Kangra: चाय नगरी में लहलहाई सेब की फसल, IHBT पालमपुर के प्रयास लाए रंग

punjabkesari.in Saturday, Jun 28, 2025 - 01:21 PM (IST)

पालमपुर (भृगु): पहाड़ों की गोद में बसी चाय नगरी पालमपुर अब सेब की खेती के लिए भी चर्चाओं में है। हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी), पालमपुर ने सेब की ऐसी किस्में विकसित की हैं जो कम ठंड वाले क्षेत्रों में भी लहलहा रही हैं। ये 'लो चिलिंग' किस्में अब न केवल पालमपुर के खेतों में अपनी मिठास बिखेर रही हैं, बल्कि पूर्वोत्तर भारत में भी किसानों के लिए एक नई उम्मीद बनकर उभरी हैं।

कम ठंड में भी मीठा फल
पारंपरिक रूप से सेब की खेती ठंडे इलाकों तक सीमित थी, जहां लंबे समय तक तापमान कम बना रहता है, लेकिन सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर के वैज्ञानिकों ने इस चुनौती को अवसर में बदला। संस्थान ने वायरस मुक्त रूट स्टॉक के साथ 'लो चिलिंग' सेब की किस्में विकसित की हैं, जो कम समय और तापमान में भी फल देने में सक्षम हैं। संस्थान के चंदपुर स्थित बाग में इन किस्मों की ट्रायल खेती की जा रही है, जहां शोध एवं विकास के तहत फल की गुणवत्ता, उत्पादन और बाजार क्षमता का आकलन किया जा रहा है।

पूर्वोत्तर राज्यों में सफलता
संस्थान द्वारा विकसित इन किस्मों को मिजोरम, मणिपुर और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के किसानों तक पहुंचाया गया है। अब तक की जानकारी के अनुसार, इन राज्यों में यह प्रयोग पूरी तरह सफल रहा है। वहां की जलवायु में भी ये किस्में अच्छी पैदावार दे रही हैं। इससे पहले, इन राज्यों की सेब की मांग विदेशों से आयातित फलों पर निर्भर थी। लेकिन अब ये राज्य खुद सेब उत्पादन के लिए तैयार हो रहे हैं।

कम ठंड वाले क्षेत्रों के लिए ये 4 प्रमुख किस्में उपयुक्त
संस्थान ने जिन सेब की किस्मों को कम ठंड वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त पाया है, उनमें एना, फुजी, सनफुजी और डोरसेटी गोल्डन शामिल है।
एना: यह किस्म जल्दी पकती है और कम ठंड में भी अच्छी उपज देती है।
फुजी: अपने स्वाद और लंबी शेल्फ लाइफ के लिए प्रसिद्ध यह किस्म अब कम तापमान में भी उगाई जा सकती है।
सनफुजी: फुजी किस्म का मीठा वेरिएंट जो स्वाद में बेहतर और आकर्षक है।
डोरसेटी गोल्डन: यह एक कुरकुरी और मीठी किस्म है जो गर्म क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।

वैज्ञानिकों का योगदान
संस्थान के निदेशक डॉ. सुदेश कुमार यादव ने हाल ही में चंदपुर स्थित सेब बाग में 'लो चिलिंग' सेब की तुड़ाई का उद्घाटन किया। उन्होंने फल की गुणवत्ता का मूल्यांकन किया और वैज्ञानिकों तथा कर्मचारियों के साथ मिलकर फसल प्रबंधन, तुड़ाई के बाद के अभ्यास और मूल्य संवर्धन की संभावनाओं पर चर्चा की। प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राकेश राणा ने बताया कि ये किस्में पूर्वोत्तर राज्यों में पूरी तरह सफल रही हैं और अब इनसे जुड़े मूल्यवर्धित उत्पाद जैसे जूस, जैम, स्लाइस्ड ड्राय फ्रूट आदि पर कार्य किया जा रहा है।

नई दिशा की ओर कदम
आईएचबीटी पालमपुर की इस उपलब्धि से यह स्पष्ट है कि वैज्ञानिक प्रयासों से कृषि की दिशा और दशा दोनों बदली जा सकती है। चाय की खुशबू के लिए प्रसिद्ध पालमपुर अब सेब की मिठास से भी पहचाना जाएगा। साथ ही, देश के उन क्षेत्रों में भी सेब की खेती संभव हो सकेगी, जहां पहले यह केवल सपना था। यह पहल न केवल किसानों की आमदनी बढ़ाने में सहायक बनेगी, बल्कि देश को सेब के आयात पर निर्भरता से भी मुक्त करेगी। पालमपुर की यह वैज्ञानिक सौगात अब एक सेब क्रांति का संकेत बन चुकी है।
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Content Writer

Vijay

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