जलसमाधि से बाहर निकलने लगे ऐतिहासिक मंदिर, देखने वालों का लगा तांता

punjabkesari.in Thursday, Nov 16, 2017 - 02:35 PM (IST)

बिलासपुर: पिछले कई महीनों से जलमग्न हुए गोबिंदसागर झील में ऐतिहासिक मंदिर अब बाहर निकलने लगे हैं। बिलासपुर के सांडू मैदान में जलसमाधि से बाहर निकलते मंदिरों के इसी नजारे को देखने के लिए बड़ी संख्या में हर साल लोग की भीड़ लगती है। इस बार भी इस अद्भुत नजारों को देखने वालों का तांता लगने लगा है। दरअसल भाखड़ा बांध के निर्माण के बाद झील की जद में आए इलाके डूब गए थे। प्रभावित इलाकों के लिए नया शहर बसाया गया, लेकिन मंदिरों को दूसरी जगह शिफ्ट नहीं किया गया। कई मंदिर तो सिल्ट के नीचे दब गए। कुछ मंदिर बचे हैं, जो हर साल 6 महीने के लिए जल समाधि ले लेते हैं। 
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गोबिंदसागर झील में जुलाई महीने में चढ़ता है पानी
बता दें कि गोबिंदसागर झील में जुलाई महीने में पानी चढ़ता है। इसके बाद सभी मंदिर जल समाधि ले लेते हैं। इसके बाद जनवरी महीने के खत्म होते-होते पानी उतरता है। तब जाकर यह मंदिर पूरी तरह से बाहर निकल आते हैं। इन दिनों पानी उतरने का क्रम शुरू हो चुका है, जिससे मंदिरों के गुंबद पानी की सतह पर दिखने लगे हैं। हिमाचल में 60 के दशक में बने प्राचीन मंदिरों में से एक मंदिर का इतिहास आज भी पुरातत्व विभाग के लिए रहस्य से भरा हुआ है। दक्षिण भारत के मंदिरों की शैली में निर्मित मंदिर कब और किसने बनाया, इसका पता आज तक कोई नहीं लगा पाया है। कहा जाता है कि पहले इस मंदिर में शिव पार्वती की मूर्तियां थीं।
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गोबिंदसागर झील का नाम सिखों के 10वें और अंतिम गुरु के नाम पर रखा गया
कहा जाता है कि भगवान शिव के जलाभिषेक के बाद पानी जब सतलुज नदी में मिलता था तो उस समय यहां बारिश होती थी। स्थानीय लोग यहां हर साल बड़ा मेला लगाते थे। खास बात यह है कि गोबिंदसागर झील का नाम सिखों के 10वें और अंतिम गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह के नाम पर रखा गया है। जिला प्रशासन ने मंदिरों को शिफ्ट करने के लिए हनुमान टिल्ला के पास साइट चयनित की है, लेकिन पुरातत्व विभाग के नाम जमीन नहीं हुई है। विभाग का कहना है कि जब तक जमीन उसके नाम नहीं होगी, तब तक सर्वेक्षण नहीं होगा।  


पुराने मंदिरों के अवशेष हर साल लेते हैं जल समाधि  
यहां आज भी पुराने मंदिरों के अवशेष हर साल जल समाधि लेते हैं। इतना ही नहीं पानी उतरने पर फिर बाहर निकल आते हैं। इन मंदिरों में मुख्यत: रंगनाथ मंदिर, खनेश्वर व नर्वदेश्वर मंदिर प्रमुख हैं। इनके अलावा सांडू मैदान में 28 अन्य मंदिर भी हैं लेकिन गोबिंद सागर झील में बढ़ रही गाद की मात्रा बढ़ने के कारण अधिकांश छोटे बड़े मंदिर अब पूरी तरह गाद में समा चुके हैं। शिल्पकला के अद्भुत नमूने रंगनाथ मंदिर, गोपाल मंदिर, मुरली मनोहर मंदिर, बाह का ठाकुरद्वारा, खनमुखेश्वर, रघुनाथ मंदिर और रंग महल पूरी तरह से जलमग्न हो गए हैं।  


मंदिर में चढ़ाते थे जल तो होती थी बारिश
मान्यता है कि जलमग्न मंदिरों में करीब एक हजार साल पुराना रंगनाथ मंदिर शिव को समर्पित था। लोगों के अनुसार जब इस शिव मंदिर में जल डालते थे और वह सतलुज नदी में मिलता था तब बारिश शुरू हो जाती थी। मई 2011 में हस्ताक्षर अभियान भी संघर्ष का हिस्सा रहा है। अभियान के दौरान एक हजार लोगों ने झील में डूबे मंदिरों को निकालने के लिए हस्ताक्षर किए थे।


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