आखिर शिमला का नाम ''सिमला'' क्यों पड़ा? जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर (Watch Pics)
punjabkesari.in Wednesday, Jan 20, 2016 - 05:23 PM (IST)

शिमला: अंग्रेजों को उत्तर भारत के इस पहाड़ी इलाके में अपने देश की तस्वीर दिखती थी। उन्हें यह जगह इतनी पसंद आई की उन्होंने इसे हू-ब-हू इंग्लैंड के शहर की शक्ल देने की कोशिश की। खास बात तो यह है कि वे साल के ज्यादातर माह यहीं गुजारते थे।
जानिए कैसे पड़ा ''शिमला'' नाम
आपको बता दें कि अंग्रेज शिमला का सही नाम नहीं बोल पाते थे, दरअसल वे शिमला को ''सिमला'' कहते थे। वहीं दूसरी ओर अंग्रेजों के जाने के बाद भी अंग्रेजी भाषा में शिमला को सिमला ही लिखा जाता था। 80 के दशक में हिमाचल सरकार ने इसका नाम बदलकर हिंदी में इसके बोलने के हिसाब से अंग्रेजी में भी शिमला लिखे जाने की अधिसूचना जारी की।
अंग्रेजों ने इस शहर को बसाया और संवारा
बताया जा रहा है कि शिमला को अंग्रेजों ने न केवल बसाया बल्कि सजाया और संवारा भी था। उन्होंने इसे ऐसी संस्कृति दी है जो अन्य जगहों से इसे अलग करता है। खास बात तो यह है कि अंग्रेजों ने शिमला में इंग्लैंड को जीने की कोशिश की थी। यही वजह रही कि धीरे-धीरे उन्होंने शिमला को अपनी जिंदगी के हिसाब से बदल लिया।
समर कैपिटल
अंग्रेजों के शासनकाल में शिमला ब्रिटिश साम्राज्य का समर कैपिटल था। सन् 1947 में आजादी मिलने तक शिमला का दर्जा समर कैपिटल का ही रहा। इसे बसाए जाने की प्रसिद्धि चॉरीस प्रैट् कैनेडी को जाती है। कैनेडी को अंग्रेजों ने पहाड़ी रियासतों का पॉलिटिकल अफसर नियुक्त किया था। सन् 1822 में उन्होंने यहां पहला घर बनाया जिसे ''कैनेडी हाउस'' के नाम से जाना गया।
शिमला को महाराजा रणजीत सिंह ने दी जमीन
- सन 1830 में शिमला को शहर की तरह बसाने की कवायद शुरू हुई।
- 1864 में अंग्रेजों ने इसे अपनी सरकार का अधिकारिक तौर पर समर कैपिटल घोषित कर दिया।
- 1832 में ब्रिटिश सरकार के गवर्नर जनरल लॉर्ड पीटर ऑरोनसन ने महाराजा रणजीत सिंह से जमीन ले ली।
- इस क्षेत्र की ज्यादातर जमीनें या तो पटियाला रियासत के पास थी या फिर स्थानीय क्योंथल रियासत के पास।
शिमला में बनी मैकमोहन लाइन
मैकमोहन लाइन का खाका भी शिमला में ही तैयार किया गया। भारत और पाकिस्तान की सीमाओं का मूल्य करने के लिए बने कमीशन जिसे रैड क्लिफ कमीशन के नाम से जाना जाता है। इसकी अधिकांश बैठकें शिमला के यूएस क्लब में हुईं। आपको बता दें कि महात्मा गांधी की हत्या के मामले की सुनवाई भी शिमला में ही हुई थी। इसके अलावा, भारत पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता भी यहीं हुआ।