विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों पर भारी पड़ेगा जानवरों का मुद्दा

punjabkesari.in Monday, Oct 16, 2017 - 06:54 PM (IST)

जानवरों के आतंक से किसान छोड़ चुके हैं 86 हजार हैक्टेयर जमीन से खेती
शिमला
: सरकारी अमला चुनाव में व्यस्त है। किसान खेतों में जंगली जानवरों और बेसहारा पशुओं की रखवाली करते-करते धूप में पसीना-पसीना हो रहे हैं। यह समस्या आज की नहीं बल्कि पिछले 8-10 सालों से चली आ रही है मगर सूबे की सत्ता में राज करने वाला कोई भी सियासी दल इसका समाधान नहीं निकाल पाया है। यही वजह है कि बीते एक दशक के दौरान 86 हजार से अधिक हैक्येटर जमीन को किसान बंजर छोड़ चुकेहैं। ऐसे में 9 नवम्बर को होने जा रहे 13वीं विधानसभा चुनाव में बेसहारा पशु और जंगली जानवरों का मुद्दा सभी सियासी दलों पर भारी पडऩे वाला है।

शहरों की ओर पलायन कर रहे किसान
प्रदेश की प्रमुख कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी को अपने-अपने चुनावी घोषणा पत्र में बताना होगा कि किस तरह से किसानों को जंगली जानवरों और बेसहारा पशुओं की समस्या से निजात दिलाएंगे। खेती बचाओ संघर्ष समिति की मानें तो बेसहारा पशु और जंगली जानवर हर साल 1500 से 1800 करोड़ रुपए की नकदी फसलें तबाह कर रहे हैं। किसान दिन-रात खेतों की रखवाली कर रहा है मगर फिर भी इनसे फसलें नहीं बचा पा रहा है। किसान मजबूरन खेतीबाड़ी छोड़कर आय के दूसरे संसाधनों की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने लगे हैं।

सकल घरेलू उत्पाद में कृषि व इससे संबंधित क्षेत्रों का योगदान गिर रहा
राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में कृषि व इससे संबंध क्षेत्रों का योगदान निरंतर गिरता जा रहा है। कृषि व इससे संबंध क्षेत्रों का वर्ष 1980-81 में जी.डी.पी. में 47 फीसदी योगदान रहता था जो अब गिरकर मात्र 14 फीसदी रह गया है। मौजूदा हालात को देखते हुए इसका ओर गिरना तय माना जा रहा है। सूबे में यदि इसी तेजी से किसान खेती छोड़ता गया तो आने वाले दिनों में अधिकतर किसान खेतीबाड़ी छोडऩे को मजबूर हो जाएंगे। इससे खाद्य संकट जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी लेकिन राज्य और केंद्र सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा। कोई भी सरकार जंगली जानवरों व बेसहारा पशुओं के स्थायी समाधान को आगे नहीं आ रही है।

प्रदेश की 2301 पंचायतें प्रभावित
प्रदेश की 3226 ग्राम पंचायतों में से 2301 पंचायतें जंगली जानवरों और बेसहारा पशुओं के आतंक से जूझ रही हैं। जंगली जानवरों में सबसे प्रमुख बंदर हैं। बंदर, सूअर, शाही, खरगोश, नीलगाय व जंगली मुर्गों के अलावा बेसहारा पशुओं ने भी किसानों का जीना मुश्किल कर रखा है। शिमला, बिलासपुर, सिरमौर, सोलन, कांगड़ा, ऊना, हमीरपुर, चम्बा और मंडी जिले सबसे अधिक प्रभावित बताए जा रहे हैं। प्रदेश में 9 लाख 69 हजार परिवार हैं। खेती बचाओ संघर्ष समिति की मानें तो उक्त में से 70 फीसदी परिवार प्रत्यक्ष तौर पर जंगली जानवरों के आतंक से जूझ रहे हैं। हर साल सैंकड़ों किसान-बागवान खेती छोड़ रहे हैं।


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