना सदियों से मान्य है। देवता के कारिंदे व लाठी मूल कोठी से निकलते ही काहुली की ध्वनि व घंट बजाते हुए मूल स्थान पहुंचते हैं।
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झील में छिपा है बेशुमार खजाना
लोग बहुत लंबे समय से सोना-चांदी से महंगी से महंगी प्रतिमाओं को यहां अर्पण करते आ रहें हैं। इसी के चलते देव कमरुनाग झील के भीतर बेशुमार दौलत इकट्ठी हो गई है। स्थानीय लोगों का कहना है कि चोरों ने कई बार इस झील से खजाने को चोरी करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। श्रद्धालु यहां अपनी मुरादें पूरी होने के बाद अपनी आस्‍था के अनुसार सोने-चांदी का चढ़ावा चढ़ाते हैं। मान्‍यता है कि इसकी रखवाली खुद देव कमरुनाग करते हैं।
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Vijay

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