सुंदरनगर : राज्य स्तरीय नलवाड़ मेले में पहुंचे मात्र 55 बैल

punjabkesari.in Thursday, Mar 23, 2023 - 10:46 PM (IST)

सुंदरनगर (पवन): सुंदरनगर का राज्य स्तरीय नलवाड़ मेला साल दर साल अपना वैभव खोता जा रहा है। कुछ वर्ष पहले मेले की मंडी में जहां हजारों की संख्या में बैल क्रय-विक्रय के लिए पहुंचते थे लेकिन इस बार मेले के पहले दिन बुधवार को मेले की मंडी नगौण में केवल 55 बैल ही देखने को मिले। इनमें से अधिकतर बैल छोटी कद-काठी वाली नस्ल के हैं। इसके अलावा मेला में बाहरी राज्यों से कोई भी व्यापारी मेले में नहीं देखने को मिल रहा है। अगर यह सिलसिला आगे भी जारी रहा तो वह समय अब दूर नहीं है जब राज्य स्तरीय नलवाड़ मेले में वृष पूजन के लिए भी किराए पर बैल लाने पड़ेंगे। 

कांगड़ा जिले के लोग खरीदते हैं सबसे अधिक बैल
सुकेत संस्कृति साहित्य और जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डाॅ. हिमेंद्र बाली का कहना है कि सुंदरनगर के नलवाड़ मेले का आरंभ साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर लगभग 225 वर्ष पूर्व हुआ है। ऐतिहासिक नगरी व सुकेत रियासत की प्रथम स्थायी राजधानी रहे पांगणा के राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के सर्वेक्षक रह चुके डाॅ. जगदीश शर्मा के पास संरक्षित राय साहेब लाला साधुराम की पुस्तक भुगोल सुकेत रियासत संवत् 2005 (वर्ष 1948) के अनुसार सुंदरनगर में नलवाड़ का आरम्भ 1800 ई. के आसपास तत्कालीन राजा विक्रम सेन द्वारा किया गया था। रियासत काल में मेले से रियासत को करीब 1 लाख की आमदनी होती थी और यहां पर सबसे अधिक कांगड़ा जिले से किसान बैलों की खरीद को पहुंचते थे।

खेतीबाड़ी में बैलों की भूमिका नगण्य
खेतीबाड़ी में आज के मशीनी युग में बैलों की भूमिका नगण्य होकर रह गई है जिसके चलते नलवाड़ जैसे मेले अब महज सांस्कृतिक संध्याओं तक ही सीमित होकर रह गए हैं। इसी कारण सुंदरनगर का नलवाड़ मेला अब एक व्यावसायिक मेला बनकर रह गया है।

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Content Writer

Vijay

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