शरीर का निचला हिस्सा बेकार फिर भी नहीं मानी हार
punjabkesari.in Saturday, Dec 26, 2015 - 10:38 PM (IST)

बिलासपुर: ‘कदम चूम लेती है खुद आकर मंजिल, यदि राही खुद अपनी हिम्मत न हारे’। किसी शायर की ये पंक्तियां बरमाणा-बिलासपुर में रह रही गरीब घर की चलने-फिरने से लाचार 13 वर्षीय उज्मा पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं, जो शारीरिक रूप से असमर्थ होने के बावजूद भी एक स्वस्थ व्यक्ति की तरह काम करके पैसे कमाकर अपने परिवार का पूर्ण सहयोग कर रही है। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बेल्लारी-मुरादाबाद कस्बे की रहने वाली उज्मा के शरीर का निचला हिस्सा एक दुर्घटना के चलते बिल्कुल बेकार हो चुका है लेकिन फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी है।
आज उज्मा जहां सर्वशिक्षा अभियान के तहत 5वीं कक्षा की शिक्षा प्राप्त कर रही है, वहीं वह नक्काशीदार तकिये व चादरें आदि बनाने में अपने पुश्तैनी कार्य को कर अपने परिवार की रोजी-रोटी कमाने का एक सार्थक प्रयास कर रही है। उज्मा चंूकि प्रवासी मजदूर परिवार से है, जिसके कारण उज्मा को कोई विकलांग पैंशन या फिर थोड़ा-बहुत आगे आने-जाने के लिए व्हीलचेयर या फिर कोई अन्य उपकरण किसी सरकारी योजना या संस्था द्वारा अब तक मुहैया नहीं हो पाया है। उसके गरीब मां-बाप को समाज की मदद की दरकार है।
उज्मा जब 4 वर्ष की थी तब एक दुर्घटना में मकान के ढह जाने से उसके शरीर का निचला हिस्सा मकान के मलबे में दब गया था। दुर्घटना के बाद उज्मा के गरीब मां-बाप ने अस्पताल में यथासंभव उसका इलाज तो करवाया लेकिन उसके शरीर का कमर से नीचे का हिस्सा ठीक नहीं हो सका। उसके मां-बाप भी उसका इलाज करवाकर थक चुके थे लेकिन उज्मा ने न तो स्वयं हिम्मत हारी और न ही अपने पिता नदीम हुसैन व मां फातिमा जायरा की हिम्मत को हारने दिया। उसने बैठे-बैठे ही नक्काशी करने के अपने पुश्तैनी काम को पूरी लगन से सीखा व अपने इस पुश्तैनी कार्य में अपने परिवार का हाथ बंटाना शुरू कर दिया।
उज्मा ने पढऩे-लिखने की अपनी इच्छा को भी नहीं छोड़ा। जब सर्वशिक्षा अभियान का उसे पता चला तो उसके मन के किसी कोने में छुपी पढऩे की ललक फिर जाग उठी। तब उसका परिवार भोटा-हमीरपुर में रह रहा था। सर्वशिक्षा अभियान के तहत ही एक अध्यापक हर तीसरे दिन वहां उसे पढ़ाने आता था। मन में पढऩे की लगन के चलते उज्मा आज 5वीं कक्षा की पढ़ाई कर रही है। पढऩे की लगन इतनी है कि अभी भी उसके पिता हर 2 माह बाद उज्मा को भोटा लेकर जाते हैं, जहां अध्यापक उसके पढ़ाई के कार्य का निरीक्षण करता है व अगला होमवर्क लेने के बाद उज्मा फिर वापस बरमाणा लौट आती है। अनपढ़ मां-बाप को यह भी नहीं मालूम कि क्या उज्मा की ऐसी ही पढ़ाई की व्यवस्था बिलासपुर में भी कहीं हो सकती है या नहीं। इतना जरूर है कि लघट-बरमाणा में ही उज्मा को एक स्थानीय निवासी 5वीं कक्षा की नन्ही बच्ची स्नेहा मिल गई है, जो उज्मा के घर आकर उसकी पढ़ाई में मदद करती है।
बेटियां फाऊंडेशन ने मदद की ठानी
समाजसेवी संस्था बेटियां फाऊंडेशन को जब उज्मा की इस कहानी का पता चला तो उसने भी उज्मा की मदद करने की ठानी। बेटियां फाऊंडेशन की प्रदेशाध्यक्ष सीमा सांख्यान ने बरमाणा में उज्मा व उसके परिवार वालों से मुलाकात की तथा उसकी हरसंभव मदद करने का निश्चय किया। सीमा सांख्यान ने बताया कि उज्मा शेष समाज के लिए एक आदर्श रूप है। अब बेटियां फाऊंडेशन जहां उसकी आगे पढऩे में मदद करेगी, वहीं प्रशासन व प्रदेश सरकार से मिलकर वह हरसंभव प्रयास भी करेगी, जिसके चलते उज्मा की तकिये बनाने व नक्काशी करने की कारीगरी को एक अच्छा बाजार व नाम मिल सके तथा उसका परिवार गरीबी की इस दलदल से बाहर आ सके।
सर्वशिक्षा अभियान बिलासपुर के आईईडी समन्वयक परमजीत शर्मा ने बताया कि बरमाणा आने के बाद उज्मा ने किसी सरकारी स्कूल में अपना पंजीकरण नहीं करवाया, जिसके चलते सर्वशिक्षा अभियान तक उसकी सूचना नहीं पहुंच सकी। अब जानकारी मिली है तो सर्वशिक्षा अभियान के तहत विशेष शिक्षक को उज्मा के पास भेजा जाएगा ताकि सारी जानकारी मिल सके। तत्पश्चात पढ़ाई से लेकर अन्य सहायक उपकरणों की जो भी आवश्यकता उज्मा को होगी, उसे पूरा करने के लिए सर्वशिक्षा अभियान के तहत पूरा प्रयास किया जाएगा।